Mental Health

मुक्ताक्षर

बच्चों की हर जिद को मानसिक कमजोरी ना समझे

लेखक: Admin

उपशीर्षक: बच्चों की जिद को दृढ़ इच्छाशक्ति के रूप में देखें तो आप परेशान नहीं होंगे। बच्चा अगर किसी बात पर अडिग होता है तो उसका अभिप्राय यह भी हो सकता है कि वह अपने लक्ष्य के प्रति केंद्रित हो। इसलिए अड़ियल रवैया ना अपनाकर, बच्चों के जिद्दीपन को सकारात्मक कार्यों एवं गतिविधियों की ओर मोड़ने की कोशिश करें।

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मेरा बच्चा बहुत जिद्दी है। उसे कुछ कहना समय बर्बाद करना है। वह अपने मन की ही करता है। उसे मन का खाना न मिले तो वह भूखे ही रह जाता है। कपड़ों के चयन में भी वो अपनी ही चलाता है, मेरी जरा नहीं मानता। इस प्रकार के कथन अक्सर माता-पिता और अभिभावकों की आम भाषा हो चली है।

माता-पिता और अभिभावक दुखी और चिंतित रहते हैं कि पता नहीं बच्चा क्या करेगा? उसका भविष्य क्या होगा? वह मानसिक तौर पर अजीब तो नहीं है? दूसरे बच्चों से ठीक से घुलमिल पाएगा या नहीं? इतने सारे नकारात्मक व संशययुक्त विचारों के कारण बच्चों एवं उनके माता-पिता के संबंधों में कहीं न कहीं कड़वाहट या दूरी आने लगती है। जिससे वातावरण भी नकारात्मक और लड़ाई-झगड़े वाला बना रहता है और बच्चों तथा अभिभावकों दोनों के मानसिक स्वास्थ्य पर इसका बुरा प्रभाव पड़ता है।

मानसिक कमजोरी नहीं है जिद्दीपन:

इस बारे में वरिष्ठ मनोचिकित्सक नयामत बावा बताते हैं कि बच्चों की जिद्द को उनकी कमजोरी नहीं, बल्कि दृढ़ इच्छा शक्ति के रूप में देखने की जरूरत है। जिद्दीपन हमेशा ही मानसिक कमजोरी हो ऐसा जरा भी नहीं है। जिद्दी स्वभाव के कारण बच्चा अनावश्यक दबाव में नहीं रहता और अपनी मंजिल तक पहुंचने में कामयाब हो जाता है। माता-पिता और अभिभावक ये सोचें कि बच्चा जानता है कि उसे क्या करना है। वह किसी प्रकार के संशय में नहीं है। वह जो चाहता है, उसे करके दिखाता है।

गलत साबित हुए अभिभावक:

बच्चा अगर किसी बात पर अडिग होता है तो उसका अभिप्राय यह भी हो सकता है कि वह अपने लक्ष्य के प्रति केंद्रित हो। मनोचिकित्सक नयामत बावा बताते हैं कि एक बार मेरे पास एक अभिभावक इस शिकायत के साथ आए थे कि 9वीं में पढ़ने वाला उनका बेटा पढ़ाई पर बिल्कुल ध्यान नहीं देता है। कंप्यूटर में ही लगा रहता है। वह बेटे अमोल के भविष्य को लेकर चिंतित थे। लेकिन अमोल से बात करने पर पता चला कि वह डिजाइनर बनना चाहता है और बिना किसी को बताए उसकी तैयारी भी कर रहा है। आखिरकार उसने नेशनल इंस्टीट्यूट आफ फैशन डिजाइनिंग की प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण कर ली और अहमदाबाद के नेशनल इंस्टीट्यूट आफ डिजाइन में पढ़ रहा है। कहने का तात्पर्य यह है कि जिद्दी स्वभाव के कारण बच्चा अनावश्यक दबाव में नहीं रहता, वह चुनौतियों से नहीं डरता और अपनी मंजिल तक पहुंचने में कामयाब हो जाता है।

न बनने दें मनोरोगों का शिकार:

माता-पिता और अभिभावकों को चाहिए कि वे बच्चों के प्रति संवेदनशील रुख रखें। बच्चे के जिद्दीपन को सकारात्मक कार्यों एवं गतिविधियों की ओर मोड़ने की कोशिश करें। उनमें उचित नैतिक मूल्यों और संस्कारों का संचार करें। अन्यथा बच्चे की नाजायज जिद और आपका अड़ियलपन कई प्रकार की मनोवैज्ञानिक परेशानियां पैदा कर सकता है और बच्चे सहित अभिभावक भी तनाव और मनोरोगों का शिकार हो सकते हैं।

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