Mental Health

मुक्ताक्षर

मैं अपनी मानसिक बीमारी किसी को बताने से झिझकती थी

लेखक: प्रीती नहार

उप-शीर्षक: मेरे सामने सबसे बड़ी झिझक ये थी कि मैं थेरेपिस्ट को अपने मन की सब बातें कैसे बता पाउंगी। थेरेपिस्ट तो अनजान होते हैं। हम उन्हें जानते नहीं तो मैं कैसे उनसे बात कर पाउंगी। मगर चिकित्सक से मिलने के बाद मेरी ये गलतफहमी दूर हो गयी

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मेरा नाम शिंवागी है। मैं पिछले तीन-चार साल से एंग्जायटी (चिंता रोग) से जूझ रही थी। मुझे हर वक्त घबराहट होती थी, डर लगता था, कहीं बाहर जाने का मन नहीं करता था। इसी कारण मैं हर समय दुखी रहने लगी थी। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मेरे साथ ये सब क्यों हो रहा है। क्यों मैं किसी से मिलने या बात करने से कतराती थी या फिर कमरे से बाहर निकलना, घूमना-फिरना क्यों नहीं कर पा रही थी। साल 2018 की बात है जब मुझे महसूस हुआ की मुझे कुछ गंभीर बीमारी है क्योंकि मुझे उस साल आत्महत्या के ख्याल आने लगे थे। उसके बाद पिछले साल लॉकडाउन के समय मेरी परेशानी काफी बढ़ने लगी। आत्महत्या के ख्याल बढ़ने लगे। लेकिन अब बेहतर है। जिंदगी कभी एक जैसी नहीं चलती।

साल 2018 में मेरी जिंदगी में उथल-पुथल हुआ और उस उथल-पुथल ने मेरी चिंता, मेरे तनाव को बढ़ाते हुए आत्महत्या जैसे ख्यालों के बीच लाकर मुझे छोड़ दिया। लगातार बढ़ते आत्महत्या के ख्यालों ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया कि मैं अकेले इससे नहीं लड़ सकती। उसके बाद मैंने कुछ दोस्तों से बात की। उन्होंने कहा कि तुम्हें दिमाग के डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। लेकिन मुझे कुछ पता ही नहीं था कि मनोचिकित्सक, मनोवैज्ञानिक कौन होते हैं, क्या करते हैं। लेकिन मेरे दोस्तों ने मेरी मदद की और एक थेरेपिस्ट से मेरी बात हुई।

मेरे सामने सबसे बड़ी झिझक ये थी कि मैं थेरेपिस्ट को अपने मन की सब बातें कैसे बता पाउंगी। थेरेपिस्ट तो अनजान होते हैं। हम उन्हें जानते नहीं तो मैं कैसे उनसे बात कर पाउंगी। मगर उस वक्त मदद मिली ऑनलाइन थेरेपी से। ऑनलाइन चिकित्सा  की शुरुआत में मैंने ऑनलाइन चैट करके ही चिकित्सा शुरू की, क्योंकि अचानक से किसी से फोन पर या सामने जाकर खुद से अपनी परेशानी साझा करना या बात करना आसान नहीं होता। वो भी तब जब आप खुद तनाव और अवसाद के शिकार हों।

 

पहले ही बैठक के बाद मुझे काफी अच्छा लगा। थेरेपिस्ट जानते हैं कि किस तरह से मरीजों से बात करनी है। मेरा डर ये भी था कि कहीं मेरी बातें सुनकर थेरेपिस्ट मेरा मजाक तो नहीं उड़ाएंगें! लेकिन थैरेपिस्ट ने मेरी  काफी मदद की और मेरी बात सुनी। बहुत सी बातें जो आप अपने करीबी दोस्तों से नहीं कह पाते वो आप थेरेपिस्ट से कह पाते  हैं। ऐसी चीजें जो आपको अपने बारे में पता भी नहीं होती वो बातें आप जान पाते हैं।  सिर्फ दोस्तों और घरवालों से बात करना काफी नहीं होता।

चिकित्सकीय सहायता लेकर मुझे ये समझ आया कि बाकी रोगों की तरह दिमागी रोगों के भी चिकित्सक होते हैं जो आपको बताते हैं कि कैसे आपको अपने विचारों को संयमित करना है, कैसे अपनी भावनाओं को नियंत्रित करना है। ये बहुत ही मददगार होता है। अब मैं जान पा रही हूँ कि क्यों मुझे तनाव, अवसाद, चिंता घेरे हुए थी। उसके पीछे के कारणों का पता चल पा रहा है। आज की तारीख में भी मेरी चिकित्सा चल रही है। लेकिन पहले से अब मेरी स्थिति बहुत बेहतर है।

मेरा अनुभव यह रहा कि हमारे समाज में मानसिक रोग को पागलपन से जोड़ दिया जाता है। ये तभी होता है जब मानसिक रोग को समाज में कलंक की तरह देखा जाता है। लेकिन ऐसा नहीं होना चाहिए। दिमाग की बीमारी भी बाकी शारीरिक बीमारियों की तरह ही है और इसका इलाज संभव है। कोई इंसान दिमाग के डॉक्टर से मिल रहा है या रही है तो कभी उनका मजाक न उड़ाए। जरूरी है की हम अपनी सोच को बदलें और मानसिक स्वास्थ्य पर ज्यादा से ज्यादा खुलकर बात करें।

(शिंवागी से बातचीत के आधार पर)

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