लेखक: Admin
उपशीर्षक: भूलना की आदत भी भला कभी दिमाग के लिए फायदेमंद हो सकती है? भूलने को तो कमजोर दिमाग की निशानी बताया जाता है। लेकिन एक नए अध्ययन को जानने के बाद आपकी सारी धारणाएं बदल जाएंगी।
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महान भौतिकशास्त्री अल्बर्ट आइंस्टीन के नटखट भरी भुलने की आदत विश्व प्रशिद्ध है । प्राचीन ग्रीस के दार्शनिक थेल्स ऑफ मिलेटस को “अनुपस्थित-दिमाग वाला प्रोफेसर” कहा जाता है क्योंकि एक रात वो आकाश का सर्वेक्षण करने पर इतना केंद्रित हो गए की अपनी स्थिति भी भूल गए और एक कुएं में गिर गये।
अक्सर हम जब कोई घर के कामों को करना भूल जाते हैं तो हमें भुलक्कड़ का तमगा दिया जाता है। विशेष रूप से युवावस्था में चीजें भूलने की आदत तो हमें डांट तक सुनवा देती है। कभी हमसे कहा जाता है बिल जमा करा देना या सब्जी लेते आना, लेकिन एक बार में याद न रखना जैसे हमारी आदत बन जाती है। तब तो घरवाले झुंझला कर ये तक कहने लगते हैं युवावस्था में ही इतना भूल जाते हो तो जाकर चिकित्सक को दिखाओ ऐसे कैसे काम चलेगा। लेकिन अब जिस शोध के बारे में हम आपको बताने जा रहे हैं वो आपको चौंका कर रख देगी।
शोधकर्ताओं ने दावा किया है कि भूलना दिमाग के लिए बहुत जरूरी है। बल्कि भूलना तो सीखने की एक प्रक्रिया है। डबलिन के ट्रिनिटी कॉलेज और टोरंटो यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने यह शोध की है। वैज्ञानिकों का कहना है कि युवावस्था में भूलने को किसी प्रकार की बीमारी या परेशानी मत मानिए; यह भी सीखने की ही एक प्रक्रिया है और दिमाग के लिए अत्याधिक फायदेमंद है।
भूलना दिमाग को महत्वपूर्ण जानकारियों को याद रखने में में मदद करता है। अक्सर हम यही मानते आए हैं कि समय के साथ यादें भी धुंधली पड़ती जाती हैं। लेकिन शोधकर्ताओं का मानना है कि इसकी वजह दिमाग की स्टोर (संग्रह) करने की प्रक्रिया ही है। ट्रिनिटी कॉलेज के न्यूरोसाइंटिस्ट (तंत्रिका वैज्ञानिक) टॉमस रायन के अनुसार, अल्जाइमर जैसे मरीजों को छोड़कर सामान्य लोगों के लिए भूलना फायदेमंद साबित हो सकता है। इसका यह मतलब नहीं है कि जो बातें व्यक्ति भूलता है उसे वो दोबारा याद नहीं आएंगी। बस दिमाग उन तक पहुंच नहीं पाता।
दिमाग ही यादों को चुनता है
शोधकर्ताओं ने दावा किया है कि दिमाग ही यह तय करता है कि हमें किन बातों को याद रखना है और कौन सी बात हम भूल सकते हैं। यह तय करने के बाद दिमाग फिर उसी हिसाब से उन यादों को जमा करने और हटाने का काम करता रहता है। हम अपनी पूरे जीवनकाल में अनगिनत यादें बनाते हैं लेकिन इनमें से कुछ को ही याद रख पाते हैं।
कुछ यादें स्थायी रूप से न्यूरॉन्स की टुकड़ियों में जमा होती हैं। यह वो यादें होती हैं जो व्यक्ति के अवचेतन मन में रह जाती हैं। अवचेतन मन में जो बातें रह जाती हैं व्यक्ति उन बातों को कभी नहीं भूलता है।
बेहतर फैसले लेने में मिलती मदद
टोरंटो यूनिवर्सिटी के पॉल फ्रैंकलैंड कहते हैं कि इस प्रकार से भूलने से व्यवहार को ज्यादा लचीला बनाने में मदद मिलती है। साथ ही बेहतर फैसले लेने की क्षमता भी बढ़ती है। शोधकर्ताओं का कहना है कि शोध के नतीजे बताते हैं कि बीमारी के कारण खोई हुई यादों को बहाल करना संभव है। हालांकि, अल्जाइमर जैसी बीमारी की स्थिति में ऐसा नहीं हो पाता।
(The report is sponsored by SBI cards. Courtesy: MHFI)