Mental Health

मुक्ताक्षर

सावधान! ज्यादा सख्ती बच्चों को अवसाद में ले जा सकती है

लेखक: Admin

उपशीर्षक: पूरी दुनिया में यही कहा जाता है कि अनुशासन के लिए बच्चों पर सख्ती करनी चाहिए। लेकिन, मारने-पीटने और चिल्लाने का बच्चों के दिमाग पर बुरा असर पड़ता है

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एक हालिया शोध में खुलासा हुआ है कि माता-पिता और अभिभावकों के चीखने-चिल्लाने और डांट फटकार से बच्चे सुधरने के बजाय भावनात्मक रूप से कमजोर हो सकते हैं। उनमें बेचैनी बढ़ जाती है जो कि उनको अवसाद की गर्त तक ले जा सकती है। शोध में कहा गया है कि अभिभावकों के डांटने का, गुस्सा करने का, मारने-पीटने और चिल्लाने का बच्चों के दिमाग पर बहुत ही बुरा असर होता है। इसलिए अभिभावकों को सचेत होने की जरूरत है अन्यथा उनके बच्चे गंभीर मानसिक बीमारियों के शिकार हो सकते हैं।

हो जाता है अवसाद:

अभिभावक की डांट और मार-पिटाई का बच्चों पर क्या असर होता है, इसे समझने के लिए मॉन्ट्रियल और स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी ने मिलकर एक अध्ययन किया। इस अध्ययन में पाया गया कि ऐसा होने पर बच्चों में अवसाद और बेचैनी बढ़ती है, क्योंकि इन सब बातों का सीधा असर उनके दिमाग पर होता है।

दिमाग की हुई स्केनिंग:

यह शोध 2 से 9 साल के बच्चों पर की गई। जिसका उद्देश्य यह देखना था कि अभिभावक अगर बच्चों के साथ नकारात्मक और हिंसक रूप से पेश आते हैं तो बच्चों पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है। यह देखने के लिए वैज्ञानिकों ने एक अलग रणनीति अपनाई। माता-पिता और अभिभावकों द्वारा डांटने और पीटाने के बाद इन बच्चों के दिमाग की स्कैनिंग की गई। वैज्ञानिकों ने पाया कि बच्चों पर अधिक सख्ती बरतने से इनके दिमाग के उस हिस्से पर असर पड़ा जो भावनाओं (इमोशंस) को नियंत्रित करते हैं।

भावनात्मक विकास होता प्रभावित:

इस शोध की अग्रणी शोधकर्ता डॉ सबरीना सफरेन ने बताया कि यूं तो पूरी दुनिया में यही कहा जाता है कि बच्चों पर सख्ती नहीं करेंगे तो वो बिगड़ जाएंगे। उनको अनुशासन सिखाना है तो सख्ती तो करनी ही पड़ेगी। सबरीना कहती हैं पूरी दुनिया में बच्चों पर सख्ती को सही माना जाता है लेकिन इसका उल्टा असर होता है जिसको समझना होगा। वो कहती हैं कि माता-पिता और अभिभावकों को ये समझने की जरूरत है कि सख्ती की सीमा आखिर क्या हो। उनकी सख्ती बच्चों के मानसिक और शारीरिक विकास पर कितना बुरा असर डाल सकती है ये भी उन्हें जानने की जरूरत है।

बच्चों को डांटा या मारा तो वे सामाजिक रूप से कटे-कटे रहेंगे और उनके भावनात्मक विकास पर बहुत प्रतिकूल असर पड़ सकता है। कई मनोवैज्ञानिक शोध यह बताते हैं कि बच्चों का व्यवहार और बर्ताव उसके आस-पास के वातावरण के अनुसार ही विकसित होता है।

हो जाएं सावधान:

इस बारे में परामर्शदात्री भारती का कहना है कि शोध के बाद माता-पिता और अभिभावकों को सावधान होने की जरूरत है। उन्होंने कुछ सुझाव दिए जो कि इस प्रकार हैं:

  • अपने क्रोध और व्यवहार पर काबू रखें माता-पिता और अभिभावक
  • बच्चों की भावनाओं का ख्याल रखें, वरना वो मानसिक रोगों के शिकार हो सकते हैं
  • मेडिटेशन, योग और थेरेपी से स्वयं को सुधारने का प्रयास करें
  • व्यवहार नियंत्रित न होने पर बिना सकुचाए किसी मनोवैज्ञानिक सलाहकार के पास जरूर जाएं
  • खुद को बच्चे की जगह रखकर परिस्थिति को संभालना सीखें
  • डांटने, चिल्लाने और मारने के बजाए बच्चे से प्यार से बात कर उसे समझाने की कोशिश करें
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