लेखक: Admin
उप-शीर्षक: हर साल विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस की एक अलग थीम होती है और इस बार की थीम है “एक असमान दुनिया में मानसिक स्वास्थ्य” ताकि इस असमान दुनिया में सभी तक मानसिक चिकित्सा पहुंच पाए, लोगों में जागरुकता आए और मेडिकल सुविधाओं में सुधार कर लोगों के बेहतर स्वास्थ्य में मदद की जाए
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21वीं सदी “मानसिक संकट” का युग है। आधुनिक जीवनशैली की मांगों के दबाव के कारण बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक हर कोई तनाव में जी रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि 2030 तक, तनाव संबंधी बीमारियां संक्रामक रोगों से अधिक हो जाएंगी। ऐसे में यह बहुत जरूरी है कि हम मानसिक स्वास्थ्य के महत्व को समझें और उसके संरक्षण के लिए सजग व तत्पर हों।
दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के मनोचिकित्सा विभाग के डॉक्टर (प्रोफेसर) नंद कुमार का कहना है कि मानसिक स्वास्थ्य को लेकर कई तरह की भ्रांतियां हैं और जागरूकता की बेहद जरूरत है। अधिकांश लोगों को पता नहीं है कि मानसिक स्वास्थ्य क्या है और लोग अक्सर मानसिक स्वास्थ्य को पागलपन से जोड़ देते हैं। मानसिक स्वास्थ्य के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस मनाना बहुत जरूरी है।
विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस 2021:
मानसिक स्वास्थ्य एक ऐसा विषय है जो हमारे जीवन में बेहद अहमियत रखता है। लेकिन लोग इसकी अनदेखी ही करते हैं। मानसिक तनाव, अवसाद, चिंता, हिस्टीरिया, डिमेंशिया, फोबिया जैसी कई बीमारियां हैं जो पूरी दुनिया में तेजी से बढ़ रही हैं। कोविड-19 के बाद से तो हमारे दैनिक जीवन में काफी बदलाव आया है।
हाल ही में आई यूनिसेफ की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 15 से 24 वर्ष के लगभग 14 प्रतिशत या 7 में से 1 युवाओं ने अक्सर उदासी महसूस किया। लेकिन हैरानी की बात यह है कि उनमें से केवल 41 फीसदी ने ही अपनी मानसिक बीमारी का इलाज कराने के बारे में सोचा। ऐसे में मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरुकता आज के दौर में और भी प्रासंगिक हो जाती है।
क्यों मनाया जाता है विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस:
जीवनशैली में बदलाव, अपने आप में उलझे रहना और सामाजिक जीवन से दूरी, चिंता और तनाव का कारण बनते जा रहे हैं। आगे जाकर यह अवसाद के साथ-साथ अन्य मानसिक रोगों जैसे मानसिक तनाव, अवसाद, चिंता, हिस्टीरिया, मनोभ्रंश, फोबिया आदि का कारण बन जाता है। इस तरह की बीमारियों और मानसिक विकारों को लेकर लोगों के बीच जागरूकता फैलाने के मकसद से हर साल 10 अक्टूबर को विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस (वर्ल्ड मेंटल हेल्थ डे) मनाया जाता है।
विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस की शुरुआत कब हुई:
विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस की शुरुआत वर्ष 1992 में हुई थी। इस दिन को पहली बार 1992 में संयुक्त राष्ट्र के उप महासचिव रिचर्ड हंटर और वर्ल्ड फेडरेशन फॉर मेंटल हेल्थ की पहल पर मनाया गया था। इसके बाद संयुक्त राष्ट्र के तत्कालीन महासचिव यूजीन ब्रॉडी ने एक थीम निर्धारित करने का फैसला किया और इस दिन को मनाने की सलाह दी। तब से हर साल 10 अक्टूबर को मानसिक स्वास्थ्य के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए दुनिया भर में विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
क्या है साल 2021 की थीम:
वर्ल्ड फेडरेशन फॉर मेंटल हेल्थ के अध्यक्ष डॉ इंग्रिड डेनियल ने विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस 2021 के लिए थीम की घोषणा की है। इस बार की थीम है “एक असमान दुनिया में मानसिक स्वास्थ्य” रखी गई है। इस विषय को वर्ल्ड फेडरेशन फॉर मेंटल हेल्थ के सदस्यों, हितधारकों और समर्थकों साथ साथ वैश्विक वोट द्वारा चुना गया है, क्योंकि दुनिया तेजी से ध्रुवीकृत हो रही है, अमीर लोग और भी अमीर बन रहे हैं, जबकि गरीबों व साधनहीनों की संख्या अभी भी बहुत ज्यादा है।
क्यों सबको नहीं मिल पाती मानसिक चिकित्सा:
बड़े शहरों के अच्छे-अच्छे लोगों के लिए भी मानसिक चिकित्सा पूरी करना बहुत महंगा है, क्योंकि मानसिक समस्याओं के मामले में यह परामर्श सत्र कई महीनों तक चलता है। कभी-कभी ये सत्र 20 से 30 बार आयोजित किए जाते हैं, जिसमें बहुत खर्च होता है।
दिल्ली और मुंबई जैसे बड़े शहरों में काउंसलिंग के एक सत्र (40-45 मिनट) की औसत फीस 1,000-3,000 रुपये है। मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017 के तहत, सरकार का दायित्व है कि वह भारत के प्रत्येक नागरिक को सस्ती और सुलभ मानसिक स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करे।
इस कानून के प्रावधान स्पष्ट रूप से कहते हैं कि बीमा कंपनियों के लिए अन्य बीमारियों की तरह मानसिक बीमारियों को कवर करना अनिवार्य होगा। मगर कई स्वास्थ्य बीमा कंपनियां कानून बनने के बाद भी मानसिक स्वास्थ्य को कवर नहीं करती हैं।
मनोचिकित्सकों की भारी कमी:
मानसिक रोगों का इलाज महंगा है। लेकिन असली समस्या यह नहीं है कि परामर्श और चिकित्सा महंगी है। असली समस्या देश के सरकारी अस्पतालों में मनोचिकित्सकों की भारी कमी है। असली समस्या है, पहले से ही खस्ताहाल स्वास्थ्य सेवाओं के बीच मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं का और बुरा हाल।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2014-16 तक भारत में एक लाख लोगों की आबादी पर 0.8 मनोचिकित्सक थे, यानी एक से कम। डब्ल्यूएचओ के मानकों के मुताबिक यह संख्या तीन से ज्यादा होनी चाहिए।
हर साल विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस की एक अलग थीम होती है और इस बार की थीम है “एक असमान दुनिया में मानसिक स्वास्थ्य” ताकि इस असमान दुनिया में सभी तक मानसिक चिकित्सा पहुंच पाए, लोगों में जागरुकता आए और मेडिकल सुविधाओं में सुधार कर लोगों के बेहतर स्वास्थ्य में मदद की जाए।