Mental Health

मुक्ताक्षर

साइबर बुलिंग से युवा हो रहे अवसाद का शिकार

लेखक: Admin

उपशीर्षक: साइबर बुलिंग युवाओं में अवसाद के अलावा, ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर, चिंता, पर्सनालिटी डिसऑर्डर भी पैदा कर रहा। शोधकर्ताओं ने पाया कि ऐसे मामले बढ़ते ही जा रहे हैं और इसका समाधान बहुत जरूरी है।

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शोधकर्ताओं का मानना है कि कई मामलों में साइबर बुलिंग फिजिकल बुलिंग से भी ज्यादा खतरनाक हो सकती है जिससे मानसिक स्तर पर गहरा आघात पहुंचता है। साइबर बुलिंग से संबंधित यह अध्ययन अमेरिका की मायामी यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने किया है जो जर्नल ऑफ क्लिनिकल साइकियाट्री में प्रकाशित हुआ है।

आपको बता दें कि साइबर बुलिंग तब होती है जब बच्चे, किशोर या युवा कंप्यूटर, मोबाइल या अन्य गैजेट पर इंटरनेट का प्रयोग कर अपनी हरकतों के कारण दूसरों का निशाना बन जाते हैं। निशाना बनाने वालों का उद्देश्य जाल में फंसने वालों को पीड़ा, धमकी देना या ब्लैकमेल करना होता है।

लड़कियों को ज्यादा देते मानसिक पीड़ा:

शोधकर्ताओं ने पाया कि आठ या नौ वर्ष की उम्र में भी बच्चे साइबर बुलिंग का शिकार बन जाते हैं, लेकिन ज्यादातर मामले 17 वर्ष की आयु वाली किशोर अवस्था में होती है। अध्ययन में यह भी सामने आया कि लड़कों के मुकाबले लड़कियां साइबर बुलिंग का शिकार ज्यादा होती हैं।

मानसिक सेहत पर दिखा सीधा असर:

शोधकर्ताओं ने सितंबर 2016 से अप्रैल 2017 तक 13 से 17 वर्ष की आयु के किशोरों में साइबर बुलिंग के मामलों की जांच की। इस दौरान प्रतिभागियों को दो प्रश्नावली दी गईं। एक में बचपन के किसी सदमे वाली घटना से जुड़ी प्रश्नावली और दूसरे में साइबर बुलिंग से संबंधित प्रश्नावली को पूरा करने के लिए कहा गया।

20 प्रतिशत के आसपास प्रतिभागियों ने बताया कि कॉलेज में दाखिले से पहले दो महीनों के भीतर वो साइबर बुलिंग का शिकार हुए थे। इनमें से 50 फीसदी को टेक्स्ट मैसेज और आधे को फेसबुक पर धमकाया गया था।  इंस्टाग्राम, इंस्टेंट मैसेज, तस्वीरें, वीडियो, आवाज और चैट रूम साइबर बुलीइंग के अन्य प्लेटफॉर्म थे जिनको आधार बना धमकी दी गई।

भावनात्मक रूप से टूटे:

पाया गया कि ऐसे पीड़ित युवाओं में पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर, अवसाद, चिंता, पर्सनालिटी डिसऑर्डर और गुस्से का गंभीर स्तर देखा गया। साथ ही इनमें भावनात्मक रूप से ज्यादा प्रताड़ना देखी गई। शोधकर्ताओं ने माता-पिता को नसीहत दी है कि वे अपने बच्चों के बर्ताव पर पैनी नजर रखें और उसने बात करते रहें। जरूरत पड़ने पर फौरन मनोचिकित्सक से बात करें।

(The report is sponsored by SBI cards. Courtesy: MHFI)

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