Mental Health

मुक्ताक्षर

मानसिक बीमारियों का पता लगाने में मदद करेगी कॉफी

लेखक: Admin

उपशीर्षक: अमेरिका में यह शोध की गई है जिसमें बताया गया है कि किस प्रकार प्याले में बची हुई कॉफी का प्रयोग कर दिमागी समस्याओं का पता लगाया जा सकता है।

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अगर कॉफी पीने की बात की जाए तो इसको लेकर कई अध्ययन किए गए हैं। कई अध्ययनों में यह बताया गया है कि कॉफी अवसाद दूर करने में मददगार है। एक शोध के मुताबिक, कॉफी में मौजूद कैफीन दिमाग के एक मैकेनिज्म को बंद कर देता है जो शरीर में तनाव के विभिन्न प्रकार के लक्षणों को पैदा करता है। इस मैकेनिज्म के बंद होने पर तनाव के लक्षण दूर हो जाते हैं।

यह तो थी कॉफी पीने के मानसिक फायदे। लेकिन अब जो शोध की गई है वो है तो कॉफी और मस्तिष्क के संबंध पर ही आधारित है, पर है जरा हटके।

यह अध्ययन कॉफी पीने या न पीने को लेकर नहीं है, यह मस्तिष्क की बीमारी का पता लगाने के लिए कॉफी की भूमिका पर प्रकाश डालता है। दरअसल अमेरिका में यह शोध की गई है जिसमें बताया गया है कि किस प्रकार प्याले में बची हुई कॉफी का प्रयोग कर दिमागी समस्याओं का पता लगाया जा सकता है।

शोधकर्ताओं ने पता लगाया है कि कॉफी के बचे हुए हिस्सों को मस्तिष्क की गतिविधियां मापने वाले यंत्र में कोटिंग के तौर पर प्रयोग किया जा सकता है। शोधकर्ताओं ने यह भी पाया की कॉफी की कोटिंग से यंत्र काफी प्रभावी रूप से काम करने लगता है।

इलेक्ट्रिक कोटिंग में कॉफी दिखाएगी कमाल:

अध्ययनकर्ताओं का कहना है कि कॉफी की इलेक्ट्रोड कोटिंग इको फ्रेंडली होने के अलावा दिमागी बीमारियों का पता लगाने में ज्यादा असरदार भी है। ऐसे में इस शोध से दिमागी परेशानियों का पता लगाने में बहुत मदद मिल सकती है और दिमागी समस्याओं से जूझ रहे मरीजों का इलाज करना भी आसान हो जाएगा।

दरअसल जिन इलेक्ट्रोड कोटिंग में बची हुई कॉफी का प्रयोग किया जाने की बात कही जा रही है वह एक खास प्रकार के मशीन से जुड़े होते हैं। यह मस्तिष्क के भीतर चल रहीं विद्युत गतिविधियों को संकेतों के तौर पर कंप्यूटर तक पहुंचाने का कार्य करते हैं जिसे कंप्यूटर स्क्रीन पर देखा जा सकता है और दिमागी मरीजों की समस्याओं का पता लगाया जा सकता है।

डोपामाइन का पता लगाने में बहुत प्रभावी:

शोधकर्ता यह भी पता लगा चुके हैं कि कॉफी ग्राउंड का प्रयोग करने से डोपामाइन के स्त्रावित होने का पता लगाने में तीन गुना ज्यादा प्रभावी है। शोध के बाद वैज्ञानिकों ने माना है कि बची हुई कॉफी की कोटिंग मानसिक बीमारियों का पता लगाने में पारंपरिक रूप से इस्तेमाल की जा रही कार्बन फाइबर इलेक्ट्रोड की तुलना में कहीं ज्यादा प्रभावी है।

(The report is sponsored by SBI cards. Courtesy: MHFI)

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