लेखक: Admin
उपशीर्षक: देश के स्कूली बच्चों को चिंता और तनाव ने अपनी चपेट में ले लिया है। ऐसा नहीं है कि वो अपने स्कूली जीवन से खुश नहीं हैं, लेकिन परीक्षा और परिणाम उनके मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहा है।
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राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) ने जनवरी से मार्च 2022 के बीच देश के 28 राज्यों और 8 केंद्रशासित प्रदेशों के 3,79,842 स्कूली बच्चों पर सर्वेक्षण किया। इस सर्वेक्षण में बच्चों की मानसिक स्थिति थोड़ा परेशान करने वाली है। यह सामने आया कि ज्यादातर बच्चे चिंता का शिकार हैं। एनसीईआरटी ने विद्यार्थियों के मानसिक स्वास्थ्य एवं कल्याण से जुड़े अलग-अलग पहलुओं पर उनकी धारणा का पता लगाने के लिए यह सर्वेक्षण किया था। यह सर्वेक्षण स्कूली छात्रों के पाठ्यक्रम, शिक्षक शिक्षा प्रशिक्षण और शिक्षा से संबंधित अन्य क्षेत्रों में संबंधित कार्य करने के लिए एक आधार के रूप में कार्य कर सकता है।
73 फीसदी बच्चे स्कूली जीवन से संतुष्ट:
सर्वेक्षण में सामने आया कि देश में 6वीं से 12वीं तक के 73 फीसदी बच्चे स्कूली जीवन से संतुष्ट हैं। 33 फीसदी ऐसे हैं जो अधिकांश समय दबाव महसूस करते हैं। 29 फीसदी छात्रों में ध्यान केन्द्रता की कमी है, जबकि 43 फीसदी का मन पढ़ाई में नहीं लगता। सर्वेक्षण से पता चलता है कि जो विद्यार्थी इसको अपनी ज़िम्मेदारी समझते हैं कि वे जीवन में अच्छा करें, वे अपने स्कूली जीवन में संतुष्टि का अनुभव करते हैं। अधिकांश विद्यार्थी खुद को भरोसेमंद मानते हैं और समाज से सहयोग लेने में हिचकिचाते नहीं हैं, जो मानसिक स्वास्थ्य की सकारात्मक स्थिति को बनाए रखने के लिए सुरक्षात्मक कारक हैं। सर्वेक्षण में यह भी बताया गया है कि आमतौर पर विद्यार्थियों द्वारा खुशी का अनुभव किया जाता है। हालांकि, बार-बार मिजाज बदलने के साथ-साथ पढ़ाई, परीक्षाओं और परिणामों के बारे में चिंतित होने की बात भी विद्यार्थियों द्वारा दर्ज की गई।
माध्यमिक स्तर तक पहुंचने पर कम होने लगती है खुशी:
जैसे-जैसे विद्यार्थी माध्यमिक स्तर की ओर बढ़ते गए, उनकी शारीरिक बनावट, व्यक्तिगत और स्कूली जीवन से संतुष्टि, अपनी भावनाओं को साझा करने के लिए लोगों की उपलब्धता और खुशी के अनुभव को लेकर आत्मविश्वास की भावना में गिरावट देखी गई। सर्वेक्षण बताता है कि आमतौर पर ज्यादातर बच्चों ने स्कूली जीवन से खुशी और संतुष्टि व्यक्त की। वहीं, माध्यमिक स्कूल में ज्यादातर स्कूली छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य में गिरावट दर्ज की गई है।
लड़कियों में चिंता ज्यादा:
सर्वेक्षण में शामिल 81 फीसदी बच्चों में पढ़ाई, परीक्षा और परीक्षा परिणाम चिंता और तनाव की मुख्य वजह बन कर सामने आए। माध्यमिक स्कूल के बच्चों में परीक्षा और परिणामों को लेकर उनकी चिंता में भी बढ़ोतरी देखी गई। बच्चों नें परीक्षा और उसके परिणामों को सबसे बड़ा तनाव माना। सर्वेक्षण से यह भी पता चलता है की लड़कियों की तुलना में लड़कों ने बताया कि उनको कुछ अधिक खुशी का अनुभव होता है। लड़कियों ने अधिक मात्रा में यह बात दर्ज की कि उनको पढ़ाई, परीक्षा और परिणामों के बारे में चिंता बनी रहती है।
ऑनलाइन कंटेंट समझने में परेशानी:
सर्वेक्षण में यह भी सामने आया कि 51 फीसदी बच्चों को ऑनलाइन माध्यम से पढ़ाई में कंटेंट समझने में कठिनाई का सामना करना पड़ता है। वहीं 28 फीसदी सवाल पूछने में झिझकते हैं।
(The report is sponsored by SBI cards. Courtesy: MHFI)