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मुक्ताक्षर

किशोरावस्था में बच्चों के असामाजिक होने की संभावना ज्यादा क्यों होती है?

लेखक: Admin

उपशीर्षक: किशोरावस्था के दौरान अगर दिमाग के किसी हिस्से में न्यूरोजेनेसिस रुक जाए, तो असामाजिक व्यवहार के लक्षण उत्पन्न होने लगते हैं।

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किशोरावस्था में अक्सर बच्चों को संभालना उनके अभिभावकों के लिए सबसे मुश्किल काम होता है। इसी आयु में एक ओर तो उनका दिमाग विकसित हो रहा होता है, तो दूसरी तरफ कई प्रकार के हार्मोनल बदलाव भी होने लगते हैं। इसी आयु में बच्चों के भविष्य की नींव पड़ती है, और इसी आयु में वह आजादी का स्वाद भी चखने लगते हैं। इस उम्र के बच्चे अक्सर ही गुस्सैल, चिड़चिड़े और असामाजिक भी हो जाते हैं। अब वैज्ञानिकों ने इस बात का पता लगा लिया है कि आखिर किशोरावस्था में बच्चों के साथ ऐसा क्यों होता है?

दिमाग में न्यूरोजेनेसिस का रुकना खतरनाक:

वैज्ञानिकों के मुताबिक, मस्तिष्क के कुछ हिस्सों में नई कोशिकाएं हमेशा बनती रहती हैं, इसे “न्यूरोजेनेसिस” कहा जाता है। यह न्यूरोजेनेसिस बचपन में और किशोरावस्था में सबसे ज्यादा तेजी से होता है। किशोरावस्था के दौरान अगर दिमाग के किसी हिस्से में न्यूरोजेनेसिस रुक जाए, तो असामाजिक व्यवहार के लक्षण उत्पन्न होने लगते हैं। तकरीबन 13 से 19 साल की उम्र के बीच शरीर में विशेष बदलाव होते हैं। यौन हार्मोन भी तेजी से काम करना शुरू करते हैं और वयस्क बनने की प्रक्रिया शुरू होती है।

असामाजिक व्यवहार की वजह:

किशोरावस्था का यह दौर सभी स्तनधारी प्राणियों में आता है। इसी को आधार बना कर वैज्ञानिकों ने चूहों पर शोध की। इस दौरान शोधकर्ताओं ने चूहों के दिमाग में कोशिकाओं का बनना रोक दिया। इसके परिणाम स्वरूप देखा गया कि चूहे असामाजिक होने लगे। ऐसे चूहे वयस्क होने के बाद भी दूसरे चूहों से घुल-मिल नहीं रहे थे। वैज्ञानिकों के अनुसार, जिन चूहों के दिमाग में कोशिकाओं का बनना रोक दिया गया था, वे दूसरे चूहों से ऐसा बर्ताव कर रहे थे मानो वे उन्हें चूहे ही नहीं मानते हों। वैज्ञानिकों ने कहा कि संभवत: इंसानों में भी असामाजिक व्यवहार की वजह किशोरावस्था में दिमाग के विकास में आई रुकावट है।

कई मानसिक बीमारियों की भी वजह::

वैज्ञानिकों के अनुसार, बच्चों के व्यवहार में कई प्रकार के परिवर्तन हार्मोन बदलाव के कारण भी होते हैं, तो कुछ  बचपन के जाने और वयस्कता के आने के बीच के अस्थिर दौर की वजह से होते हैं। वैज्ञानिक यह भी मान रहे हैं “स्कीजोफ्रेनिया” जैसी मानसिक बीमारियों की जड़ का संबंध भी किशोरावस्था में दिमाग के विकास में हुई रुकावट से है। यह पाया गया है कि स्कीजोफ्रेनिया के मरीजों में दिमाग के हिप्पोकैंपस नामक इलाके में कोशिकाओं का बनना बंद हो जाता है।

(The report is sponsored by SBI cards. Courtesy: MHFI)

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