लेखक: Admin
उपशीर्षक: द्रोपदी मुर्मु की यह तो सफलता की कहानी है जो अब आपको दिखाई दे रही है लेकिन उनके संघर्ष की दास्तां जो बहुत कम लोग जानते हैं हम आपको बताने जा रहे हैं।
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द्रौपदी मुर्मू अब किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं। देश की 15वें राष्ट्रपति के रूप में उनको चुना जा चुका है। ओडिशा की आदिवासी महिला नेता और झारखंड की राज्यपाल रह चुकीं द्रौपदी देश की दूसरी महिला राष्ट्रपति बन गई हैं। साथ ही वो देश की पहली आदिवासी राष्ट्रपति चुनी गई हैं।
द्रोपदी की यह तो सफलता की कहानी है जो अब आपको दिखाई दे रही है लेकिन उनके संघर्ष की दास्तां जो बहुत कम लोग जानते हैं हम आपको बताने जा रहे हैं। निजी जीवन में द्रोपदी को कई कठिनाईयों का सामना करना पड़ा है। परिवार के चहेते सदस्यों को एक के बाद एक कर के खोया। वह महीनों अवसाद में रहीं।
जीवन के एक मोड़ पर वह जिंदगी से जैसे हार ही गईं थीं, लेकिन द्रोपदी ने खुद को बिखरने नहीं दिया और दोबारा उठ कर खड़ी हुईं और ऐसी खड़ी हुईं की पहले राज्यपाल और फिर देश के राष्ट्रपति की गद्दी पर ही बैठकर दम लिया। खुद को अवसाद से निकालने का श्रेय द्रोपदी ब्रह्माकुमारी संस्था और वहां सिखाए जाने वाले राजयोग ध्यान (मेडिटेशन) को देती हैं। मानसिक परेशानियों (अवसाद, चिंता और तनाव) और जिन विकट परिस्थितियों का द्रोपदी ने सामना किया है वह काबिले तारीफ है। उनकी जगह कोई और होता तो टूट के बिखर गया होता या जीवन से हार कर मौत को गले लगा चुका होता।
अवसाद को हरा कर सफलता की शिखर तक पहुंचने की द्रोपदी की यह कहानी हर उस इंसान के लिए प्रेरणा बन सकती है जो अवसाद के दलदल में हैं और जीवन से हार मान बैठे हैं।
अवसाद से सफलता की कहानी:
20 जून 1958 को ओडिशा में मयूरभंज जिले के एक आदिवासी परिवार में जन्मी द्रोपदी ने बतौर शिक्षिका अपने करियर की शुरुआत की थी। द्रौपदी के जीवन में एक ऐसा दौर आया जिसने उनको तोड़ कर रख दिया। उनके परिवार के चार सदस्य एक एक कर उन्हें छोड़ दुनिया से रुखसत हो गए। उनके बड़े बेटे की मौत हो गई जिसके बाद द्रोपदी करीब 7 महीने तक अवसाद में रहीं। वह जैसे-तैसे खुद को संभाल ही रही थीं कि तीन साल बाद उनके छोटे बेटे की भी असमय मृत्यु हो गई। द्रोपदी अभी संभली भी नहीं थीं कि जल्द ही उनके जीवनसाथी भी चल बसे। द्रोपदी की सबसे छोटी बेटी का निधन तीन साल की उम्र में ही हो गया था।
अपने तीन बच्चों और पति की मौत से वह पूरी तरह टूट गईं। उनके लिए अवसाद से निकलना एक तरह से नामुमकिन सा हो चला था। लेकिन फिर वह ब्रह्माकुमारी संस्था के संपर्क में आईं। वह अपने घर के नजदीक केंद्र पर जाने लगीं। यहां उन्होंने राजयोग ध्यान (मेडिटेशन) को सीखा। नियमित राजयोग ने उनके जीवन में चमत्कारी बदलाव किए। अपने अनुभवों से संबंधित कई बातें मुर्मू साक्षात्कारों में दोहरा चुकी हैं। वह कहती हैं कि राजयोग ने उनके जीवन को पूरी तरह बदलने में सबसे बड़ी भूमिका निभाई है अन्यथा वो तो जीवन से हार ही गई थीं।
योग और ध्यान करना कभी नहीं भूलतीं:
बताया जा रहा है कि द्रौपदी चाहे कितनी भी व्यस्त हों वह योग और ध्यान करना कभी नहीं भूलतीं। राजयोग से उन्होंने अपने जीवन काफी व्यवस्थित कर लिया है। व्यस्तता के बाद भी वह सवेरे 3.30 बजे उठ जाती हैं और राजयोग ध्यान करती हैं। इसके अलावा सैर पर जाना भी उनकी दैनिक दिनचर्या में शामिल है।
ब्रह्माकुमारी संस्थान के प्रवक्ता बी के कोमल ने बताया कि द्रोपदी मुर्मु जब गहरे अवसाद में थीं तब संस्था से उनका नाता जुड़ा। कोमल ने बताया कि द्रोपदी नियमित रूप से माउंट आबू स्थित संस्था के मुख्यालय में आती रहती हैं और ध्यान और योग करती हैं। द्रौपदी शिव परमात्मा की ट्रांस लाइट और ध्यान, ज्ञान से संबंधित पुस्तक सदा अपने साथ रखती हैं ताकी परमात्मा से उनका योग कभी न टूट पाए। वह अगर व्यस्त भी होती हैं तो समय मिलने पर ध्यान व योग की किताब पढ़ने लग जाती हैं। इससे उनको बल और प्रेरणा दोनों मिलती हैं।
(The report is sponsored by SBI cards. Courtesy: MHFI)