लेखक: Admin
उप-शीर्षक: वरिष्ठ राजयोग शिक्षिका और ओम शांति रिट्रीट सेंटर की निर्देशिका बीके आशा दीदी कहती हैं: “शिवरात्रि में छिपा है बेहतर मानसिक स्वास्थ्य का मूल मंत्र. मन की सच्ची सेहत, ‘स्वस्थ’ शब्द में ही निहित है। यह शब्द दो संस्कृत अक्षरों की सन्धि से बना हुआ है। ‘स्व’ अर्थात् अंतरात्मा, और ‘स्थ’ का अर्थ है स्थित होना”
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विज्ञान चाहे भौतिक हो, रासायनिक हो या फिर जैविक, उसकी सार्वभौमिकता इस बात पर ही निर्भर करती है कि तथ्य प्रमाणित किए जा सकते हैं या नहीं। यही कारण है की वैज्ञानिक धार्मिक हो सकते हैं, मगर विज्ञान नहीं।
लेकिन समाज का अपना विज्ञान होता है। समाज यदि धार्मिक है तो इसकी सबसे न्यूनतम अभिन्न इकाई यानी व्यक्ति के जीवन और जीवनशैली पर इसका अमिट छाप होता है। यह सिर्फ उनकी सोच ही नहीं, उनके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर भी असर डालता है।
महाशिवरात्रि शुभ बेला पर, वरिष्ठ राजयोग शिक्षिका और ओम शांति रिट्रीट सेंटर की निर्देशिका बीके आशा दीदी कहती हैं: “शिवरात्रि में छिपा है बेहतर मानसिक स्वास्थ्य का मूल मंत्र. मन की सच्ची सेहत, ‘स्वस्थ’ शब्द में ही निहित है। यह शब्द दो संस्कृत अक्षरों (‘स्व’ एवं ‘स्थ’) की सन्धि से बना हुआ है। ‘स्व’ अर्थात् अंतरात्मा, और ‘स्थ’ का अर्थ है स्थित होना। यानी आत्मिक स्वरूप, स्वगुण, स्वधर्म और स्व पिता यानी परमात्मा की स्मृति में स्थित रहना ही स्वस्थ होना है। अब अगर हम शिवरात्रि के आध्यात्मिक रहस्य को समझें तो जान जाएंगे कि इस पर्व में हमारे मन को हमेशा स्वस्थ रखने का मूलमंत्र छिपा है।”
“शिवरात्रि वास्तव में परमात्मा शिव द्वारा कलयुगी मानव मन और उसके जीवन में बसी अज्ञानता, देह अभिमान, नकारात्मकता व विकार रूपी अंधकार का अंत करने से संबधित है। जब मनुष्य कलयुग की अज्ञान रूपी रात्रि में सोया होता है तब दिव्य ज्योति बिंदु स्वरूप ज्योतिर्लिंग परमात्मा शिव विश्व कल्याण व सृष्टि परिवर्तन हेतु इस धरा पर अवतरित होते हैं और मानव को दुखों से मुक्त करते हैं। परमात्मा शिव के इस कल्याणकारी कर्तव्यों के यादगार में ही हम महाशिवरात्रि का उत्सव मनाते हैं।”
“महाशिवरात्रि हमें उस महान पौराणिक सागर मंथन की भी याद दिलाता है और हमें उसके सार मर्म को जीवन में आत्मसात कर मानसिक, दैहिक व आत्मिक सभी रूपों से स्वस्थ, सुखी और समृद्ध बनने की प्रेरणा देता है। समुद्र मंथन वास्तव में इंसानों के आज की स्थिति का सांकेतिक व्याख्यान है जो कि मानव के मन बुद्धि, संस्कार व जीवन परिवर्तन से जुड़ा हुआ है। देव और दानवों के द्वारा क्षीर सागर मंथन का भावार्थ है की अनवरत हमारे मन में विचार सागर मंथन चलता रहता है।”
“मानसिक व दैहिक रूप में सदा स्वस्थ रहने के लिए व्यक्ति को अपनी अंतरात्मा और सबके रुहानी पिता परमात्मा के दिव्य स्वरूप, ज्ञान, गुण व शक्तियों से जुड़ने की आवश्यकता है। खास कर इस कलयुगी वातावरण में मानव अधिकतम नकारात्मकता व व्यर्थता से ग्रसित रहता है इससे उसकी आंतरिक शक्ति व रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है।”
“शिव हैं दुखों से छुड़ाने वाले। वही पापनाशक व रोग शोक, दुःख अशांति से मुक्ति दाता है और जिस सदाशिव परमात्मा में शाश्वत रूप में सकारात्मक शक्तियों का कतई क्षरण नहीं होता है।”