Mental Health

मुक्ताक्षर

मदद की जगह खतरा पैदा कर रहे मानसिक स्वास्थ्य वाले ऐप

लेखक: Admin

उपशीर्षक: मानसिक स्वास्थ्य वाले ऐप को लेकर उपभोक्ता को सबसे अधिक सावधान रहने की जरूरत है। ऐसा क्यों है इस रिपोर्ट को पढ़कर समझ जाएंगे।

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मोजिला के शोधकर्ताओं ने उपभोक्ता द्वारा उपयोग किए जा रहे मानसिक स्वास्थ्य और प्रार्थना एप को लेकर चौंकाने वाला खुलासा किया है। यह अध्ययन मानसिक स्वास्थ्य और प्रार्थना वाले 32 ऐप के विश्लेषण पर आधारित है। जिन एप का विश्लेषण किया गया है वो सभी अवसाद, तनाव, चिंता, मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता जैसे गंभीर मुद्दों के बारे में जानकारी देने का दावा करते हैं। इसके अलावा वे धर्म आधारित सेवाएं भी प्रदान करते हैं।

मदद की आड़ में खेल:

मोजिला टीम के अध्ययनकर्ताओं ने पता लगाया कि इन 32 ऐप में से 29 ऐप ऐसे हैं जिनकी कोई सुरक्षित गोपनीयता नीति नहीं है। शोधकर्ता इस बात को लेकर हैरान हैं कि ये ऐप उपभोक्ता के डाटा का प्रबंधन कैसे करते हैं। शोधकर्ताओं की टीम इसको लेकर सशंकित थी। टीम का कहना है कि ये ऐप मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित संवेदनशील और गंभीर मुद्दों के लिये तैयार किये गये हैं। मगर सोचने वाली बात यह है कि ये गोपनीयता नीति के नाम पर उपभोक्ता से बहुत ही अधिक निजी डेटा मांगते हैं। दूसरी बात यह कि इस प्रकार के ऐप अत्याधिक कमजोर पासवर्ड के साथ भी उपभोक्ता को पंजीकृत करने देते हैं।

मानसिक रोगियों के लिए खड़ी कर रहे समस्या:

मोजिला की इस टीम के प्रमुख जेन कैल्ट्राइडर बताते हैं कि ये ऐप पहले से ही मानसिक तौर पर परेशान उपभोक्ता को और ही अधिक परेशानी में डाल रहे हैं। यह उपभोक्ता के निजी जानकारी इकट्ठा करते हैं और उन्हें दूसरों से साझा करते हैं। ये उपभोक्ता की मनोदशा, मानसिक स्थिति और बायोमेट्रिक डाटा को भी साझा करने से नहीं चूकते।

सावधान रहना होगा:

मोजिला की टीम के मुताबिक, बेटर हेल्प, यूपर, वोबोट, बेटर स्टॉप सुसाइड, प्रे डॉट कॉम और टॉक स्पेस ऐसे ही कुछ ऐप हैं। इनमें से कुछ उपभोक्ता की मानसिक स्थिति से संबंधित आंकड़ों को विज्ञापन के लिये भी साझा करते हैं। वोबोट ऐसा करने में अग्रणी है। मोजिला ने ऐसे ऐप को शेर की खाल में भेड़िया कहा है जो कि आंकड़े लेने वाली मशीन की तरह काम करते हैं। यह लोगों में गंभीर अवसाद की वजह बन सकते हैं।

इंटरनेट पर बढ़ रही मानसिक रोगियों की निर्भरता:

मालूम हो कि देश-दुनिया में मानसिक रोगियों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। थक-हार के वो अपनी समस्या के समाधान के लिए इंटरनेट पर खोज कर रहे हैं कि कहीं से कोई वेबसाइट या एप उनके लिए मददगार साबित हो जाएं। ऐसे लोग पहले से ही परेशान होते हैं इसलिए बहुत ही उतावलेपन में किसी भी एप की जानकारी लिए बिना ही उसे इस्तेमाल करने लग जाते हैं। बस इसी बात का फायदा एप बनाने वाले उठा रहे हैं जो कि लोगों की मानसिक स्वास्थ्य समस्या के लिए असंवेदनशील हो चुके हैं।

(The report is sponsored by SBI cards. Courtesy: MHFI)

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