Mental Health

मुक्ताक्षर

अपनी काल्पनिक बदसूरती को समाप्त करने का जुनून एक मानसिक बीमारी है

लेखक: Admin

उपशीर्षक: बॉडी डिस्मॉर्फिक डिसऑर्डर (बीडीडी) एक प्रकार का मानसिक स्वास्थ्य विकार है जिसमें पीड़ित को अपने चेहरे में काल्पनिक दोष महसूस हो सकता है और इसे ठीक करने की कोशिश में कई लोग आत्महत्या तक कर लेते हैं।

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हाल ही में कन्नड़ अभिनेत्री चेतना राज की प्लास्टिक सर्जरी के दौरान बेंगलुरु के एक निजी अस्पताल में हुई मौत के बाद बीडीडी पर चर्चा शुरू हो गई है। कथित तौर पर प्लास्टिक सर्जरी के दौरान हुई चूक को चेतना की मौत का कारण बताया जा रहा है। अभिनेत्री को ‘फैट फ्री’ सर्जरी के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया था।

क्या है यह बीडीडी:

बॉडी डिस्मॉर्फिक डिसऑर्डर (बीडीडी) एक प्रकार का मानसिक विकार है जिसमें पीड़ित का खुद पर जुनूनी ध्यान केंद्रित होता है। पीड़ित को अपने चेहरे में काल्पनिक दोष महसूस हो सकता है और इसे ठीक करने की कोशिश में पीड़ित घंटों बिता सकता है। कभी कभी पीड़ित कॉस्मेटिक प्रक्रियाओं की कोशिश कर सकता है। जिसकी वजह से कई लोग आत्महत्या तक कर लेते हैं।

पुरुषों के मुकाबले महिलाएं इसकी ज्यादा  पीड़ित होती हैं। उन पर सुंदर बनने का ऐसा दबाव होता है कि उनकी जान तक पर बन आती है। बीडीडी से पीड़ित व्यक्ति को हमेशा उसकी शारीरिक बनावट में कमी दिखती रहती है। शरीर को सुंदर बनाने वाले अंग जैसे की होंठ, नाक, चेहरे की बनावट आदि को लेकर शिकायत रहती है। ऐसे लोग कई बार खुद को कुंठित और शर्मिंदा महसूस करते हैं और लोगों से भी कटने लग जाते हैं। शारीरिक बनावट को लेकर चिंता इनको आत्महत्या तक के लिए मजबूर कर सकती है। बीडीडी की मुख्य बात यह भी है कि यह कमियां केवल पीड़ित को नजर आती हैं, किसी और को नहीं।

80% लोगों में आते हैं आत्महत्या के विचार:

इस डिसऑर्डर से पीड़ित लोग अकेले पड़ जाते हैं और आत्महत्या तक के बारे में सोचने लग जाते हैं। नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इनफार्मेशन में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, बॉडी डिस्मॉर्फिक डिसऑर्डर से पीड़ित लोगों में 80 से ज्यादा आजीवन आत्महत्या के विचारों का अनुभव करते हैं। अध्ययन के मुताबिक 25 से 28 फीसदी आत्महत्या का प्रयास कर चुके हैं।

बीडीडी के लक्षण:

  • हमेशा शारीरिक बनावट को लेकर ही सोचते रहना, बातों में यही मुख्य मुद्दा होना
  • कॉस्मेटिक सर्जरी को लेकर उतावलापन
  • लोगों से कटे-कटे रहना और मिलने से जी चुराना
  • आत्महत्या के बारे में सोचना, जिंदगी से उबना और उदास रहना

कब होना होगा सावधान:

सही मायने में यह जानने के लिए कि डिसआर्डर किस कदर खतरनाक होता जा रहा है इन बातों से इसे परखना होगा और फिर सावधान होना होगा। जब किसी और को आपके शरीर की बनावट या अंगों में होने वाली परेशानी नहीं नजर आ रही लेकिन आप लगातार इसे लेकर चिंतित हैं। कई बार शीशे के सामने जा रहे हैं। लोगों से बस एक ही सवाल कई बार कर रहे हैं मैं कैसी लग रही हूं या मैं अच्छी लग रही हूं या नहीं?

बीडीडी के कारण

यह बीमारी किशोरावस्था में अधिक दिखने को मिलती है। बीडीडी के जैविक, मानसिक, सामाजिक, या पर्यावरणीय कारण हो सकते हैं। कुछ मुख्य कारण इस प्रकार हैं…

  1. बचपन का कोई बुरा अनुभव जिसमें बच्चे के शरीर या उसके किसी अंग को लेकर बुरी बात कही हो और यह बच्चे के मन में बैठ गई हो।
  2. खुद को कमतर समझना, हीन भावना या पारिवारिक विघटन भी इसके पीछे का कारण हो सकता है।

संभव है इलाज:

यह बीमारी जितना जल्दी पहचान में आए उतना मरीज के लिए बेहतर है। क्लिनिकल साइक्रिटस्ट डॉ प्रभा गुप्ता कहती हैं कि सही समय पर बीमारी की जानकारी होने पर एंटी-डिप्रेशन, कॉग्निटिव बिहेवियर थेरेपी और ग्रुप थेरेपी के जरिए पीड़ित को ठीक किया जाता है। ध्यान और योग भी इसमें सहायक भूमिका अदा कर सकते हैं। इसके अलावा परिवारजनों का साथ और स्नेह भी मरीज को इस डिसऑर्डर से छूटने में मदद करता है।

(The report is sponsored by SBI cards. Courtesy: MHFI)

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