Mental Health

मुक्ताक्षर

बेटे की जिद्द ने मां को अवसाद से निकाला

लेखक: तृप्ति मिश्रा

उपशीर्षक: हालातों से बाहर निकलना इतना मुश्किल नहीं होता। मोना की कहानी में आप देख सकते हैं कितनी बुरी स्थिति थी उसकी। ऐसे हालातों में हमारा मनोबल दम तोड़ रहा होता है जिसे ही बचा कर रखना होता है।

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मोना जो कि एक माँ, एक पत्नी, एक बहन, एक बेटी… न जाने वो कितने रिस्ते निभा रही थी। मुस्कुराती और मस्ती में रहती थी। मगर समय के साथ वो अब सिर्फ बीती बातें बन कर रह गईं थी। उसके साथ पति, बेटा, सास, देवर, बच्चे भी थे फिर भी वो हर वक़्त गुमसुम सी चुपचाप सी रहती। घर में किसी को इतना वक़्त ही नहीं था कि मोना को समझे या उससे बात करे और जाने कि उसके अन्तर्मन में आखिर क्या चल रहा है।

 

अब वो रोकर भी थक गई थी। आस पड़ोस वाले रिश्तेदार सभी को यह सब एक नाटक की तरह लगता। उन्हें समझ नही आता क्यों हंसती मुस्कुराती मोना अचानक उदास हो गई, खुद में खोई रहती। उसको किसी से अब बात करना भी पसंद नही था। सिर्फ अकेले रहना ही पसंद आने लगा।

 

कुछ साल पहले मोना ने अपने माता, पिता, बहन सभी को एक आकस्मिक दुर्घटना में खो दिया था। अभी वो इन सभी से खुद को पूरी तरह निकाल भी नही पाई थी की एक बीमारी ने उसकी बिटिया को भी हमेशा के लिए सुला दिया। अब मोना को जैसे अपनी जिन्दगी से कोई मतलब ही नहीं रह गया था। उसका पूरा दिन सिर्फ सोचने में निकलता।

 

अगर कोई बात करे तो वो रोने-चिल्लाने लगती, सभी सोचते या तो यह पागल हो गई है या नाटक कर रही है। उस के भीतर एक झुंझलाहट, एक अकेलापन, एक खालीपन आ गया था। शायद उसकी ये बातें किसी को समझ नहीं आ रही थी या कोई समझना नहीं चाहता था। एक दिन मोना के बेटे का मित्र अपनी मां सुरेखा के साथ किसी काम से उनके घर आया। सुरेखा एक मनोवैज्ञानिक संस्थान से जुड़ी थी।

 

दूसरे दिन सुरेखा ने मोना के बेटे को अपने पास बुलाई और पूछी कि क्या वह अपनी मां की हालत में सुधार देखना चाहता है। “क्या तुम चाहते हो तुम्हारी मां फिर मुस्कुराये? अपनी जिंदगी को खुल कर जिये?” मोना के बेटे ने तपाक से बोला, “हां, मगर ऐसा होगा? मां तो खुश रहने की कोशिश ही नहीं करती।”

 

सुरेखा ने कहा, “हां, हो सकता है बिल्कुल होगा। मैं तुम्हे एक पता लिख कर देती हूँ, तुम अपनी मां को कल वहां लेकर जाना।” रात भर बेटे के मन मे विचार चल रहे थे कि मां को कैसे बताऊँगा? उसने ये बात अपने पिताजी को बताई, अब  दोनों ने मिल कर फैसला किया कि वो मोना को कल वहां लेकर जायेंगे।

 

दूसरे दिन दोनों ने मोना को सुबह तैयार होने को बोला। मोना ने हमेशा की तरह मना कर दी, “नहीं जाना मुझे कहीं भी।” उस की बातें में एक झुंझलाहट सी होती थी मगर आज बेटे की जिद्द ने मोना को मजबूर कर दिया ।मोना तैयार हुई सभी घर से उस पते पर पहुंचे जो सुरेखा ने उनको दिया था।

 

वहां मोना को पहले एक मनोचिकित्सक को दिखाया गया। उन्हें मोना की हालत को देख कर साफ साफ पता चल गया कि वो अवसाद कि मरीज है। उन्होंने मोना की हालत  देखी और इलाज शुरू कर दिया मगर मोना को अब भी मन ही मन ये सब मंजूर नहीं था। घर वाले पहले ही बहुत कोशिश कर के अब थक चुके थे। फिर मनोचिकित्सक ने मोना के बेटे और पति से मोना की लगातार काउंसलिंग करवाने को कहा।

 

अब मोना के घरवालों ने उसको हर रोज मेडीटेशन करवाना, घुमाना, उस के साथ वक़्त बिताना, उस के दिल की हर बात सुनना और मानना शुरू कर दिया। धीरे धीरे समय बीतता गया और मोना अपने मन से वहां जाने लगी। उसको बात करना, लोगों से मिलना अच्छा लगने लगा। लगभग एक से डेढ़ साल ऐसा ही चलता रहा।

 

अब मोना को मुस्कुराना, लोगों से मिलना-जुलना, घूमना अच्छा लगने लगा। मोना को ऐसा देख कर आज सब से ज्यादा खुशी उस के बेटे को हो रही थी। मोना का बेटा रोज मन ही मन सुरेखा को धन्यवाद देता, कि उनके जीवन की जो खुशी अधूरी रह गई थी वो अब लौट आई है, वरना मोना तो उस घर में होकर भी नहीं थी। उसकी मनःस्थिति को कोई समझ नहीं पाता अगर समय पर सुरेखा उसके जीवन में नहीं आई होतीं।

 

इस बारे में मोटीवेशनल स्पीकर और परामर्शदाता महिमा गौतम शर्मा कहती हैं कई बार हम सामने हो रही बातों को, घटनाओं को, हालातों को बहुत ही सहज में ले लेते हैं मगर कुछ बातें हमें दूसरों से हिम्मत और हौसला भी देती हैं। इंसान बुरा नहीं होता उसके हालात बुरे होते हैं जिनसे हम थोड़ी सी कोशिश करने के बाद पार पा सकते हैं। हालातों से बाहर निकलना इतना मुश्किल नहीं होता। मोना की कहानी में आप देख ही सकते हैं कितनी बुरी स्थिति थी उसकी। ऐसे हालातों में हमारा मनोबल दम तोड़ रहा होता है जिसे ही बचा कर रखना होता है।

 

(कर्मा हीलिंग सेंटर की कंसलटेंट और परामर्शदाता महिमा गौतम शर्मा से तृप्ति मिश्रा की बातचीत पर आधारित)

 

(The report is sponsored by SBI cards. Courtesy: MHFI)

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