लेखक: Admin
उपशीर्षक: परीक्षाओं का दौर आ चुका है। लेकिन, भला मानसिक स्वास्थ्य की अनदेखी कर इनको पार किया जा सकता है? वर्तमान में यही हो रहा है जिसकी अनदेखी भारी पड़ सकती है परीक्षा परिणाम और आपके मानसिक स्वास्थ्य दोनों पर। मनोवैज्ञानिक बताते हैं कि किसी भी परीक्षा के दौरान मानसिक स्वास्थ्य को दुरुस्त रखना हमारी पहली प्राथमिकता होनी चाहिए।
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फरवरी से मई का महीना परीक्षार्थियों के लिए महाकुंभ में डुबकी लगाने जैसा है। इस महाकुंभ में सीबीएसई टर्म-2 की परीक्षा अप्रैल 26 से और यूपी बोर्ड की मार्च 24 से शुरू हो रही है। इन सब के अलावा आईआईटी जेईई और संघ लोक सेवा आयोग के सिविल सर्विसेज परीक्षा की तैयारी में भी परीक्षार्थी लगे हुए हैं।
कोविड का अपने चरम से नीचे आने के बाद सीबीएसई परीक्षाओं में हुए बड़े बदलावों के बाद अब अप्रैल में ऑफलाइन मोड में लिखित परीक्षा होने जा रही है। घर के माहौल से बाहर निकलना कुछ बच्चों के लिए थोड़ी परेशानी का सबब हो सकता है। लेकिन, इन सब के बीच जो सबसे जरूरी बात है वो है मानसिक स्वास्थ्य का ख्याल रखना। जिसकी बच्चों से लेकर बड़े तक अनदेखी कर देते हैं। अत्याधिक तनाव और दबाव लेने से कई बार परीक्षार्थी अवसाद में चले जाते हैं।
इसलिए इस संवेदनशील पड़ाव पर छात्रों को अपने मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखते हुए पढ़ाई करनी चाहिए। बड़ों को उनसे भी ज्यादा सावधानी बरतने और खुद को मानसिक तौर पर स्वस्थ रखने की जरूरत है ताकि उनकी मजबूती छोटों को बल दे सके।
विभिन्न प्रकार के शोध बताते हैं कि मनपसंद आजीविका पाने की यह प्रक्रिया और परीक्षाओं का दबाव धीरे-धीरे अवसाद में बदलता जाता है। विशेष रूप से तीन तरह का दबाव छात्रों को आत्महत्या की तरफ ले जा रहा है: असफल हुए तो मित्र क्या कहेंगे, अभिभावक क्या सोचेंगे, और करियर खराब हो गया तो।
साल 2016 में 9,474 छात्र-छात्राओं ने आत्महत्या की थी। 2017 में देश में करीब 10 हजार छात्र-छात्राओं ने असहनीय दबाव और अवसाद के चलते दुनिया को अलविदा कह दिया था। उसके बाद भी यह संख्या कम होने के बजाए बढ़ती ही जा रही है। इस प्रकार के गंभीर तनाव के लक्षण ज्यादातर 16 से 18 वर्ष और उससे ऊपर की आयु वाले छात्रों में देखे जाते हैं। जो विद्यालय-महाविद्यालय और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में जुटे होते हैं।
जैसे मां भी दे रही हों परीक्षा:
परीक्षार्थियों के अलावा उनके अभिभावक भी ऐसे तनाव ले रहे हैं जैसे छात्र-छात्राओं से ज्यादा उनकी ही परीक्षा चल रही हो। नोएडा सेक्टर 37 में रहने वाली प्रीति खन्ना बताती हैं कि “कक्षा 12 में बच्चा है अब मैं उसके पीछे न पड़ूं तो कैसे चलेगा, तनाव भी स्वाभाविक है। मैं सरकारी नौकरी मैं हूं लेकिन कार्यालय कर्तव्य के दौरान भी मेरा मन बच्चे की पढ़ाई को लेकर ही तनावित रहता है। ऐसा लगता है जैसे मेरी ही परीक्षा है।”
नोएडा सेक्टर 120 की रहने वाली नूपुर अपनी पांचवीं कक्षा की बेटी को लेकर इतनी परेशान है मानो खुद बोर्ड की परीक्षा में बैठी हो। वो अपना सुध-बुध खोकर सारा वक्त बच्चे की पढ़ाई पर ही लगा रही हैं।
गुड़गांव निवासी चंचल गुप्ता का बेटा डीपीएस में पढ़ता है। वह कहती हैं, “बेटा इंजीनियर बनना चाहता है, लगन से पढ़ाई कर रहा है। वो जैसे घर से बाहर ही नहीं निकलना चाहता। कहीं जाता भी है तो जैसे वहां होकर भी वो वहां नहीं होता। फिर हमको लगता है ठीक भी है यही समय तो है करियर को लेकर चिंता लेने का। इसलिए मैंने भी सोचा है कि मैं कहीं भी नहीं जाऊंगी। अब तो ये भी सोचती हूं कि कोई मेहमान भी न आए क्योंकि बच्चे की पढ़ाई प्रभावित होगी।”
क्या कहते हैं मनोवैज्ञानिक:
परीक्षाओं को लेकर अवांछित तनाव के बारे में बात करते हुए, मनोवैज्ञानिक भारती वर्मा कहती हैं दरअसल, हम लोग पढ़ाई पर ध्यान देना तो जानते हैं, मानसिक स्वास्थ्य का ख्याल रखना नहीं। जबकि किसी भी परीक्षा के दौरान मानसिक स्वास्थ्य को दुरुस्त रखना हमारी पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। ऐसा करने से सफलता की कुंजी हमारे हाथ में आ जाएगी। तनावित होकर हम अपनी आधी से ज्यादा ऊर्जा तो यूं ही गंवा देते हैं। माता-पिता भी वातावरण को इतना गंभीर सा बना देते हैं और एक ही प्रकार की दबाव में लाने वाली बातें रोज दोहराते रहते हैं। इससे परीक्षार्थियों पर बुरा असर पड़ता है। ये सच है कि पढ़ाई व करियर को लेकर तनाव हो जाता है, लेकिन तनाव को एक तरीका ही बना लेना ये नुकसानदायक है।
इन बातों का रखें ख्याल:
- खानपान पर ध्यान दें। योगा, ध्यान (मेडिटेशन), व्यायाम का रूटीन तय कर लें। इसके अलावा, नृत्य, गायन जैसे शौक का पढाई में ब्रेक के दौरान पालन करना बच्चों के मनोदशा को उल्लासपूर्ण बना सकता है। इन सब से शरीर में खुशी प्रदान करने वाला हार्मोन रिलीज होता है जो तनाव दूर करता है।
- पढ़ाई के दौरान छोटे-छोटे ब्रेक लेते रहें, एक ही जगह लगातार बैठे न रहें, थोड़ी बहुत चहलकदमी अवश्य करते रहें।
- बाहर खुले में जहां हरियाली हो पढ़ाई करें केवल कमरे में न बैठे रहें। हमारे मस्तिष्क को ऑक्सीजन की बहुत जरूरत होती है। केवल बंद कमरे में बैठने से इसकी मात्रा कम हो सकती है।
- सोशल मीडिया और मोबाइल से दूरी बना लें। आजकल बच्चे कहते हैं कि मोबाइल पर हम पढ़ाई करते हैं। व्हाट्सएप के बिना काम नहीं चल सकता? ऐसा सोचना गलत है। अव्वल बच्चों के साक्षात्कार देखें तो पाएंगे ज्यादातर वही बच्चे सफल हुए जिन्होंने मोबाइल और सोशल मीडिया से दूरी बनाई।
माता-पिता और परिवार के बाकी लोग भी समझदार बनें:
- माता-पिता और परिवार के बाकी लोग ये समझ लें कि हर समय चिंता की बातें करने से नकारात्मकता फैलती है और एक खुशमिजाज बच्चा भी ऐसी बातों के असर में आ जाता है और तनाव लेने लगता है, जिससे उसका बौद्धिक स्तर भी गिरने लगता है।
- माता-पिता को भी इस दौरान विशेष रूप से आध्यात्मिकता और ध्यान (मेडिटेशन) का सहारा लेना चाहिए ताकि वह खुद को मजबूत बनाते हुए बच्चों की सही तरीके से मदद कर सकें।
- माता-पिता और अभिभावक अपने बच्चों के लगातार संपर्क में रहें। उनका हर तरीके से प्रोत्साहन करते रहें। दबाव या अवसाद का कोई भी लक्षण दिखे तो बिना देरी चिकित्सक से संपर्क करें।