Mental Health

मुक्ताक्षर

मानसिक शांति के लिए भारतीय गायों को गले लगा रहे लोग

लेखक: Admin

उपशीर्षक: भारत में गाय को मां का दर्जा दिया गया है। वर्तमान में अब यह बात पूरी तरह से चरितार्थ हो रही है। विदेशी लोगों ने भी शायद गाय को मां के तुल्य मानना शुरू कर दिया है तभी तो दुखी, हताश और निराश लोग भारतीय गायों को गले लगाकर मानसिक शांति की प्राप्ति कर रहे हैं।

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ऑस्ट्रेलिया में भारतीय गायों के माध्यम से मानसिक रूप से बीमार लोगों का इलाज किया जा रहा है। इस देश में कई ऐसे केंद्र बनाए गए हैं जहां मानसिक विकारों से ग्रस्त लोगों का भारतीय नस्ल की गायों से इलाज किया जा रहा है। परिणाम भी बेहतर आ रहे हैं। कई रोगियों के मानसिक विकार दूर हुए हैं। ऑटिज्म पीड़ितों में भी गायों के साथ रहने से सुधार देखा जा रहा है। मानसिक शांति के लिए वैसे भी कई लोग गायों को गले लगाने के लिए बड़ी संख्या में इन केंद्रों पर आ रहे हैं। गायों के साथ रहने, उनको गले लगाने को काऊ थेरेपी का नाम दिया गया है और इन केंद्रों को काऊ कडलिंग सेंटर कहा जा रहा है।

लोगों को मिल रहा सुकून: 

नॉर्थ क्वींसलैंड में सबसे ज्यादा काऊ कडलिंग सेंटर बनाए गए हैं जहां नियमित रूप से मानसिक शांति के लिए बड़ी संख्या में लोग आ रहे हैं। भारतीय नस्लों की गायों को गले लगाकर और उनके साथ समय बिताकर लोगों को बहुत सुकून और शांति का अहसास हो रहा है। इस शांति को पाने के लिए लोग गायों की सेवा भी कर रहे हैं। इस काऊ थेरेपी के लिए बकायदा फीस भी ली जा रही है। आलम यह है कि नेशनल डिसेबिलिटी इंश्योरेंस स्कीम की सेवा देने वाली कई कंपनियां इसे अपनी नई स्कीम में शामिल करने की योजना बना रही है। भारतीय गायों को चुनने का कारण यह है कि यह बहुत शांत होती हैं।

मानसिक रोगियों को हुआ फायदा:

शुरू में जब काऊ थेरेपी को लाया गया तो लोगों ने इसे बचकाना समझा। लेकिन जब कुछ लोग यहां आए और उनको फायदा हुआ तो धीरे-धीरे लोगों को इसकी अहमियत समझ में आई। काऊ कडलिंग फार्म पर गायों की सेवा करने वाली एक महिला ने बताया कि वह मानसिक विकारों के ग्रस्त थीं, यहां आने के बाद उनकी मानसिक समस्याएं ठीक हो रही है। एस्टिल नामक इस महिला ने बताया कि मानसिक तौर पर बीमार होते हुए भी इस फर्म में नौकरी मिली। वे पर्सनालिटी डिसऑर्डर, चिंता, घबराहट और अवसाद से पीड़ित रही हैं। एस्टिल के मुताबिक, वह पहले से काफी बेहतर हैं। वह कहती हैं कि इन भारतीय गायों ने उनकी जान बचाई है। उन्होंने कहा, शुरू में मुझे अगर काऊ थेरेपी के बारे में कहा होता तो मैं इसे हास्यास्पद ही समझती, लेकिन एक साल में जो परिवर्तन मैंने महसूस किया है वो किसी चमत्कार से कम नहीं है। मेरे परिवार के लोग भी मुझ में हुए परिवर्तन को महसूस कर रहे हैं।

ऑटिज्म पीड़ितों में जबर्दस्त सुधार:

भारतीय नस्ल की गायें ऑटिज्म स्पेक्ट्रम से पीड़ित मरीजों के लिए सबसे बेहतर थैरेपिस्ट बन गई हैं और उनकी अच्छी दोस्त भी। मालूम हो कि इस बीमारी में रोगी दूसरे लोगों के साथ सहज नहीं हो पाते जबकि जानवरों के साथ वह सहज हो सकते हैं। ऑटिज्म कार्यकर्ता टेंपल कहते हैं कि ऑटिज्म पीड़ितों को जानवरों के साथ सहजता महसूस होती है जिसके बाद आगे जाकर यह इंसानों के साथ भी सहज हो सकते हैं। और भारतीय गायों की तो बात ही क्या वो तो यहां कमाल कर रही हैं। ऑटिज्म पीड़ित तो उनके बहुत अच्छे दोस्त बन गए हैं। ऑस्ट्रेलिया में अब काऊ थेरेपी, इक्वाइन थेरेपी का विकल्प बन लोकप्रिय हो रही है। इक्वाइन थेरेपी में ऑटिज्म रोगियों को घोड़ों के अस्तबल में ले जाया जाता था। ऑटिज्म पीड़ित बच्चों को काऊ सेंटर में गायों के साथ मजे से खेलते हुए देखा जा सकता है।

हो रहा शांति का अहसास:

एक काऊ फर्म के संस्थापक लॉरेंस फॉक्स कहते हैं की यहां कई तरह की मानसिक बीमारियों से पीड़ित लोग नियमित तौर पर आ रहे हैं। मैंने रेस के घोड़ों के साथ भी लंबा समय व्यतीत किया है। वे आक्रामक होते हैं जो हमला भी कर सकते हैं। लेकिन भारतीय नस्ल की गायों के साथ ऐसा नहीं है उनके साथ समय गुजार के मैंने शांति और खुशी पाई है और अब कई लोग भी इस शांति का सुखद अहसास कर रहे हैं। लॉरेंस जब एमबीए कर रहे थे तभी उन्हें काऊ थैरेपी व्यवसाय का विचार आया था।

(The report is sponsored by SBI cards. Courtesy: MHFI)

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