Mental Health

मुक्ताक्षर

हिम्मत को नहीं टूटने दिया…बहू की दूसरी शादी करा कर एक बेटी पा लिया

लेखक: Admin

उपशीर्षक: बीना के जीवन में सब कुछ सही चल रहा था तभी अचानक उनके इकलौते बेटे की एक सड़क हादसे में मौत हो गई। लेकिन वो अपनी हिम्मत को टूटने नहीं दी। खुद संभली, जिनको संभालना था उनको संभाला, और अब एक सकारात्मक जीवन जी रही हैं।

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मुझे तोड़ने के लिए अकेलापन, चिंता, अवसाद, सामाजिक दीवारें, बढ़ती उम्र सबने एक साथ हमला किया। थोड़ी मानसिक अवस्था डांवाडोल हुई, लेकिन मैंने अपनी हिम्मत को नहीं टूटने दिया। खुद संभली, जिनको संभालना था उनको संभाला, और अब एक सकारात्मक जीवन जी रही हूं। यह कहना है गाजियाबाद की एक सोसायटी में पिछले करीब 20 सालों से अकेले रह रहीं बीना का।

दो दशक पहले बीना के जीवन में सब कुछ सही चल रहा था तभी अचानक उनके इकलौते बेटे की एक सड़क हादसे में मौत हो गई। वो बिल्कुल टूट गई और उनकी मानसिक अवस्था भी डांवाडोल हो गयी।

मेरे ऊपर मानो दुखों का पहाड़ टूट गया था। मानसिक और शारीरिक कष्ट आए। हर तरफ से दबाव ही दबाव नजर आने लगा और जीवन जैसे रुक सा गया। एक बेचैन उदासीन जीवन जिसमें उनके सामने उनकी जवान बहू का गम था वह अलग। आखिरकार लंबे मानसिक तनाव से जूझने के बाद, बीना को लगा कि यह जीवन और ही गर्त में जा रहा है। इस तनाव में जैसे दिमाग ने समस्याओं के समाधान के लिए प्रयास करना ही बंद कर दिया है। इस जीवन में तो हल ही नहीं है बल्कि समस्याओं को और ही बढ़ाने की ताकत है।

 

इस सोच के बाद बीना ने अपनी बिखरती हिम्मत को बटोरा। खुद को सही करने के लिए हर प्रयास किए। मनोचिकित्सक के परामर्श की जरूरत पड़ी तो वह सहायता भी ली। उनके अपनों ने भी उनको पागल करार देने में कोई कसर नहीं छोड़ी। बीना के प्रयासों का सुफल निकला, वो संभल गईं और सकारात्मक होकर समस्याओं के समाधान में जुट गईं।

 

मैंने बहुत कुछ खो दिया, मगर जिंदगी से ऐसी शिकायत नहीं है। और यह भी पता चल गया कि परेशानियां चाहें मानसिक ही क्यों न हों, यह हमें एक सार्थक और सत्य जीवन के रोमांच के और भी करीब ले आती हैं, न कि टूटकर बिखर कर जीवन समाप्त करने के लिए कहती है।

 

सबसे पहले उन्होंने अपने अकेलेपन को दूर करने की ठानी और बिना यह सोचे हुए कि बहू के बिना अकेलेपन में जीवन कैसे चलेगा, अपने स्वार्थ को दरकिनार कर अपनी बहू की दूसरी शादी करा दी। जबकि समाज उनको डरा रहा था कि बहू भी चली जाएगी तो आपका क्या होगा।

बीना कहती है कि मैं अपनी एक उम्र गुजार चुकी हूं। 70 से ऊपर की हो चुकी हूं और जीवन से इतना देख चुकी हूं कि शायद ही अब मेरा कोई ऐसा शौक अधूरा रहा है जिसे मैंने पूरा नहीं किया हो।

जब मैं मजबूत हुई तो बहू भी अब सही मायने में मेरी बेटी बन गई। तनाव और अवसाद हमें स्वार्थी सा बना देता है। मेरे अंदर भी स्वार्थ आया था जब मेरी मानसिक अवस्था गिरी हुई थी। मैं जब कमजोर थी तो अपने ही बारे में सोच पा रही थी, लेकिन जब मानसिक तौर पर मजबूत हुई और अपनी बहू के बारे में सोचा तो सही मायने में ईश्वर ने मुझे उसे मेरी बेटी के रूप में दे दिया। वो शादी के बाद मेरा बहुत ही ज्यादा ख्याल रखने लगी है बिल्कुल बेटी की तरह। इतनी अच्छी बॉन्डिंग उससे पहले नहीं थी।

आज मैं शौकिया बच्चों को ऑनलाइन पेंटिंग सिखाती हूं, पढ़ाती हूं। इसमें समय इतना सार्थक बीतता है कि मैं आपको बयां भी नहीं कर सकती। एक पल ऐसा भी आया था जब मैं मरने का इंतजार ही कर रही थी। लेकिन अवसाद की गर्त में इतना प्यारा जीवन छिपा होगा पता ही नहीं था।

वरिष्ठ मनोचिकित्सक नयामात कहती हैं कि जाने ऐसे कितने मामले आते हैं जिनमें अवसाद के दलदल में फंसे लोग फिर निकल नहीं पाते। जीवन कितना सुनहरा है उनको नजर ही नहीं आता। वो बस मौत का इंतजार करते रहते हैं। लेकिन बीना जैसी तमाम कहानियां जीवन की दुश्वारियों से सबक ले आगे बढ़ने को प्रेरित करती हैं। वो कहती हैं हम जितना अपने को सकारात्मक सोच और गतिविधियों में व्यस्त रखेंगे, उतना नकारात्मकता एवं एकाकीपन से दूर रहेंगे और जब यह दूर होते हैं तो जीवन का रंग कुछ और ही होता है।

(बीना से तृप्ति मिश्रा की बातचीत पर आधारित)

(The report is sponsored by SBI cards. Courtesy: MHFI)

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