लेखक: Admin
उपशीर्षक: कभी-कभी कुछ खास प्रकार के विचारों में खो जाना हमें अवसाद से दूर कर सकता है। विचारों की यह थेरेपी जादू की तरह हमें खुशियों की सौगात दे सकती है।
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कभी-कभी लोग विचारों में इस कदर खो जाते हैं कि उनको आस-पास का पता ही नहीं चलता। एक अलग ही प्रकार की दुनिया उनके दिमाग में बन रही होती है। विचारों में इस प्रकार से खो जाने को डे-ड्रीमिंग कहा जाता है। डे-ड्रीमिंग एक प्रकार की थेरेपी है जो हमारे लिए बहुत फायदेमंद साबित हो सकती है। इतनी की खुशियां हमारे करीब आ जाएं और अवसाद कोसों दूर भाग जाए। यह दावा किया है यूनिवर्सिटी ऑफ फ्लोरिडा के वैज्ञानिकों ने जो डे-ड्रीमिंग पर अध्ययन कर रहे हैं।
विचारों को देनी होगी खास दिशा:
अध्ययन के आधार पर वैज्ञानिकों ने कहा है कि अगर सोच-विचार को सही दिशा और परिस्थितियां दी जाएं तो डे-ड्रीमिंग थेरेपी हमारे जीवन में खुशियों की बरसात कर सकती है। अध्ययनकर्ता डॉ एरिन वेस्टगेट का कहना है कि अगर खास तरह से डे-ड्रीमिंग की जाए तो इससे हमारे मन को स्थिरता और खुशी मिल सकती है; यही नहीं दिमाग और भी ज्यादा क्रियात्मक बन सकता है। सबसे खास बात अवसाद, चिंता और तनाव भी जीवन से नौ दो ग्यारह हो सकते हैं। एरिन बताते हैं कि अध्ययन में डे-ड्रीमिंग थेरेपी के बेहतर नतीजे आए हैं और लोगों की समस्याओं के समाधान में इसके अच्छे नतीजे मिले हैं।
सोच-विचार की अपनी प्रक्रिया को कम आंकते हैं लोग:
आपने देखा होगा कि समस्या आने पर ज्यादातर लोग अपने अंदर सोच-विचार की प्रक्रिया से बचते हैं। जैसे कि वह मेहनत ही नहीं करना चाहते। वे परिस्थिति से समझौता कर लेते हैं और तकलीफ भी सहते रहते हैं। कई अध्ययनों में यह बात भी सामने आ चुकी है कि अपने भीतर विचार मंथन से बचने का एक कारण यह भी है कि लोग सोच-विचार की अपनी प्रक्रिया को कम आंकते हैं। लेकिन डे-ड्रीमिंग थेरेपी के बारे में जानकर शायद वह भी आसानी से अपनी समस्याओं का निदान कर सकें।
कुछ बातों का रखना होगा ध्यान:
डॉ वेस्टगेट डे-ड्रीमिंग को लेकर कहती हैं कि अगर आप डे-ड्रीमिंग को थेरेपी की तरह प्रयोग करते हैं तो कुछ बातों का ध्यान रखना होगा तब ही यह मन और दिमाग के लिए फायदेमंद साबित होगी। डे-ड्रीमिंग में खोने का सबसे सही समय तब है जब कोई ऐसा काम किया जा रहा हो जिसमें मानसिक रूप से हमें ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता नहीं हो, जैसे की बागवानी करते समय या टहलते वक्त। लेकिन इसका यह मतलब कतई नहीं है कि कुछ भी न करें और सिर्फ दिन में सपने देखते रहें। अध्ययनकर्ताओं का कहना है कि छोटे-मोटे काम करते समय डे-ड्रीमिंग ज्यादा आसान है।
सकारात्मक और रोचक विचार पर करें काम:
वेस्टगेट का कहती हैं कि सकारात्मक सोच और रोचक विचारों के साथ डे-ड्रीमिंग करना निश्चय ही चिंता और तनाव से बाहर निकाल सकता है। अपने विचारों को अच्छी यादों पर केंद्रित करें। भविष्य में होने वाली किसी घटना के बारे में जिसे आप अपने जीवन में होते देखना चाहते हों या फिर जिन लोगों की आप फिक्र करते हैं उनको लेकर किसी अच्छी घटना पर केंद्रित करें। शोधकर्ताओं का कहना है डे-ड्रीमिंग में रोचक विचारों पर काम कर सकते हैं। दिलचस्प विचारों पर केंद्रित होने से क्रियात्मकता बढ़ती है। किसी समस्या का समाधान खोजने में लगे लोग थोड़ा विराम लेकर कोई और छोटा-मोटा काम करते हुए समस्या का ज्यादा रचनात्मक हल खोजने में सफल रहते हैं। चुपचाप बैठे हुए सोचते रहने से समस्या का हल और मुश्किल हो जाता है।
याददाश्त बढ़ने लग जाती है:
अध्ययनों के अनुसार लोगों का 47 प्रतिशत दिन डे-ड्रीमिंग में बीतता है। लेकिन परेशानी यह है कि ज्यादातर लोग गलत दिशा या डराने वाली घटनाओं का चिंतन ज्यादा करते हैं। अगर डे-ड्रीमिंग को सही दिशा दी जाए तो इससे याददाश्त भी बेहतर होने लगती है।
(The report is sponsored by SBI cards. Courtesy: MHFI)