लेखक: Admin
शीर्षक: कम आमदनी वाले देशों के नागरिकों का मानसिक स्वास्थ्य बदतर
उपशीर्षक: अभी तक यही माना जाता रहा है कि विकसित देशों में लोग मानसिक रूप से ज्यादा परेशान है लेकिन सच्चाई यह है कि विकासशील देशों के लोगों की मानसिक स्थिति ज्यादा बिगड़ी हुई है।
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बाप बड़ा, न भैया… सबसे बड़ा रुपैया… फिलहाल तो यह गाना लोगों की खराब होती मानसिक स्थिति पर भी लागू हो रहा है। जिसमें रिश्ते-नातों की खींचतान से भी ज्यादा कम आमदनी लोगों की खराब मानसिक स्थिति के लिए बड़ी वजह बन कर सामने आ रही है। यही नहीं एक और बात भी स्पष्ट हुई है कि विकासशील देशों के लोग विकसित देशों की तुलना में मानसिक रूप से ज्यादा परेशान है।
दरअसल, पूरी दुनिया में तनाव, चिंता और अवसाद तेजी से पांव पसार रहे हैं। दुनिया भर में बढ़ती बीमारियों की श्रेणी में मानसिक बीमारियां शीर्ष पर पहुंच रही है। ऐसे में इन बीमारियों की बढ़ती वजह के कारणों की पड़ताल में शोधकर्ता लगे हुए हैं। नित नए अध्ययन सामने आते रहते हैं जो तेजी से बढ़ रहे मानसिक विकारों के कारणों को तलाशते हैं।
हाल ही में कुछ अध्ययनों में यह बात सामने आई है कि मानसिक बीमारियां ऐसे देशों में अधिक है जहां लोगों की आमदनी का औसत साधारण या उससे कम है। यानी की कम आमदनी वाले देशों के नागरिकों का मानसिक स्वास्थ्य बेहतर नहीं है।
लेकिन, विकसित देशों में मानसिक स्वास्थ्य के मामले ज्यादा क्यों?
हालांकि, ध्यान देने वाली और चौंकाने वाली एक बात और भी है। विकसित देशों में मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े मामले विकासशील देशों की तुलना में ज्यादा दर्ज किए जाते हैं। अब इस बात का राज क्या हो सकता है यह जानना जरूरी है। इस बात पर से भी शोधकर्ताओं ने पर्दा हटा दिया है। बात सामने आई है कि विकासशील देश के लोग मानसिक स्वास्थ्य के लिए उतने जागरुक नहीं है जितने कि विकासशील देशों के लोग। यही वजह है कि मानसिक स्वास्थ्य को लेकर आने वाली परेशानियों से जुड़े मामले ज्यादा आमदनी वाले देशों (विकसित देशों) में ही ज्यादा दर्ज किए जाते हैं।
सामने आई नई जानकारी:
शोधकर्ताओं का इस बारे में कहना है कि ज्यादा आमदनी वाले देशों के लोग अपनी मानसिक स्थिति खराब होने पर चिकित्सकों से परामर्श लेने में नहीं कतराते। इसलिए आंकड़ों के आधार पर ऐसा ही माना जाता है कि विकसित देशों में लोग मानसिक रूप से ज्यादा परेशान है। लेकिन शोध के बाद पता चल गया है कि विकासशील देशों के लोगों की मानसिक स्थिति ज्यादा बिगड़ी हुई है। अध्ययनकर्ताओं का यह भी कहना है कि अगर कम आमदनी वाले देशों के लोग मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरुक हो जाएं और इससे जुड़े आंकड़े सामने आए तो सबको पता चल जाएगा कि इन देशों के लोगों का मानसिक स्वास्थ्य ज्यादा आमदनी वाले देशों के लोगों की तुलना में कहीं ज्यादा बिगड़ी हुई है।
क्या कहते हैं आंकड़े:
- 2019 के एक आंकड़े के मुताबिक पूरी दुनिया में करीब 13 प्रतिशत लोग मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी बीमारियों से जूझ रहे हैं यह आंकड़ा तकरीबन 1 बिलियन है
- इसमें से 83 फीसदी लोग मध्यम या कम आमदनी वाले देशों में हैं
- ऐसे देशों में मानसिक बीमारी को लेकर स्वास्थ्य सेवाएं बहुत कम हैं या बेकार हैं
- कोरोना ने पूरी दुनिया में तनाव, अवसाद, चिंता, और बेचैनी के मामलों में और बढ़ोतरी की है
- जिन देशों में सबसे ज्यादा कोरोना के मामले रहे वहां मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े मामले 1 साल में 26 से 28 फीसदी ज्यादा बढ़ गये
- ऐसे में मध्यम या कम आमदनी वाले देशों के लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर ज्यादा बुरा असर पड़ा है
- एक रिपोर्ट के मुताबिक 50 फीसदी से ज्यादा महिलाओं को अवसाद और तनाव है
- पुरुषों में मानसिक स्वास्थ्य के मामले सबसे ज्यादा बढ़े हैं
- मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी बीमारी अर्थव्यवस्था पर भी बहुत बुरा असर डाल रही है
- वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की माने तो 2030 तक मानसिक बीमारियों पर कम से कम 6 ट्रिलियन डॉलर खर्च करने पड़ जाएंगे
(The report is sponsored by SBI cards. Courtesy: MHFI)