Mental Health

मुक्ताक्षर

समय पर हस्तक्षेप से आत्महत्याओं को रोका जा सकता है।

लेखक: Admin

हर साल १० सितंबर को विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस (वर्ल्‍ड सुसाइड प्रिवेंशन डे) इंटरनेशनल एसोसिएशन फॉर सुसाइड प्रिवेंशन द्वारा आयोजित किया जाता है। इस कार्यक्रम में विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन (डब्ल्यूएचओ) भी सह-प्रायोजक के तौर पर शामिल होता है। इस वर्ष विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस २०२१ का थीम, “कार्य के द्वारा आशा का संचार” रखा गया है। यह थीम आत्महत्या को रोकने की दिशा में एक सामूहिक पहल का वादा करती है।

आत्महत्या रोकथाम दिवस का उद्देश्य दुनिया भर में जागरूकता बढ़ाना है ताकि आत्महत्या को रोका जा सके। २०१४ में पेश विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन की पहली ग्‍लोबल रिपोर्ट के मुताबिक, हर साल ८ लाख से अधिक लोग आत्महत्या करके मरते हैं। मतलब हर ४०वें सेकैंड में एक आत्महत्या का  मामला सामने आ रहा है। अकेले यूएसए में साल २०१९ में ५२,०९९ आत्महत्या के मामले सामने आए। इनमें ७५ प्रतिशत आत्महत्याएं निम्न और मध्यम आय वाले देशों में होती हैं।

एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक साल २०१९ में भारत में १,३९,१२२ आत्महत्या के मामले दर्ज हुए। भारत में पिछले पांच दशकों में आत्महत्या के  मामलों में बढ़ोतरी हुई है।

राज्यों की  बात करें तो सबसे ज्यादा (१८,९१६) आत्महत्या के मामले महाराष्ट्र में दर्ज किए गए। वहीं तमिलनाडु में १३,४९३ पश्चिम बंगाल में १२६६५ मध्य-प्रदेश में १२,४५७, कर्नाटक में ११,२२८ मामले दर्ज किए गए।

आत्महत्या दुनिया भर में होती है और किसी भी उम्र में हो सकती है। वैश्विक स्तर पर, ७० वर्ष या उससे अधिक आयु के लोगों में आत्महत्या की दर सबसे अधिक है। हालांकि कुछ देशों में सबसे अधिक आत्‍महत्‍या की दर युवाओं के बीच पाई जाती है। विशेष रूप से, आत्महत्या विश्व स्तर पर १५ से २९ वर्षीय बच्चों में मृत्यु का दूसरा प्रमुख कारण है।

कोविड महामारी के बाद तो स्थिति और भी खतरनाक हो गई है। कोरोना महामारी के कारण बहुत से लोग कई कारणों से जैसे नौकरी छूटना, अपनों को खोना, अकेलापन के कारण आत्महत्या जैसे असाधारण कदम उठाने के लिए मजबूर हुए ।

जर्नल ऑफ साइकोएक्टिव ड्रग्स में नवंबर २०२० प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक, कोविड के आगमन के बाद से १८ से ३५ वर्ष की आयु के युवा वयस्कों में अकेलेपन और अवसादग्रस्तता के लक्षणों में “खतरनाक” वृद्धि हुई है। अवसाद और अकेलापन अक्सर साथ-साथ चलते हैं, और यह अनुमान लगाया जाता है कि आत्महत्या के सभी प्रयासों में से आधे से अधिक में अवसाद एक भूमिका निभाता है।

आमतौर पर महिलाओं की तुलना में पुरुषों में आत्महत्या की दर ज्‍यादा है। अमीर देशों में महिलाओं की तुलना में पुरुष तीन गुना अधिक आत्महत्या से मरते हैं। आंकड़ों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि आत्‍महत्‍या एक गंभीर समस्‍या है, जिसका समाधान होना जरूरी है।

आत्‍महत्‍या क्‍या है? 

आत्महत्या का प्रयास अपने आप में एक मानसिक बीमारी नहीं है, लेकिन उपचार योग्य मानसिक विकारों का एक गंभीर संभावित परिणाम है जिसमें प्रमुख रूप से अवसाद, बाइपोलर डिसऑर्डर, पोस्ट-ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर, बॉर्डरलाइन पर्सनालिटी डिसऑर्डर, सिज़ोफ्रेनिया, सब्‍सटैंस यूज डिसऑर्डर और चिंता शामिल हैं। जब कोई व्‍यक्ति अवसाद और निराशावाद के घेरे में आ जाए और समस्‍या का समाधान दिखाई देना बंद हो जाए और किसी तरह का भावनात्‍मक सहारा भी न मिले तो ऐसी स्थिति में व्‍यक्ति आत्‍महत्‍या कर लेता है।

 आत्‍महत्‍या के पहले संकेत:

आत्‍महत्‍या से जुड़े कुछ संकेत हैं जो आत्‍महत्‍या से पहले प्राय: व्यक्ति के अंदर दिखाई देते हैं। ऐसे व्‍यक्ति के अंदर अचानक अकारण रोने की भावना उत्‍पन्‍न होने लगती है। जब कोई व्‍यक्ति आत्‍महत्‍या के तरीकों और कैसे किया जाता है इसकी परताल करने लगे, आपराधिक व्‍यवहार की तरफ छुकने लगे, सामान्य-सी बात पर भी क्रोधित हो जाये, सामाजिक रिश्‍ते और जिम्‍मेदारियों से दूर भागने लगे तो फिर उस व्यक्ति को या उनके परिवार दोस्तों को सतर्क हो जाना चाहिए।

 आत्‍महत्‍या के कारण:

आत्‍महत्‍या करने के पीछे कई कारण होते हैं। व्‍यक्ति में अपराधबोध होना, घोर निराशा, हमेशा अवसादग्रस्‍त रहना, पढ़ाई और बिजनेस में असफलता, नौकरी छूट जाना, रिश्‍तों में किसी को खोने का भय, पारिवारिक कलह, और लाइलाज बीमारी  इसके लिए जिम्‍मेदार हो सकते हैं।

बचाव कैसे करें?

आत्महत्या को रोका जा सकता है अगर समय पर कदम उठाये जाएँ। आत्महत्या के संभावित कारण का शीघ्र पहचान करके और समुचित उपचार/उपाय करके आत्महत्या का प्रयास करने वाले लोगों को इससे बचाया जा सकता है ।

मनोवैज्ञानिक परामर्शदाता डॉ कुमुद श्रीवास्तव के अनुसार, यदि आपके परिवार में कोई व्यक्ति या कोई दोस्‍त अवसादग्रस्‍त है तो उसे कभी अकेला न छोड़ें। यदि वह हमेशा चुप-चुप और अकेला रहता है तो उसे भावनात्‍मक सहारा दें। ऐसे व्‍यक्तियों की समस्‍या के समाधान के लिए नए विकल्‍पों की तलाश करें। यदि कोई ब्रेकअप की वजह से अवसाद में है तो उसे वर्तमान रिश्‍तों के मूल्‍यों के बारे में बताएं। ऐसे व्‍यक्तियों को तनावपूर्ण माहौल से दूर रखें। अगर व्‍यक्ति अवसाद, सिजोफ्रेनिया या अन्‍य किसी मानसिक विकार से ग्रसित है तो उसे किसी अच्‍छे मानसिक रोग विशेषज्ञ से इलाज कराना चाहिए।

आत्महत्या का जब भी विचार आये तो ऐसे व्यक्ति को अपने वातावरण को बदल कर खुशहाल वातावरण में ले जाना चाहिए। ताजी हवा लेने, बगीचे में टहलने, शारीरिक गतिविधियाँ करने, योग और नया शौक विकसित करने से आत्महत्या का विचार दूर होता है। ऐसे लोग अगर जानवर का पालन करें तो उनमे अकेलेपन कम कम हो सकता है।

याद रखें, समय पर हस्तक्षेप से आत्महत्याओं को रोका जा सकता है।

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