Mental Health

मुक्ताक्षर

तनाव आपको अपने बाल और नाखून उखाड़ने की लत लगा सकता है

लेखक: Admin

उपशीर्षक: ओनाइकोटिलोमेनिया के रोगी अपने नाखूनों को खींचने या हानिकारक रूप से काटने या चबाने के लिए खुद को बाध्य पाते हैं जबकि ट्रिकोटिलोमेनिया पीड़ित मरीज अक्सर बाल खींचते रहते हैं।

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रोज नई-नई बीमारियों के बारे में आजकल सुनने को मिल रहा है। और ज्यादातर बीमारियों में एक बात उभयनिष्ठ है और वो है तनाव। तनाव और अवसाद के कारण त्वचा-संबंधित बीमारियाँ भी होती हैं। बीते कुछ दिनों में ऐसी बीमारियों में वृद्धि देखी गई है।

ट्रिकोटिलोमेनिया ( टीटीएम ): 

यह एक मानसिक बीमारी है। रोगी पहले मानसिक रोग का शिकार होता है फिर इस बीमारी का। इस बीमारी में शरीर पर बालों की संख्या एकदम से कम होने लगती है।  सिर के बाल बहुत कम हो जाते हैं। मरीज को महसूस होता है कि उसके बाल झड़ रहे हैं। कंघी करते वक्त बाल बुरी तरह से टूटते हैं। शुरू में इसे लोग बाल झड़ने की समस्या ही समझते हैं लेकिन बाद में पता चलता है कि यह मानसिक रोग के कारण हो रहा है।

इससे पीड़ित मरीज अक्सर बाल खींचते रहते हैं। ऐसे मरीजों को मनोरोग चिकित्सक से सलाह लेनी चाहिए नहीं तो आगे जाकर गंभीर परिणाम सामने आ सकते हैं।

त्वचा रोग विशेषज्ञ डॉ सचिन लालवानी बताते हैं गंजेपन और बालों की झड़ने की समस्या तेजी से बढ़ रही है। युवा और बच्चे भी इसके शिकार हो रहे हैं। जब पीड़ित लोग अपनी समस्या लेकर हमारे पास आते हैं तब जांच और रोगी के व्यक्तिगत  इतिहास से पता चलता है कि वह मानसिक बीमारी की चपेट में है। पीड़ित अक्सर अपने बाल खींचने लगते हैं और यह कब उनकी आदत बन जाती है वो खुद भी नहीं जान पाते। इस स्थिति में फिर केवल त्वचा रोग विशेषज्ञ की ही नहीं बल्कि मानसिक रोग विशेषज्ञ से भी इलाज करवाना जरूरी है। वो बताते हैं कि अधिकतर 6 से 18 साल के लोगों में ऐसी बीमारियाँ ज्यादा देखी जा रही हैं। कोरोना के बाद समस्या और बढ़ गई है।

ओनाइकोटिलोमेनिया:

इस बीमारी में तनाव के कारण अक्सर लोग अपने नाखून चबाते और मोड़ते रहते हैं। ओनाइकोटिलोमेनिया के रोगी अपने नाखूनों को खींचने या हानिकारक रूप से काटने या चबाने के लिए खुद को बाध्य पाते हैं। इससे नाखून और उसके आसपास की त्वचा खराब होने लगती है। नाखून के ऊपर देखने में अजीब सा गड्ढा दिखाई पड़ता है। नाखूनों पर लाइन पड़ जाती हैं, उनकी वृद्धि रुक सी जाती है। इसके अलावा नाखून के आसपास की त्वचा अक्सर फटी-फटी रहने लगती है।

ओनाइकोटिलोमेनिया अवसादग्रस्तता न्यूरोसिस, भ्रम और हाइपोकॉन्ड्रिया जैसे मानसिक विकारों से जुड़ा हो सकता है। यह आमतौर पर भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक कारकों से जुड़ा होता है, जो हल्के चिंता से लेकर गहरे मनोविकृति तक हो सकते हैं। ओनाइकोटिलोमेनिया और अंतर्निहित मनोविकृति दोनों एक दूसरे को बढ़ा सकते हैं, एक दुष्चक्र की स्थापना कर सकते हैं।

इस तरह की बीमारियाँ का ज्यादातर समय पर पहचान नहीं हो पाती है और इसलिए नाखूनों का ही इलाज किया जाता है। मगर ऐसे मरीजों को किसी मनोरोग चिकित्सक की बहुत जरूरत होती है, वरना ऐसे मन से जुड़े शारीरिक क्षति को नहीं रोका जा सकता।

(The report is sponsored by SBI cards. Courtesy: MHFI)

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