Mental Health

मुक्ताक्षर

शादीशुदा कामकाजी महिलाओं में बढ़ता ही जा रहा है मानसिक समस्या

लेखक: Admin

उपशीर्षक: शादीशुदा कामकाजी महिलाओं को नौकरी के अलावा घर को भी संभालना पड़ता है। प्रसव उपरांत अवसाद का भी दंश महिलाओं को ही झेलना पड़ता है। इसके अलावा अन्य कई शारीरिक कारण, जैसे मासिक धर्म, हार्मोनल असंतुलन, उनमें तनाव का स्तर और बढ़ा देते हैं। ऐसे में वो महिलाएं जो कामकाजी हैं और शादीशुदा भी, इन सब में उलझ गहरे अवसाद में चली जाती हैं।

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जहां एक ओर महिलाएं सफलता की सीढ़ियां चढ़ रही हैं तो वहीं उनके मानसिक स्वास्थ्य में लगातार गिरावट आ रही है। क्योंकि, मौजूदा दौर में तनाव बहुत बढ़ गया है। कामकाजी महिलाओं पर इसका बुरा असर पड़ रहा है। उस पर भी अगर वो शादीशुदा हैं तो चुनौती और भी बड़ी है।

कोविड-19 महामारी के बाद महिलाओं में तनाव काफी बढ़ा है। आंकड़े बताते हैं कि कोरोना महामारी के बाद भारत में महिलाओं की रातों की नींद भी उड़ गई है। उनके सोने के औसत समय में भारी कमी आई है। इनमें भी विशेष रूप से शादीशुदा कामकाजी महिलाओं का हाल सबसे बुरा है। एक राष्ट्रव्यापी सर्वेक्षण में पाया गया कि देश में कामकाजी महिलाएं अब रोजाना मात्र 5.50 घंटे ही सो रही हैं, कोरोना से पहले सोने का उनका औसत रोजाना 6.50 घंटे होता था। यानी उनके सोने के घंटे में लगभग 16 प्रतिशत की कमी आई है। इसका मुख्य कारण  उनके ऊपर काम का दोहरा बोझ बढ़ना है इससे महिलाओं में चिंता, चिड़चिड़ापन और अवसाद बढ़ रहा है।

एक अध्ययन में यह भी पाया गया है कि पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में अवसाद अधिक होता है। शादीशुदा महिलाओं को नौकरी के अलावा घर को भी संभालना पड़ता है। प्रसव उपरांत अवसाद का भी दंश महिलाओं को ही झेलना पड़ता है। इसके अलावा अन्य कई शारीरिक कारण जैसे मासिक धर्म, हार्मोनल असंतुलन उनमें तनाव का स्तर और बढ़ा देते हैं। ऐसे में वो महिलाएं जो कामकाजी हैं और शादीशुदा भी, इन सब में उलझ गहरे अवसाद में चली जाती हैं। शुरू में लक्षण चिड़चिड़ाहट, मानसिक रूप से कमज़ोर महसूस करना जैसे होते हैं लेकिन धीरे-धीरे ये गंभीर तनाव का रूप ले लेते हैं।

अमेरिका की ड्रेक्सेल यूनिवर्सिटी के डॉर्नसेफ स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के शोधकर्ताओं के एक अध्ययन से पता चला है कि चुनौतीपूर्ण वातावरण में कार्य कर रहीं महिलाओं में मानसिक तनाव के कारण हृदय रोग का खतरा बढ़ रहा है। यह अध्ययन अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। अध्ययन के दौरान शोधकर्ताओं ने 1991 से 2015 तक प्रतिभागियों पर नजर रखी। 14 साल, 7 महीने के इस अध्ययन के दौरान पाया गया कि करीब 5 फीसदी महिलाओं में कोरोनरी हृदय रोग हुआ। इसमें उच्च तनाव वाले जीवन की घटनाओं की वजह से कोरोनरी हृदय रोग के 12 फीसदी मामले पाए गए। अध्ययन के मुताबिक नौकरी और सामाजिक तनाव का प्रभाव कामकाजी महिलाओं पर बहुत गहरा असर छोड़ते हैं। यही कोरोनरी हृदय रोग के खतरे को 21 प्रतिशत तक अधिक बढ़ाने के लिए जिम्मेदार है।

 बहुत तनाव में है हम…

नोएडा में एक मल्टीनेशनल कंपनी में उच्च पद पर कार्यरत शुभांगी कहती हैं कि इतना तनाव तो जीवन में पहले कभी नहीं देखा। घर और दफ्तर के कामों में जीवन उलझ कर रह गया है। तीन साल पहले मेरी शादी हुई थी एक साल की बच्ची की मां बन चुकी हूं लेकिन अब लग रहा है न पेशेवर और न ही व्यक्तिगत जिंदगी को जी पा रही हूं। तनाव, थकान और चिड़चिड़ापन बहुत ज्यादा है। छोटी-छोटी बातों पर रोना आ जाता है, लगता है जैसे कुछ भी संभाला नहीं जा रहा मुझसे। मेरा आत्मविश्वास और मनोबल कम होता जा रहा है।

गुड़गांव की एक सॉफ्टवेयर कंपनी में कार्यरत रुचि ने बताया कि फिलहाल दफ्तर तो नहीं जाना पड़ रहा लेकिन मेरी हालत बहुत खराब हो गई है। पति सैमसंग कंपनी में हैं उनका बीच-बीच में दफ्तर जाना हो रहा है। घर पर दो छोटे बच्चे हैं। मेरी टीम के सीनियर जरा भी सहयोग नहीं करते हैं, काम के घंटे भी बहुत बढ़ गए हैं। मेरे दो छोटे बच्चे हैं, सारा क्रोध उन पर निकालती हूं। किसी का घर आना भी अब मुझे पसंद नहीं आता। मैं हर काम बेमन से करती हूं, चाहे वो घर के सदस्यों के लिए खाना बनाना ही क्यों न हो।

पहले मैं ऐसी नहीं थी। मगर अनचाही परिस्थितियों में बंध सी गई हूं, नौकरी भी नहीं छोड़ सकती क्योंकि कुछ कर्ज भी चल रहे हैं। इन सबका मेरी मानसिक सेहत पर बुरा असर पड़ रहा है। मेरे हाथ-पैरों में झनझनाहट सी होती है। कभी-कभी लगता है जैसे दिल की धड़कन बहुत बढ़ गई है। अजीब सी डर में जी रही हूं।

इस बारे में गायनोकोलॉजिस्ट डॉ अंजू सूद का कहना है कामकाजी महिलाओं में तनाव दिनों-दिन बढ़ता जा रहा है। थायरॉयड, बेचैनी, माइग्रेन, मनोदशा में अचानक परिवर्तन, और अवसाद से परेशान महिलाएं हमारे पास अक्सर आती हैं। इनमें भी शादीशुदा महिलाओं की संख्या अधिक है। महिलाओं पर क्षमता से ज्यादा कार्यों का दबाव अब बढ़ने लगा है जिससे उनकी मानसिक और शारीरिक सेहत गिर रही है।

राजयोग मेडिटेशन प्रशिक्षिका और परामर्शदाता सुनीता बत्रा का कहना है कि कामकाजी शादीशुदा महिलाओं पर दफ्तर और पारिवारिक काम का दबाव दोगुना हो गया है। हमारे पास ऐसे बहुत से मामले आते हैं जिनमें महिलाएं इस बोझ में खुद को अकेला महसूस करने लगी हैं। वो घुट रही हैं और कहती हैं कि उनकी बात सुनने वाला और उनको समझने वाला कोई है ही नहीं। वो अवसाद की दवाइयां ले रही हैं लेकिन उससे कुछ खास फायदा उनको नहीं हो रहा।

वह बताती हैं कि ऐसी स्थिति से बचने के लिए ऐसी महिलाओं को परिवार के लोगों के साथ, पति के साथ, अपनी समस्या पर चर्चा करनी चाहिए, उसका समाधान ढूंढना चाहिए। काम अगर बहुत ज्यादा है तो उसे मिल बांट कर करने की कोशिश करनी चाहिए ताकि दबाव का वितरण परिवार के लोगों के साथ हो सके।

इसके अलावा शारीरिक और मानसिक तंदुरुस्ती बनाए रखने के लिए, महिलाओं को रोजाना शारीरिक व्यायाम, योगा, ध्यान और कुछ न कुछ खेल में हिस्सा लेना चाहिए।

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