Mental Health

मुक्ताक्षर

दोपहर की झपकी घट रही याददाश्त को नियंत्रित कर सकती है

लेखक: Admin

उपशीर्षक: वैज्ञानिकों का कहना कि दोपहर में लम्बी नींद की जगह कुछ मिनटों की झपकी लेना ही याददाश्त के लिए ज्यादा फायदेमंद है।

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नींद की अहमियत किसी से छिपी नहीं है। विशेष रूप से दिमाग और नींद का तो आपस में बहुत ही गहरा संबंध है। पर्याप्त नींद न लेने से हम विभिन्न प्रकार की शारीरिक और मानसिक बीमारियों का शिकार हो सकते हैं यह तो सब जानते हैं। लेकिन कम ही लोग यह जानते हैं कि नींद की झपकी मात्र हमारी घट रही याददाश्त तक को नियंत्रित कर सकती है।

युवाओं की भी घट रही याददाश्त:

यह तो हम जानते ही हैं कि उम्र बढ़ने के साथ-साथ हमारी याददाश्त भी घटने लग जाती है। वर्तमान दौर की बात करें तो युवाओं में भी भूलने की बीमारी बढ़ रही है। कोरोना और डिजिटल युग में बच्चे, युवा और बुजुर्ग सबकी याददाश्त पर बुरा असर पड़ा है। खतरे वाली बात यह है कि आजकल 30 से 40 की उम्र के लोगों में भी आसानी से अल्जाइमर या मनोभ्रंश (डिमेंशिया) के लक्षण दिखने लगे हैं।

दोपहर की झपकी का उठाएं फायदा:

लेकिन अगर कमजोर हो रही याददाश्त को नियंत्रित करना चाहते हैं तो चीन में हुए इस अध्ययन पर ध्यान दें जो बताता है कि उम्र के साथ घट रही याददाश्त को नियंत्रित करना चाहते हैं तो दोपहर में कम से कम 5 मिनट की झपकी अवश्य लें। कुछ अन्य अध्ययनों में भी वैज्ञानिकों ने दोपहर की झपकी को दिमाग के लिए फायदेमंद बताया है। वैज्ञानिकों के मुताबिक, उम्र के साथ नींद लेने का तरीका बदल जाता है लेकिन दोपहर में ली जाने वाली कुछ समय की नींद ज्यादातर लोग लेते हैं। लेकिन दोपहर को ज्यादा नींद नहीं, केवल 5 मिनट की झपकी को दिमाग के लिए फायदेमंद बताया गया है।

दोपहर की नींद के बाद लिया परीक्षण:

चीन में एक अध्ययन किया गया था जिसमें 60 साल की उम्र के तकरीबन 2,215 लोग शामिल थे। प्रतिभागियों में से 1,535 लोगों ने दोपहर में 5 मिनट से 2 घंटे के बीच की नींद ली। वहीं, 680 ऐसे भी थे जिन्होंने नींद नहीं ली। नींद का दिमाग पर असर जानने के लिए शोधकर्ताओं ने अध्ययन में शामिल लोगों की याददाश्त का टेस्ट लिया गया।

झपकी लेने वालों की याददाश्त बेहतर मिली:

शोध में नींद का असर बुजुर्गों पर दिखा। सामने आया कि जिन बुजुर्गों ने दोपहर में नींद ली थी उनकी याददाश्त बेहतर थी इनमें ज्यादातर बुजुर्ग वो थे जिन्होंने केवल पांच मिनट की झपकी ली थी। वैज्ञानिकों का कहना है कि दोपहर में लम्बी नींद की जगह कुछ मिनटों की झपकी लेना ही दिमाग के लिए ज्यादा फायदेमंद है।

घटती याददाश्त की परेशानी:

दिमाग की ऐसी कोशिकाएं जो याददाश्त को नियंत्रित करती हैं वो अगर सूखने लगती हैं तो उसका असर घटती याददाश्त के रूप में सामने आता है। अगर इसे नियंत्रित न किया जाए तो मनोभ्रंश यानी कि डिमेंशिया की स्थिति बनती है। जनरल साइकियाट्री जर्नल में छपी शोध की मानें तो 65 साल की उम्र तक हर 10 में से एक इंसान घटती याददाश्त से जूझ रहा है। मनोभ्रंश दो तरह का होता है। पहला वो जिसका इलाज संभव है। दूसरा वो जिसका कोई इलाज नहीं है। डीजेनरेटिव डिमेंशिया, अल्जाइमर्स भी इस श्रेणी में आते हैं।अल्जाइमर्स एसोसिऐशन के मुताबिक, 60 साल से अधिक उम्र की हर छह में से एक महिला अल्जाइमर रोग से पीड़ित होती है, वहीं इस आयु में 11 में से एक पुरुष अल्माइजर से पीड़ित होता है। वर्तमान में 30 से 40 की उम्र के लोगों में भी

आसानी से अल्जाइमर या मनोभ्रंश के लक्षण दिखने लगे हैं।

(The report is sponsored by SBI cards. Courtesy: MHFI)

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