लेखक: Admin
उपशीर्षक: अमूमन देखा जाता है कि एडीएचडी यानी की अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर ज्यादातर बच्चों को ही होता है, लेकिन अब व्यस्क भी इसका शिकार होने लगे हैं।
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अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर एक ऐसी बीमारी है जो दिमाग से जुड़ी हुई है। इस बीमारी का शिकार ज्यादातर बच्चे ही होते हैं। लेकिन हालिया शोध ने इस भ्रम को तोड़ दिया है। शोध के आंकड़े बताते हैं कि अब व्यस्क भी अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर की चपेट में आने लगे हैं और धीरे-धीरे यह आंकड़ा बढ़ता ही जा रहा है।
क्या है एडीएचडी:
अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर एक प्रकार का मानसिक विकार है। इस विकार से पीड़ित व्यक्ति के दिमाग का विकास सामान्य व्यक्ति की तुलना में काफी धीरे होता है या फिर दिमाग का विकास ठीक से नहीं हो पाता।
2.8 प्रतिशत व्यस्क चपेट में:
एडीएचडी इंस्टीट्यूट के अध्ययन के मुताबिक, वयस्कों को भी इस बीमारी ने अपनी गिरफ्त में लेना शुरू कर दिया है जो कि खतरे की घंटी है। यह बीमारी बच्चों में ही ज्यादा सुनाई देती थी। भारत के करीब 12 फीसदी से ज्यादा बच्चे इस बीमारी का शिकार हैं। अब अध्ययन बताता है कि दुनिया में 18 से 44 साल के तकरीबन 2.8 प्रतिशत लोग अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर से ग्रसित हैं। इंस्टीट्यूट का कहना है कि आने वाले सालों में यह ग्राफ बढ़ सकता है। सही समय पर जांच न होने पर इस विकार के लक्षण उम्र के साथ गंभीर भी हो सकते हैं।
शारीरिक स्वास्थ्य के प्रति लापरवाह:
एक अन्य शोध बताती है कि एडीएचडी से पीड़ित लोग अपने शारीरिक स्वास्थ्य के प्रति उदासीन हो जाते हैं। व्यायाम आदि के लिए रुचि नहीं बचती और खानपान भी बेकार हो जाता है। खुद पर मेहनत करने से ज्यादा ये कोई भी दवा कभी भी ले लेते हैं। एक शोध बताता है कि एडीएचडी के मरीज बुरी आदतों का शिकार भी जल्दी हो सकते हैं। इसमें नशे की लत भी शामिल है।
ये हैं लक्षण:
- एडीएचडी का सबसे बड़ा लक्षण किसी भी कार्य में ध्यान केंद्रित न कर पाना है। पीड़ित ध्यान केंद्रित न करने के अभाव में जरूरी जानकारी को पकड़ नहीं पाता। यहां तक की किसी से बात करने तक में उनको परेशानी होती है।
- कुछ मामलों में इसके उलट भी होता है। इसमें एडीएचडी पीड़ित लोग किसी एक काम पर ही जरूरत से ज्यादा ध्यान केंद्रित करने लगते हैं। हालांकि ऐसा वो डर के मारे करते हैं जिससे उनमें आत्मविश्वास कम हो जाता है और काम को करने में डर बना रहता है।
- भूलना इनके लिए बहुत आम हो जाता है। वह रोजमर्रा की दिनचर्या को भी ठीक ढंग से याद नहीं रख पाते। दिन, तारीख, नाम आदि याद रखने में भी उनको परेशानी होती है।
- एडीएचडी के शिकार लोग कभी-कभी जरूरत से ज्यादा बोलने भी लग जाते हैं। वह बातचीत के दौरान टोकाटाकी भी करने लग जाते हैं। यहां तक कि वार्तालाप के दौरान किसी भी बात पर एकदम से प्रतिक्रिया भी दे देते हैं। इससे उनके रिश्ते भी खराब हो जाते हैं।
- एडीएचडी के मरीज हीनता से भर जाते हैं और खुद में कोई विशेषता भी नहीं तलाश पाते। वह खुद को बहुत ज्यादा नकारात्मक नजरिए से देखते हैं। खुद की दूसरों से तुलना करते हैं और दुखी होते हैं।
- एडीएचडी के मरीजों का प्रबंधन बहुत ज्यादा खराब होता है ये किसी भी चीज को ठीक से नहीं कर पाते
- काम को टालते रहना इनकी आदत बन जाती है
- जो काम जब करने का नहीं होता तब ये करते हैं; जैसे, रात को व्यायाम करना, सुबह आराम करना
- थकान, तनाव और चिंता इनको घेरे रहती है क्योंकि एडीएचडी के मरीज कभी शांत नहीं बैठते और इनका दिमाग हर समय अशांत रहता है।
- चिड़चिड़ापन होने के साथ हमेशा मूड खराब रहना भी मुख्य लक्षणों में से एक है।
उपाय:
- एडीएचडी के लक्षण दिखने पर तुरंत चिकित्सक से संपर्क साधें
- हल्के लक्षण होने पर कॉग्निटिव बिहेविरियल थेरेपी की मदद ले सकते हैं।
- तनाव रोकने के लिए योग, व्यायाम और मेडिटेशन का सहारा लें
- पोषक तत्वों से भरपूर खाद्य सामग्री को अपनी डाइट का हिस्सा बनाएं
- रात को जल्दी सोएं और सुबह जल्दी उठें
(The report is sponsored by SBI cards. Courtesy: MHFI)