लेखक: Admin
उपशीर्षक: यह तो सब जानते हैं कि कोविड ने लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर डाला है। इस बीच एक अध्ययन सामने आया है जो लॉकडाउन के दौरान देशों में सख्ती और लोगों के मानसिक स्वास्थ्य के बीच के संबंध पर प्रकाश डाल रही है। आप भी जानिए इस बारे में…
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कोविड महामारी ने पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया था। इतना की अभी तक इसके दंश लोगों को झेलने पड़ रहे हैं। लोगों के मानसिक स्वास्थ्य को इस बीमारी ने इस कदर झकझोरा है की अभी भी लोग इससे उबर नहीं पा रहे हैं। इस बीच एक अध्ययन सामने आया है जो लॉकडाउन के दौरान देशों में सख्ती और लोगों के मानसिक स्वास्थ्य के बीच के संबंध पर प्रकाश डाल रही है।
स्वास्थ्य पत्रिका लैंसेट जर्नल की एक रिपोर्ट बता रही है कि वो देश जिन्होंने कोविड समाप्ति के उद्देश्य से देश के भीतर कड़े प्रतिबंध लगाए उन देशों के लोगों का मानसिक स्वास्थ्य ऐसे देशों की तुलना में खराब पाया गया जिन्होंने सख्ती से ज्यादा कोविड को खत्म करने की दिशा में कदम उठाए। यानी कि कोविड से ज्यादा लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर कड़ी पाबंदियों का असर पड़ा।
15 देशों का किया सर्वे
कोविड महामारी ने साल 2019 के अंत में तांडव मचाना शुरू किया था। यह अध्ययन कनाडा के ‘साइमन फ्रेजर यूनिवर्सिटी’ के शोधकर्ताओं ने किया है। इस दौरान शोधकर्ताओं ने अप्रैल 2020 से जून 2021 के बीच 15 देशों में दो सर्वेक्षण किए। इन देशों को दो श्रेणियों में विभाजित किया गया। एक श्रेणी में वे देश थे जिन्होंने कोविड-19 को समाप्त करने की कोशिश की। इन देशों की सूची में जापान, ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर और दक्षिण कोरिया शामिल थे। जबकि दूसरी श्रेणी उन देशों की थी जिनका उद्देश्य देश में संक्रमण के प्रसार को रोकना या कम करना था।
सख्ती ने बिगाड़ा मानसिक स्वास्थ्य
देखा गया कि दक्षिण कोरिया और जापान जैसे देशों ने कोविड को रोकने के लिए तीव्र और त्वरित कदम उठाए, बजाए देश के अंदर रहने वाले लोगों पर कड़े प्रतिबंध लगाने के। इसमें शामिल था अंतरराष्ट्रीय यात्रा पर रोक लगाना, समय से लोगों की कोविड जांच करने, बाहरी आवागमन पर ध्यान रखना। उनके ऐसे कदमों से वहां कोविड संक्रमण का प्रकोप कम दिखा और संक्रमण के कारण मौत के मामले कम सामने आए। सबसे खास बात यह है कि इससे इन देशों के लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव भी कम पड़ा।
दूसरी सूची में कनाडा, डेनमार्क, फिनलैंड, स्पेन, स्वीडन, फ्रांस, जर्मनी, इटली, नीदरलैंड, नॉर्वे, और ब्रिटेन जैसे देश रहे। इन देशों ने संक्रमण को फैलने से रोकने की कोशिश के कदमों के तहत यात्रा प्रतिबंधों में तो ढिलाई दिखाई, लेकिन, सोशल डिस्टेंसिंग, समारोह, कार्यक्रम आदि पर रोक लगाने पर जोर दिया। लॉकडाउन के अलावा देश में रहने वाले लोगों पर कड़े प्रतिबंधों की नीति पर जोर दिया। पाया गया इन प्रयासों से लोगों के सामाजिक संबंध सीमित हो गए। इससे उनके मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ा। यहां के लोग कई मनोवैज्ञानिक समस्याओं से ग्रस्त हो गए।
आगे के लिए सीख:
शोधकर्ता साइमन फ्रेजर यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर लारा अकनिन ने बताया कि कोविड समाप्ति की दिशा में जिन देशों ने अंतरराष्ट्रीय यात्रा पर प्रतिबंध लगाए मगर सोशल डिस्टेंसिंग, समारोह, कार्यक्रम आदि पर रोक लगाने पर जोर नहीं दिया वहां के लोग ज्यादा सुकून में रहे। इन देशों के अंदर मौजूद लोगों ने आजादी का अनुभव किया जिससे मनोवैज्ञानिक तौर पर वो मजबूत रहे। इससे उनका मानसिक स्वास्थ्य भी बेहतर रहा। यहां के लोग महामारी के बीच भी अपनों के संपर्क में रहे और उनके साथ खुशियों का अनुभव करते रहे। लारा कहती हैं कि शोध से पता चलता है कि कोविड जैसी वैश्विक महामारी से निपटने के तरीकों में हमें लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों को दरकिनार नहीं करना चाहिए।
(The report is sponsored by SBI cards. Courtesy: MHFI)