लेखक: Admin
उपशीर्षक: जर्मनी के वैज्ञानिकों ने एआई फेशियल एक्सप्रेशन इवेल्यूशन (फेस रिकग्निशन प्रणाली) के माध्यम से मानसिक समस्याओं से जूझ रहे लोगों की पहचान करने की नई तकनीक ईजाद की है। इस तकनीक से लोगों के चेहरे के हावभाव देख पता लगाया जा सकेगा कि वह मानसिक समस्याओं से जूझ रहे हैं या नहीं।
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मालूम हो कि लोग अवसाद और सिजोफ्रेनिया बीमारी के बीच के अंतर को आसानी से नहीं समझ पाते। इनके लक्षण भी काफी मिलते-जुलते हैं ऐसे में जब तक बीमारियों के बीच अंतर स्पष्ट होता है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। सही समय पर बीमारी का पता न चल पाने पर, मरीज ठीक इलाज भी नहीं करा पाता है। इस बारे में शोधकर्ताओं ने एक समग्र छवि प्रदान की है जो उनके परीक्षणों और मानसिक विकारों से पीड़ित रोगियों के लिए नियंत्रण समूह का प्रतिनिधित्व करती है।
सूजे थे चेहरे, तनी हुई थी भौहें:
छवियों के माध्यम से शोधकर्ताओं ने पाया कि मानसिक विकारों से ग्रस्त व्यक्तियों की भौहें उठी हुई या तनी हुई होती हैं, वह देर तक एक ही स्थान पर टकटकी लगाकर देखते हैं, उनके चेहरे कुछ अजीब प्रकार से सूजे हुए होते हैं, उनके मुंह लटके हुए और उदासी के भाव लिए होते हैं। अध्ययन के दौरान शोधकर्ताओं ने आचेन स्थित विश्वविद्यालय अस्पताल में मानसिक बीमारियों से जूझ रहे 100 लोगों को शामिल किया, जिनमें सिजोफ्रेनिया से पीड़ित 35 और अवसाद से पीड़ित 65 लोग शामिल थे। दूसरी ओर मानसिक तौर पर स्वस्थ 50 लोगों का एक अलग नियंत्रण समूह बनाया। शोधकर्ताओं ने सबसे पहले मरीजों के आवश्यक परीक्षण (माप) अस्पताल में भर्ती होने के समय लिया। इसके बाद दूसरा 12 सप्ताह के औसत अंतराल में अस्पताल से छुट्टी मिलने से पहले लिया गया था।
नियंत्रण समूह के प्रतिभागियों को अस्पताल में भर्ती किया गया था ताकि ओईजी तकनीक का ट्रायल ठीक से हो सके। डेटा-एकत्रीकरण चरण के दौरान सभी प्रतिभागियों के मशीन व्याख्या के लिए 90 मिनट के औसत साक्षात्कार को तीन चरणों में किया गया। पहले सत्र में एक मानक हैमिल्टन साक्षात्कार शामिल था। दूसरे चरण में, असामान्य रूप से, रोगियों और नियंत्रण समूह में उनके समकक्षों को चेहरे के भावों की एक श्रृंखला के वीडियो दिखाए गए, और इनमें से प्रत्येक की नकल करने के लिए कहा गया। यह चरण करीब दस मिनट तक चला।
तीसरे और अंतिम चरण में, प्रतिभागियों को अभिनेताओं के 96 वीडियो दिखाए गए, जिनमें से प्रत्येक में केवल दस सेकंड से अधिक का समय था, जो स्पष्ट रूप से गहन भावनात्मक अनुभवों का वर्णन करते थे। प्रतिभागियों को तब वीडियो में दर्शाए गए भावनाओं और तीव्रता के साथ-साथ उनकी अपनी संबंधित भावनाओं का मूल्यांकन करने के लिए कहा गया था। यह चरण करीब 15 मिनट तक चला। बाद में जब प्रतियोगियों की छवि को देखा गया तो उनके हाव-भाव का विश्लेषण कर उनके मानसिक रोग, अवसाद और सिजोफ्रेनिया के बारे में जानकारी मिली। मानसिक रोगों से जूझ रहे मरीजों के चेहरे के भावों और नियंत्रण समूह के व्यक्तियों के चेहरे के भावों में जमीन-आसमान का अंतर था।
तकनीक का नाम ओईजी
शोधकर्ताओं ने इस तकनीक को ऑप्टो इलेक्ट्रॉनिक एन्सेफलोग्राफी (ओईजी) नाम दिया है। इस तकनीक में सामयिक सेंसर या रे-आधारित चिकित्सा इमेजिंग तकनीक के बजाय केवल चेहरे की छवि विश्लेषण मात्र द्वारा मानसिक स्थिति का अनुमान लगाया जाता है। शोधकर्ताओं का दावा है कि इस तकनीक से मानसिक रोगों के इलाज के दौरान लगने वाले समय में भी कटौती होगी। अब तक देखा जाता है कि मानसिक रोगियों के रोग और उसका स्तर जांचने के लिए कई प्रकार के टेस्ट, प्रश्नावलियाँ, साक्षात्कार आदि प्रक्रियाओं में काफी समय लग जाता है लेकिन, ओईजी के माध्यम से कुछ ही समय में चेहरे के हाव-भाव देखकर बीमारी और उसके स्तर का पता लगाया जा सकता है।
मानसिक रोगों के इलाज में होगा फायदा:
शोधकर्ताओं का कहना है कि अब तक, फेस रिकॉग्नाइजेशन तकनीक (चेहरे के प्रभाव की पहचान) को मुख्य रूप से बुनियादी निदान के लिए एक संभावित उपकरण के रूप में ही उपयोग किया जाता रहा है लेकिन एआई फेशियल रिकॉग्नाइजेशन के प्रयोग का एक नया दृष्टिकोण प्रदान करती है। इस शोध से भविष्य में मानसिक समस्याओं से जूझ रहे रोगियों के उपचार में बहुत मदद मिलेगी। यह तकनीक मानसिक रोगियों के पूरे उपचार के दौरान उनकी प्रगति का सही प्रकार से मूल्यांकन करने में भी सक्षम है ऐसे में न केवल रोगी के मानसिक रोग की सही पहचान होगी बल्कि प्रगति का सही आकलन होने से उनको फायदा होने की संभावना भी ज्यादा होगी। साथ ही मनोरोगियों का इलाज कर रहे चिकित्सकों को भी उपचार करने में बहुत मदद मिल सकेगी।
(The report is sponsored by SBI cards. Courtesy: MHFI)