लेखक: Admin
उपशीर्षक: कई सारे अध्ययनों में नियमित रूप से लिखने वाले लोगों का मानसिक स्वास्थ्य न लिखने वालों की तुलना में कहीं अधिक बेहतर पाया गया है।
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कोरोना के कारण वर्तमान में लोगों के मानसिक स्वास्थ्य का हाल बहुत बुरा हो चुका है। चारों ओर चिंता और तनाव का ही बोलबाला है। बावजूद इसके कम ही लोग मानसिक स्वास्थ्य को लेकर गंभीर हैं जबकि कई सारे तरीके हैं जिनसे मानसिक स्वास्थ्य को दुरुस्त रखा जा सकता है। अगर प्रचलित तरीकों की बात करें तो ध्यान, योग और कई प्रकार के आधुनिक और पारंपरिक तरीके मौजूद हैं जिनकी ओर धीरे-धीरे ही सही, पर लोग आकर्षित हो रहे हैं।
लेकिन ये भी सच है कि सही जानकारी के अभाव में लोगों को इन तरीकों और थेरेपी के लिए कहीं न कहीं जाकर दिशा-निर्देश लेना ही पड़ रहा है और इसमें खर्च बहुत ज्यादा है। इस वजह से कई लोग तो कुछ भी नहीं करते या करते भी हैं तो बीच में ही छोड़ देते हैं।
ऐसे में घर बैठे मुफ्त में खुद को मानसिक तौर पर मजबूत रखने का कोई बहुत ही रोचक और प्रभावशाली तरीका हाथ लग जाए तो क्या आप खुश नहीं होंगे? ‘लेखन क्रिया’ ऐसा ही एक उपाय है।
200 से अधिक अध्ययनों में हुई पुष्टि
अभी तक हुई 200 से भी ज्यादा अध्ययनों में इस बात की पुष्टि हो चुकी है। इन अध्ययनों में पाया गया है कि जो लोग नियमित रूप से लिखते हैं उनका मानसिक स्वास्थ्य न लिखने वालों की तुलना में बहुत बेहतर रहता है। साथ ही उनकी आंतरिक शक्ति भी बढ़ती है।
याद रखने और समझने की क्षमता बढ़ती है
यही नहीं, लिखने से याद रखने और समझने की क्षमता भी बढ़ती है। नॉर्वेजियन युनिवर्सिटी ऑफ़ साइंस एंड टेक्नोलॉजी की शोध में यह पता चला है। शोधकर्ताओं ने हस्त लेखन एवं टाइपिंग करते समय प्रतिभागियों के दिमाग की हलचल यानी कि ब्रेनवेव पैटर्न का विश्लेषण किया। इनमें बच्चे और वयस्क शामिल थे। निष्कर्ष में पाया गया कि हाथ से लिखने या टाइपिंग करने पर मस्तिष्क के पेरीटिएल और केंद्रीय (सेंट्रल) हिस्से में एक साथ (सिंक्रोनाइज) गतिविधियां होती है। दिमाग के ये हिस्से याद रखने और नई जानकारियों को समझने में मददगार होते हैं।
होते हैं ये मानसिक फायदे
- लेखन के सहारे उन भावनाओं को गोपनीय तौर पर व्यक्त किया जा सकता है जो सामने से साझा नहीं की जा सकतीं। ऐसा कर व्यक्ति बहुत हल्का महसूस करता है और तनाव से बचा रहता है।
- जिन लोगों में लिखने की आदत होती है उनके अन्दर सकारात्मक रूप से आत्म-जागरूकता का भी बोध जागृत होता है।
- नियमित रूप से लिखने वाले लोग अपने व्यवहार, भावना और उसूलों के प्रति जागरूक रहने लगते हैं। इससे उनका आत्मविश्वास और मनोबल बढ़ता है।
(The report is sponsored by SBI cards. Courtesy: MHFI)