Mental Health

मुक्ताक्षर

बच्चे का हर वक्त मां से चिपके रहना प्यार नहीं, चिंता का लक्षण है

लेखक: Admin

उपशीर्षक: वैसे तो बच्चे का मां से चिपकना हर मां को भाता है लेकिन अगर यह अति में है तो सावधान रहने की जरूरत है।

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मेरा बच्चा मुझे इतना प्यार करता है कि मुझसे दूर ही नहीं रह सकता। एक पल मैं आंखों से ओझल हो जाऊं तो वो बेचैन हो जाता है। कोई और उसे बहलाने की कोशिश करे तब भी वह नहीं बहलता। उसे बस मेरे ही साथ रहना अच्छा लगता है। ऐसी बातें करके मांए भले ही गर्व से कहती हों कि बच्चे का उनके बिना न रह पाना मां और बच्चे के बीच अटूट प्यार को दर्शाता है, लेकिन शोध इस बारे में कुछ और ही कह रही है जिसके बाद सावधान होने की जरूरत है।

अमेरिका के सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन में प्रकाशित एक लेख के मुताबिक, अगर बच्चा लोगों से मेलजोल करने में झिझकता है और सिर्फ मां से ही चिपकता है तो यह कोई सामान्य प्रक्रिया नहीं है। यह चिंता (एंग्जाइटी) के लक्षण की निशानी है।

हर पांचवां बच्चा है चिंता (एंग्जायटी) का शिकार

एक अन्य अध्ययन बताता है कि दुनिया भर में हर पांचवां बच्चा चिंता (एंग्जायटी) से ग्रसित है। अफसोस की बात यह है कि बच्चे के घरवाले यहां तक की अभिभावक भी इसे सामान्य मानते हैं। आगे जाकर बच्चे को इससे बहुत नुकसान उठाना पड़ सकता है और मानसिक समस्या से जूझना पड़ सकता है। इस प्रकार के बच्चे लोगों से मिलने से कतराते हैं। दोस्तों के साथ भी वो ज्यादा घुल-मिल नहीं पाते और केवल माता-पिता से चिपके रहते हैं।

ऐसे पहचानें लक्षण?

  • घर पर लोगों के आने पर अकेले कमरे में चले जाना
  • किसी से बात करने से बचना और ना मिलने के बहाने बनाना
  • किसी कार्यक्रमों में जाने से मना करना और कई प्रकार के बहाने बनाना। मां को भी ना जाने के लिए कहना
  • भीड़-भाड़ वाली जगहों पर जाने पर पेट दर्द, जी मचलाना, सिर दर्द और चक्कर आना जैसी शिकायत करना।
  • एकाग्रता में कमी
  • बिस्तर गीला करना, नींद आने में परेशानी
  • रोजमर्रा के कार्य करने में घबरा जाना और परेशान होना
  • आंखें झुकाकर बिना चेहरा देखे बात करना।
  • अगर सबके सामने हैं तो माता-पिता के कानों में ही बात करना
  • कक्षागृह में बोलने से डरना।

बाल मनोरोग विशेषज्ञ डॉ कविता गुप्ता कहती हैं लक्षणों को जितनी जल्दी पहचान लिया जाए उतना अच्छा है। इससे बच्चों को गंभीर मानसिक समस्या से बचाना आसान हो जाता है। वह कहती हैं अभिभावक खुद भी मजबूत बने, हर समय बच्चे को खुद से न चिपकने की सलाह दें। जब बच्चा परेशान लगे तो यह न पूछें कि क्या तुमको घबराहट हो रही है बल्कि यह पूछें कि कैसा लग रहा है? समस्या ज्यादा बढ़ने पर तुरंत ही किसी मनोचिकित्सक की सलाह लें। योग और ध्यान खुद भी करें और बच्चे को भी कराएं।

(The report is sponsored by SBI cards. Courtesy: MHFI)

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