लेखक: Admin
उपशीर्षक: 90 हजार लोगों पर किए गए शोध के मुताबिक, देर रात मोबाइल का उपयोग मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीर दुष्प्रभाव डालता है। अवसाद के अलावा यह ब्रेन कैंसर का भी कारण बन सकता है
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यह तो सभी जानते हैं कि मोबाइल के अत्यधिक उपयोग से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित हो रहा है। पर क्या आप जानते हैं कि रात दस बजे के बात इसका साथ आपको अकेलेपन और अवसाद के दलदल में भी धकेल सकता है।
ब्रिटेन में हुए एक अध्ययन के मुताबिक रात में 10 बजे के बाद मोबाइल का इस्तेमाल करने से अवसाद और अकेलेपन जैसी समस्याएं बढ़ जाती हैं। करीब 90 हजार से अधिक लोगों पर यह अध्ययन की गई थी जिसके चौंकाने वाले परिणाम सामने आए। अध्ययन में पाया गया कि जो लोग रात दस बजे के बाद मोबाइल से चिपके रहते हैं उनमें अवसाद और अकेलेपन का खतरा बढ़ रहा है।
हो रहे बहुतेरे नुकसान:
सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) का मानना है कि हालांकि कोई प्रामाणिक सबूत नहीं हैं जिनके आधार पर यह कहा जा सके कि मोबाइल फोन से सीधे क्या और कितना नुकसान होता है, लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से इसके बहुत नुकसान हैं, विशेष रूप से मानसिक सेहत पर। इसका रिश्तों पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।
जर्नल ऑफ क्लिनिकल ऑन्कोलॉजी के एक अध्ययन में माना गया है कि रात में मोबाइल का साथ अत्यंत खतरनाक है। कैलिफोर्निया डिपार्टमेंट ऑफ पब्लिक हेल्थ के मुताबिक, रात को मोबाइल देखना या इसे बिस्तर या सिर के पास रखकर सोना भी बहुत हानिकारक है। इससे ब्रेन कैंसर तक का खतरा बढ़ सकता है।
लत है कि बढ़ती ही जा रही:
आंकड़े बताते हैं कि भारत में 93 करोड़ से ऊपर मोबाइल उपभोक्ता हैं। टेलीकॉम रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया (ट्राई) के अनुसार 2.50 प्रतिशत से अधिक शहरी किशोर मोबाइल फोन का इस्तेमाल करते हैं।
बच्चे तो ऊर्जा का खजाना होते हैं और उनका जिज्ञासु मन लगातार उत्तेजना की तलाश में रहता है। ऐसी स्थिति में स्क्रीन टाइम से बेहतर विकल्प उनके पास नहीं होता। लेकिन ज्यादा स्क्रीन टाइम न सिर्फ आंखों के लिए बल्कि मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी खराब होता है। द लैंसेट चाइल्ड एंड अडोलेसेंट हेल्थ में प्रकाशित एक शोध के अनुसार, जो लड़के प्रतिदिन लगभग 90 मिनट स्क्रीन पर बिताते हैं और जो लड़कियाँ एक घंटा बिताती हैं, वे अपने जीवन के प्रति अधिक उदासीन होते हैं।
(ज्यादा स्क्रीन टाइम बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है http://mentalhealthcare.in/too-much-screen-time-affects-childrens-mental-health/)
एरिक्सन के एक अध्ययन के अनुसार 3.66 प्रतिशत लोगों में नोमोफोबिया जैसी समस्या के लक्षण देखे जाते हैं। 4.71 प्रतिशत लोग फोन को बिस्तर के पास रख कर सोते हैं और 5.80 प्रतिशत किशोर रात में सोने से पहले मोबाइल जरूर देखते हैं।
कुछ अध्ययनों में बताया गया है कि मोबाइल फोन के अनियंत्रित उपयोग से आवेग नियंत्रण की कमी और अवसाद का लक्षण पैदा हो सकता है और हम प्रौद्योगिकी व्यसन के शिकार हो सकते हैं। मोबाइल फोन की इस लत को नोमोफोबिया कहते हैं।
(नोमोफोबिया: मोबाइल फोन की लत आपको अवसाद में डाल सकती है http://mentalhealthcare.in/is-your-mobile-phone-addiction-aggravating-into-nomophobia/)
खुद को बचाएं:
सोने से पहले सोशल नेटवर्किंग साइट्स देखने से अच्छा है कि यूट्यूब पर ध्यान संगीत (मेडिटेशन म्यूजिक) या कोई और सुकून प्रदान करने वाला संगीत सुनें।
- कुछ उपायों से स्क्रीन टाइम को सीमित किया जा सकता है। अगर सुबह उठने पर थकान महसूस होती है तो याद करें कि बीती रात कितनी देर स्क्रीन के करीब थे। अगर यह समय ज्यादा था, तो उसे सीमित करें।
- दिन भर में तीन घंटे से ज्यादा समय मोबाइल फोन के साथ न बिताएं। लगभग हर स्मार्ट फोन में एप लॉक उपलब्ध है। रात में 10 बजे के बाद फोन बंद कर दें।
- पढ़ने के लिए स्क्रीन के बजाय किताबों की मदद लें। किताबों से सुकून मिलता है, चीजें ज्यादा याद रहती हैं।
- किशोरों के लिए नियम बनाया जाना चाहिए कि वे क्या देख सकते हैं।
- माता-पिता को अपना फोन टाइम भी कम करने की जरूरत है। दिन में कम से कम एक घंटा बिना किसी टेक्नोलॉजी के रहें।
- घर में जितने भी लोग हैं, बिना टीवी, फोन या लैपटॉप के साथ बैठें।
- खाना खा रहे हैं तो डायनिंग टेबल पर गैजेट्स न रखें। इस नियम का सख्ती से पालन करें।
- सोते हुए सेलफोन को तकिए या बिस्तर के पास न रखें।