लेखक: Admin
उपशीर्षक: यूनीसेफ की जानकारी के मुताबिक, यूक्रेन पर रूसी सैन्य बलों के आक्रमण के बाद यौन व लिंग-आधारित हिंसा का खतरा भी बढ़ा है।
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युद्ध हमेशा ही बुरा होता है। विशेष रूप से युद्ध भूमि पर रह रहे वाशिंदों के लिए। यूक्रेन में कुछ ऐसा ही हो रहा है जहां पिछले 11 हफ्तों से जारी विनाशकारी युद्ध ने बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को बुरी तरह से झकझोर दिया है। उनकी मानसिक स्वास्थ्य ज़रूरतों को पूरा करने और मनोसामाजिक समर्थन सुनिश्चित करने के लिए यूनिसेफ को प्रयासों का दायरा व स्तर तेजी से बढ़ाना पड़ रहा है। मानसिक आघात झेल रहे बच्चों की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है।
यूनीसेफ की जानकारी के मुताबिक, यूक्रेन पर रूसी सैन्य बलों के आक्रमण के बाद यौन व लिंग-आधारित हिंसा का खतरा भी बढ़ा है। बच्चों की मानसिक स्थिति बहुत दयनीय है। यूरोप व मध्य एशिया में बाल संरक्षण मामलों के यूनीसेफ़ के परामर्शदाता ऐरन ग्रीनबर्ग कहते हैं, “हम निश्चित रूप से बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य के लिए चिंतित हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ के मुताबिक, इस युद्ध का बच्चों पर बहुत विनाशकारी असर रहा है। उनकी मानसिक स्थिति तो हमें चिंता में डाल रही है।“
यूएन ने बमबारी व हमलों की निंदा करते हुए सचेत किया है कि इससे बच्चों को गंभीर मानसिक सदमा पहुंचा है। इसका कारण, शारीरिक व यौन दोनों प्रकार की हिंसा का प्रत्यक्ष अनुभव करना है।
तनाव होने की आशंका:
यूनीसेफ के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, मानसिक सदमा झेल रहे कुछ बच्चों में करीब दो से चार महीनों के बाद, तनाव व्याधि होने की आशंका है। उन्होंने बताया कि 24 फरवरी से यूनीसेफ़ और अन्य साझेदारों ने एक लाख 40 हज़ार से अधिक बच्चों व उनकी देखभाल कर रहे लोगों तक, मानसिक स्वास्थ्य संबधी सेवाएं पहुंचाई हैं।
बाल मनोवैज्ञानिकों की कमी
यह भी जानकारी है कि पर्याप्त संख्या में बाल मनोवैज्ञानिक और अन्य विशेषज्ञों को ढूंढ पाना आसान नहीं हो पा रहा। क्योंकि वे भी इस हिंसक संघर्ष से उतना ही प्रभावित हुए हैं।
यूक्रेन में, यूनीसेफ़ ने सदमे का शिकार बच्चों को मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य सेवाएं देने के लिये 56 सचल दस्तों को तैनात किया है। संयुक्त राष्ट्र एजेंसी ने कहा है कि युद्ध की विभीषिका की चपेट में यूं तो महिला, पुरुष, युवा, बच्चे सभी हैं और यूएन सभी को सलामत रखने के लिए प्रयासरत है। कई बच्चों को वहां से निकाल पाने में कई तरह की परेशानियां आ रही हैं।
(The report is sponsored by SBI cards. Courtesy: MHFI)