Mental Health

मुक्ताक्षर

सालाना 44 घंटे की नींद खो रहा इंसान, दिमाग हो रहा कमजोर

लेखक: Admin

उपशीर्षक: ग्लोबल वार्मिंग ने लोगों की नींद छीन उनके मन को कमजोर कर दिया है

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ग्लोबल वॉर्मिंग का हमारी नींद पर प्रतिकूल असर देखने को मिल रहा है। इसकी वजह से हमारा मन कमजोर हो रहा है और कई प्रकार के मानसिक विकार उत्पन्न हो रहे हैं। डेनमार्क की कोपेनहेगन यूनिवर्सिटी की एक हालिया शोध सच में चौंकाने वाली है।

अध्ययन में बताया गया है कि बढ़ते तापमान के कारण हमारी नींद की अवधि घटती जा रही है। शोधकर्ताओं के अनुसार औसतन एक व्यक्ति प्रतिवर्ष अपनी नींद के 44 घंटे खो रहा है। विशेष रूप से रात में गर्मी बढ़ने के कारण नींद पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। नींद कम होने का सीधा प्रभाव लोगों के दिमाग पर पड़ रहा है। जिससे उनमें अनिद्रा, चिंता, तनाव और अवसाद जैसी मानसिक समस्याएं बढ़ रही हैं।

68 देशों के लोगों पर किया अध्ययन:

शोधकर्ताओं ने रिस्ट बैंड्स की मदद से 68 देशों के 47,000 लोगों की नींद पर नज़र रखी। इस दौरान करीब 70 लाख रातों की नींद का अध्ययन किया गया। शोधकर्ताओं का कहना है कि धरती के तापमान में इजाफा होता ही जा रहा है। आगे जाकर  हमें अपनी नींद के कुछ और कीमती पल भी खोने पड़ेंगे, यानी की नींद के घंटे और कम हो जाएंगे। यह शरीर और मन दोनों के लिए ही नुकसानदायक होगा।

महिलाओं का हाल सबसे बुरा:

शोध में पाया गया कि महिलाओं में नींद की कमी पुरुषों के मुकाबले एक चौथाई ज्यादा हो रही है। इसके अलावा 65 साल से अधिक  उम्र के लोगों में नींद की कमी दोगुना है। इसको लेकर बताया गया है कि पुरुषों की तुलना में महिलाओं का शरीर रात में सोने से पहले जल्दी ठंडा हो जाता है। इसलिए रात में गर्मी बढ़ने पर वो ज्यादा प्रभावित होती हैं। इसके अलावा महिलाओं में औसतन त्वचा के नीचे का फैट भी ज्यादा होता है, जिसके चलते उनको गर्मी ज्यादा लगने लग जाती है। यह भी सामने आया कि आर्थिक रूप से कमजोर देशों के लोगों में नींद की कमी तीन गुना है।

गर्म हवाएं कर रहीं हालत खराब:

वैज्ञानिकों का कहना है कि गर्म हवाएं नींदे उड़ाने में बड़ी भूमिका निभा रही हैं। इससे बड़ी आबादी की नींद खराब हो रही है। शोध में यह बात भी सामने आई है कि भारत और पाकिस्तान में चली खतरनाक लू ने करोड़ों लोगों की नींद की अवधि कम कर दी है। आपको बताते चलें कि इससे पहले हुए अध्ययनों में वैज्ञानिकों ने मानसिक स्वास्थ्य, खुदकुशी,अवसाद और दुर्घटनाओं पर जलवायु परिवर्तन के असर की जांच की थी।

(The report is sponsored by SBI cards. Courtesy: MHFI)

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