Mental Health

मुक्ताक्षर

अवसादरोधी दवा का लत छूटना मुश्किल, पर नामुमकिन नहीं

लेखक: Admin

उपशीर्षक: अवसाद की दवाइयों से पीछा छुड़ाना भले ही मरीजों के लिए मुश्किल हो रहा है, लेकिन ऐसा भी नहीं है कि दवाइयां कभी छूट ही नहीं सकतीं। घबराएं नहीं, विकल्प मौजूद है

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अवसाद से पीछा छुड़ाने के लिए लोगों को दवाइयों का सहारा तो लेना पड़ता है, लेकिन हाल यह गया है कि अवसाद रोगियों के लिए इन दवाइयों से पीछा छुड़ाना मुश्किल हो रहा है। इस बात का खुलासा एक शोध में किया गया है। शोधकर्ताओं ने यह माना है कि अवसाद की दवाइयों से पीछा छुड़ाना बहुत मुश्किल है लेकिन ऐसा भी नहीं है कि यह छूट ही नहीं सकतीं। दवा छोड़ने के तरीके भी शोधकर्ताओं ने बताए हैं।

क्या कहती है शोध?

ब्रिटेन में शोधकर्ताओं ने लंबे समय से अवसाद की दवा ले रहे मरीजों पर अध्ययन किया है। यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के इस अध्ययन में सामने आया है कि दवा लेने वाले लोग अब चाहते हुए भी इन दवाइयों को नहीं छोड़ पा रहे हैं। अध्ययनकर्ताओं ने पाया कि जो लोग दवाएँ छोड़ना चाहते हैं उनके लिए यह कार्य अब मुश्किल हो रहा है। दवा छोड़ते ही वो वापस अवसाद का शिकार हो रहे हैं। इस शोध में सामने आया कि कुछ मरीजों ने धीरे-धीरे दवा छोड़ने की कोशिश भी की लेकिन कामयाब नहीं हो पाए। दवा छोड़ने के छह मास से एक साल के भीतर ही वो दोबारा अवसाद का शिकार हो गए।  मगर जिन लोगों ने दवाएं नहीं छोड़ीं उनमें दोबारा अवसाद होने की संभावना लगभग 40 प्रतिशत रही। अध्ययनकर्ताओं ने मरीजों को दो समूहों में बांटा। इसमें 478 मरीजों को शामिल किया गया था। इनमें से ज्यादातर महिलाएं थीं, यह सभी सामान्य अवसादरोधी दवाएं ले रही थीं। मरीजों के ये दोनों समूह अवसाद के लिए रोजाना दवा ले रहे थे और अवसाद से उबरकर स्वस्थ भी महसूस कर रहे थे।

दवा छोड़ते ही दोबारा हुआ अवसाद

शोध में शामिल 50 फीसदी मरीजों को धीरे-धीरे दवा छोड़ने को कहा गया। शेष की दवाओं में कोई बदलाव नहीं किया गया। दवा छोड़ने वालों में से 56 प्रतिशत मरीज शोध के दौरान ही फिर से अवसाद का शिकार हो गए। मुख्य शोधकर्ता जेम्मा लुइस कहती हैं कि दवाएं न छोड़ने वालों को मिला लिया जाए तो ज्यादातर लोग दोबारा अवसाद का शिकार नहीं हुए। गौरतलब है कि पहले भी ऐसे अध्ययन हो चुके हैं कि अवसाद का लौट आना आम बात है। ऐसा भी कहा गया है कि जिन लोगों को कई बार अवसाद हो चुका है उनके लिए उम्र भर खाने के लिए दवाएं लिखी जा सकती हैं।

घबराएं नहीं विकल्प है मौजूद

मुख्य शोधकर्ता जेम्मा लुईस ने बताया कि बहुत अधिक घबराने की बात भी नहीं है। ऐसा भी नहीं है कि दवाइयां छूट ही नहीं सकतीं। ब्रिटेन में अवसाद के मरीजों का इलाज प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के डॉक्टर ही कर रहे हैं। जो मरीज दवाएं छोड़ना चाहते हैं उनके लिए दो विकल्प हैं एक है काउंसलिंग और दूसरी है व्यवहार थेरेपी। इनके नतीजे भी बेहतर रहे हैं।

इन तरीकों से छूट सकती है दवा

कई अध्ययनों में आ चुका है कि दवा के साथ इस तरह की थेरेपी मरीजों के लिए काफी फायदेमंद साबित होती है। दवाइयां भी धीरे-धीरे छूट सकती है। पर ये काफी महंगी होती है। कई अध्ययनों में यह भी कहा गया है कि ध्यान, योग और व्यायाम भी अवसादरोधी दवा छोड़ने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकते हैं।

मनोदशा से जुड़ी बीमारी है अवसाद

वास्तव में अवसाद मूड से जुड़ी बीमारी है। इसकी गिरफ्त में आया व्यक्ति खुद को लगातार उदास और निराश महसूस करता है। सामान्य गतिविधियों में उसकी दिलचस्पी खत्म सी हो जाती है।

अवसाद का जाल:

  • दुनियाभर में 26 करोड़ से ज्यादा लोग अवसाद से जूझ रहे हैं।
  • देश का हर 21वां इंसान है अवसाद का शिकार
  • भारत में 6 करोड़ से अधिक लोग हैं अवसाद की चपेट में
  • पूरी दुनिया के अवसाद से पीड़ित लोगों के 18 फीसदी से ज्यादा हैं अकेले भारत में है
  • पिछले 10 सालों में 50 फीसदी से अधिक अवसाद के मरीज बढ़े हैं
  • 15 से 29 साल की उम्र के लोगों में आत्महत्या की दूसरी सबसे बड़ी वजह अवसाद है

(The report is sponsored by SBI cards. Courtesy: MHFI)

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