Mental Health

मुक्ताक्षर

मां के अवसाद से प्रभावित हो सकता है बच्चे का मानसिक विकास

लेखक: Admin

उपशीर्षक: अध्ययन में पाया गया कि जिन बच्चों की माताओं ने तनाव लिया या अवसाद में घिरी रहीं उनके बच्चों में जन्म के 18 महीने बाद मानसिक विकास में कमी पाई गई।

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जिस दौर से हम गुजर रहे हैं उसे तनाव और अवसाद का युग कहना गलत नहीं होगा। हर किसी को किसी न किसी प्रकार की परेशानी है। इन परेशानियों ने ही चिंता, तनाव, और अवसाद जैसे मानसिक विकार समाज को दे दिए हैं। आज अधिकांश लोग मानसिक विकारों की चपेट में हैं।

विशेष रूप से महिलाएं मानसिक विकारों की सर्वाधिक चपेट में हैं। जब वो गर्भावस्था के दौर से गुजर रहीं होती हैं तो उनमें मानसिक समस्याएं बढ़ने का खतरा दोगुना हो जाता है। लेकिन उनकी ये चिंता और तनाव होने वाले बच्चे के मानसिक स्वास्थ्य को किस कदर प्रभावित करती है उसका शायद किसी भी महिला को अंदाजा तक नहीं है। अगर होता तो बड़ी तो क्या छोटी-छोटी बातों को भी नजरअंदाज न करती और अपने बच्चे को सुरक्षित रखने के लिए अपने को तनाव और अवसाद से दूर रखने का पूरा प्रयास करतीं।

एक अध्ययन में यह बताया गया है कि गर्भावस्था के दौरान महिला अगर चिंता, तनाव और अवसाद में घिरी रहती है तो इसका बहुत बुरा प्रभाव उसके गर्भ में पल रहे भ्रूण के मस्तिष्क पर पड़ता है।

वाशिंगटन में चिल्ड्रेन्स नेशनल हास्पिटल के शोधकर्ताओं ने यह अध्ययन किया है। इसमें गर्भ में भ्रूण मस्तिष्क विकास और गर्भावस्था के दौरान घातक तनाव के बीच संबंधों पर प्रकाश डाला गया है। शोधकर्ताओं का कहना है कि तनाव के संपर्क में आने वाले भ्रूणों और उसके दीर्घकालिक मानसिक विकास परिणामों के बीच महत्वपूर्ण कड़ी पर प्रकाश डालने वाला यह अपने आप में पहला अध्ययन है। शोधकर्ताओं ने इस दौरान 97 गर्भवती महिलाओं को अध्ययन का आधार बनाया और उनके भ्रूण और जन्म के बाद बच्चों के मानसिक विकास का विश्लेषण किया।

जामा नेटवर्क ओपन में प्रकाशित इस अध्ययन में बताया गया है कि मां के तनाव और अवसाद का असर गर्भ में पल रहे भ्रूण पर पड़ना शुरू हो जाता है। बच्चे के जन्म के बाद मानसिक दबाव का लगातार बने रहना उसके मानसिक विकास में बाधा डालता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि यह मनोवैज्ञानिक दबाव माता-पिता और बच्चे की बातचीत और शिशु का आत्म-नियमन प्रभावित कर सकता है। अध्ययन में पाया गया कि जिन बच्चों की माताओं ने तनाव लिया या अवसाद में घिरी रहीं उनके बच्चों में जन्म के 18 महीने बाद मानसिक विकास में कमी पाई गई। शोधकर्ताओं का कहना है कि ये बदलाव आंतरिक विकास और असामान्य व्यवहार को भी बढ़ाते हैं।

समय रहते उठाएं कदम तो मिल सकता है लाभ

चिल्ड्रेन्स नेशनल हास्पिटल स्थित डेवलपिंग ब्रेन इंस्टीट्यूट की प्रमुख एवं निदेशक कैथरीन लिंपेरोपोउलस के अनुसार, यह शोध चिकित्सकों को बच्चों के मानसिक विकास में होने वाली बड़ी हानि से बचाने में मददगार साबित हो सकती है। वो कहती हैं कि समय रहते कदम उठाए जाएं तो बच्चे के मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले गंभीर परिणामों को रोका जा सकता है। वह कहती हैं कि गंभीर मानसिक संकट वाली गर्भवती महिलाओं की पहचान कर, चिकित्सक ऐसे बच्चों की पहचान कर सकते हैं जो बाद में न्यूरो डेवलपमेंट क्षीणता के खतरे का सामना कर रहे हैं। शीघ्र हस्तक्षेप होने से ऐसे बच्चों को लाभ हो सकता है।

(The report is sponsored by SBI cards. Courtesy: MHFI)

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