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मुक्ताक्षर

श्राद्ध पक्ष में श्रीमद भागवत कथा के श्रवण से मिलती है मानसिक शांति और दूर होती है नकारात्मकता

लेखक: Admin

उपशीर्षक: पितृ पक्ष में श्रीमद भागवत कथा सुनने की परंपरा यूं ही नहीं बनी। इस कथा के श्रवण से मन के बुरे विचार खत्म होते हैं और गलत कामों से मन दूर रहता है

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पितृ पक्ष 25 सितंबर को समाप्त हो रहा है जो कि 10 सितंबर को शुरू हुआ था। पितरों के इन दिनों में श्रीमद् भागवत कथा पढ़ने और श्रवण करने की परंपरा लंबे समय से चली आ रही है। हिंदू धर्म की मान्यतानुसार,  पितृ पक्षों में इस कथा को पढ़ने या श्रवण करने से पितरों की आत्मा को तो शांति मिलती ही है, कथा सुनने वाले को भी मानसिक शांति का अहसास होता है। साथ ही नकारात्मकता भी उससे दूर भाग जाती है। इस कथा को कई प्रकार से पितृ पक्ष के दिनों में कभी भी पढ़ा व सुना जा सकता है।

 

भारतीय शास्त्रों और ग्रंथों की ऐसे ही दुनिया में तूती नहीं बोलती। इनमें हर समस्या का समाधान छिपा होता है। मानसिक शांति का भी। इसी कड़ी में मानसिक शांति व सकारात्मकता प्राप्त करने के लिए पितृ पक्षों में श्रीमद भागवत कथा या पाठ के श्रवण का विशेष महत्व है।

 

मन को मिलता अद्भुत सुकून:

इस बारे में श्रीमद भागवत कथा आयोजन समिति (मथुरा) के संस्थापक पंडित अमित भारद्वाज बताते हैं कि पितृपक्षों में श्रीमद भागवत कथा के श्रवण का विशेष महत्व है। श्रीमद भागवत  कथा प्रभु श्रीकृष्ण की महिमा बताती है साथ ही मन से बुरे विचार खत्म करने और गलत कामों से मन को दूर रखने के उपाय भी इसमें हैं। ऐसे में जब पितृ पक्ष में इसका श्रवण या पाठ किया जाता है तो पितरों की आत्मा को तो शांति मिलती ही है श्रवण करने वाले का भी मन बहुत सुकून पाता है। साथ ही वातावरण भी सकारात्मक हो जाता है। गौरतलब है कि इन दिनों लोगों को अपने मृत प्रियजनों की याद आने लगती है जिससे वह उदास होने लग जाते हैं ऐसे में यह ग्रंथ आंतरिक बल प्रदान करने का भी काम करता है।

 

यज्ञ से और फैलती सकारात्मकता:

पंडित अमित बताते हैं कि पितृपक्षों में श्रीमद भागवत कथा के वाचन के कई तरीके हैं आप चाहें तो इसे सात दिनों में या केवल एक दिन में भी करा सकते हैं।

 

महर्षि वेद व्यास की निराशा हुई थी दूर:

यह तो सब जानते ही हैं कि महर्षि वेद व्यास ने महाभारत ग्रंथ की रचना की थी। प्रचलित है कि महाभारत ग्रंथ की रचना करने के बाद  वेद व्यास जी का मन विचलित हो रहा था और वो उदास रहने लगे थे और शांति की तलाश में थे। एक दिन नारद मुनि ने व्यास जी को निराश देख उनसे इसकी वजह पूछी तब व्यास जी ने बताया  महाभारत जैसे ग्रंथ की रचना के बाद मेरा मन अशांत है। इस पर नारद मुनि ने कहा कि महाभारत ग्रंथ में पारिवारिक लड़ाई, युद्ध, हिंसा और अशांति है। इसके कई किरदारों में अति के अवगुण हैं। इस कारण आपका मन अशांत है। अब आपको ऐसा ग्रंथ रचने की जरूरत है जिसे पढ़ने के बाद हमारे मन को शांति मिले और नकारात्मक  विचार खत्म हों। इस सलाह के बाद व्यास जी ने श्रीमद् भागवत कथा की रचना की और इस ग्रंथ को सकारात्मक सोच के साथ लिखा।

 

मानसिक शांति प्राप्ति करने के बताए तरीके:

इसके बाद व्यास जी की निराशा तो दूर हुई ही, साथ ही बहुत से लोगों को जीवन में मानसिक शांति प्राप्ति का रास्ता भी मिल गया। श्रीमद भागवत में भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं के माध्यम से संदेश दिया गया कि अगर हम दुखों और परेशानियों का सामना सकारात्मक सोच के साथ करेंगे तो हमें अवश्य ही मानसिक शांति मिलेगी।

 

(The report is sponsored by SBI cards. Courtesy: MHFI)

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Keywords: श्राद्ध पक्ष, श्रीमद भागवत, मानसिक शांति, नकारात्मकता, अशांति

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