लेखक: Admin
उपशीर्षक: अध्ययनकर्ताओं का कहना है कि माता-पिता और बाल संघर्ष भी किशोरों में बढ़ते अवसाद के मुख्य कारणों में से एक हैं।
पूरी दुनिया में बच्चों और किशोरों में अवसाद के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। भारत में भी स्थिति अच्छी नहीं है। ऐसे में दुनिया भर के वैज्ञानिक चिंतित हैं और मामले की तह तक जाने के लिए अध्ययनों में लगे हुए हैं। इसी मामले को लेकर पेन स्टेट और मिशिगन स्टेट ने अपना अध्ययन प्रस्तुत किया है इस हालिया शोध के अनुसार, किशोरों में अवसाद और व्यवहार के मामले लगातार बढ़ रहे हैं और माता-पिता का अवसाद इस संख्या में और योगदान दे सकता है। ‘डेवलपमेंट एंड साइकोपैथोलॉजी’ जर्नल में प्रकाशित इस शोध के अध्ययनकर्ताओं ने माता-पिता और उनके किशोर बच्चों के बीच आनुवंशिक संबंध और इन संबंधों में स्वाभाविक रूप से होने वाली भिन्नताओं की बारीकी से जांच की। वैज्ञानिकों ने बताया कि यह निष्कर्ष पिता और बच्चों के बीच उदासी एवं व्यवहार के पर्यावरणीय संचरण को स्पष्ट रूप से इंगित करते हैं।
अध्ययनकर्ता बर्ट का कहना है कि हमने यह भी पाया कि माता-पिता और बाल संघर्ष भी किशोरों में बढ़ते अवसाद के मुख्य कारणों में से एक हैं। उन्होंने कहा कि अध्ययन के निष्कर्ष इस मामले को भी मजबूत करते हैं कि माता-पिता के संघर्ष किशोर व्यवहार को बहुत ज्यादा प्रभावित करते हैं।
बर्ट का यह भी कहना है कि अध्ययन के निष्कर्षों में अभी भी इन संबंधों को मिश्रित परिवारों के नमूने में ही देखा गया है जहां पिता जैविक रूप से एक भाग लेने वाले बच्चे से संबंधित थे, लेकिन दूसरे से नहीं। यानी कि गैर-साझा पर्यावरण में भाग लेने वाले 720 परिवारों में, आधे से ज्यादा परिवारों में सौतेले माता-पिता हैं जो बच्चों की परवरिश के लिए जिम्मेदार थे।
पेन स्टेट में मनोविज्ञान और मानव विकास और पारिवारिक अध्ययन के प्रोफेसर जेने नीडरहाइसर के मुताबिक, बहुतेरे शोध जैविक रूप से संबंधित परिवारों के अंदर पनपे अवसाद पर केंद्रित हैं। इस संबंध में अब धीरे-धीरे संयुक्त और एकाकी परिवार के माता-पिता और बच्चों के व्यवहार आधारित संबंध और अवसाद कड़ी की तह तक जाने के लिए अध्ययन शुरू हो चुके हैं जिनकी गहराई में जाने के बाद दुनिया में बढ़ रहे किशोरों के अवसाद के मामलों को समझ कर उनको काबू किया जा सकता है।
भारतीय किशोरों में अवसाद की स्थिति चिंताजनक:
भारतीय किशोरों में भी अवसाद गंभीर स्थिति में पहुंच रहा है। आंकड़े बताते हैं कि देश में 15 से 24 साल की आयु वर्ग का हर सातवां किशोर अवसाद की चपेट में है। हाल ही में आई हार्वर्ड मेडिकल स्कूल की रिपोर्ट में सामने आया कि भारतीय किशोरियों में पिछले एक दशक में अवसाद के मामले तेजी से बढ़े हैं।
(The report is sponsored by SBI cards. Courtesy: MHFI)