लेखक: Admin
उपशीर्षक: लिंक्डिन के एक सर्वेक्षण में उजागर हुआ है कि कर्मचारी अपना गम साथियों से बांट रहे हैं। इससे उनका मन भी हल्का हो रहा है और वो तनाव के बोझ से भी खुद को निकाल पा रहे हैं।
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अपना दर्द किसी को नहीं बताओ, कोई सुन लेगा तो क्या कहेगा, आखिर दर्द बताने से कोई आपकी मदद तो करने वाला है नहीं… इस तरह की बातें अब पुराने जमाने की बात हो चली है। लोग इस कदर दुख और तकलीफ में हैं कि वह अपने गम को मनचाहे लोगों से साझा करने से गुरेज नहीं कर रहे।
कहते हैं गम को दिल में ही दबाए रखने से मन पर इसका बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। जब तक आप अपने किसी दोस्त, रिश्तेदार या करीबी से इसे साझा नहीं कर लेते तब तक आपको चैन नहीं आता। बल्कि, हकीकत तो यह है कि घर से ज्यादा लोग अब बाहर अपनी परेशानियों को साझा करना पसंद कर रहे हैं। विशेष रूप से दफ्तरों में कार्यरत कर्मचारी अपने सहकर्मियों से अपना दर्द साझा कर रहे हैं।
लिंक्डिन के एक सर्वेक्षण ने इस बात पर मुहर लगा दी है कि मन का दुख या दर्द अपने किसी दोस्त या अजीज से साझा करने के लिए लोग किस तरह बेचैन हो जाते हैं। लोग अब अपने सह-कर्मचारी से मन का दर्द साझा करने लगे हैं। ऐसा कर न केवल उनका मन हल्का हो रहा है बल्कि तनाव का बोझ भी कम हो रहा है।
लिंक्डिन ने करीब 23,000 कर्मचारियों पर सर्वेक्षण कर बताया है कि कर्मचारी न केवल अपने दर्द बल्कि, व्यक्तिगत परेशानियों तक को अपने सहकर्मियों से साझा कर रहे हैं। माना जा रहा है कि विशेष रूप से कोरोना के बाद दुनिया का नजारा अब बदल चुका है। घरों में कैद हो चुके लोगों ने अकेलेपन का ऐसा दंश सहा है कि अब वह अपने मन में बोझ को नहीं समा पा रहे। दफ्तरों में बन रहा नया माहौल अब इसी बदलाव का नतीजा है।
भावनाओं और परेशानियों को समझने वाले बॉस की चाह:
सर्वेक्षण में यह भी खुलासा हुआ है कि अब कर्मचारी ऐसा बॉस चाहते हैं जो केवल उन पर हुक्म न चलाए बल्कि उनकी व्यक्तिगत परेशानियों को भी समझे और उनकी भावनाओं की कद्र करे। लिंक्डिन के सर्वेक्षण में 23,000 कर्मचारियों में से 61 फीसदी लोगों ने माना कि दफ्तरों में सॉफ्ट स्किल्स उतने ही जरूरी हैं जितने की हार्ड स्किल्स। मालूम हो कि कोरोना काल में वर्क फ्रॉम होम कल्चर में वृद्धि हुई जिससे लोग अपने दफ्तर के दोस्तों से मिलने को तरस गए। घर के लोग भी परेशान ही ज्यादा रहे ऐसे में घर के सदस्यों को एक-दूसरे से परेशानी साझा करने में भी दिक्कतें हुईं। सच कहें तो लोग जैसे मन की बात व परेशानी अपने दोस्तों व सहकर्मियों से साझा करने को तरस ही गए।
मन को नहीं समझा तो दूसरी नौकरी ही बेहतर:
एक अन्य सर्वेक्षण में यह बात भी उजागर हुई है अगर दफ्तरों में कर्मचारियों के मन और भावना को समझने वाले बॉस या मैनेजर नहीं हैं तो वह दूसरी नौकरी तलाश करना ज्यादा पसंद करते हैं बजाए दर्द और तनाव भरे वातावरण में काम करने के।
एक सोशल प्लेटफॉर्म ने हाल ही में कर्मचारी बेहतरी रिपोर्ट में पाया है कि जिन कर्मचारियों को लगता है कि कंपनी उनकी परेशानियों व मन का ध्यान नहीं रख रही है वे बेझिझक कंपनी बदलने का निर्णय ले डालते हैं। जबकि ऐसे कर्मचारी जिनके मन व भावनाओं का ध्यान कंपनी में रखा जा रहा है वो नौकरी बदलना नहीं चाह रहे।मालूम हो कि दफ्तर में अपने सहकर्मियों का सहयोग, उनसे बेहतरीन संवाद कायम करना, उनकी भावनाओं को समझना, उनके दुख-दर्द को सुनना किसी दफ्तर की आवश्यक सॉफ्ट स्किल्स मानी जाती हैं। सर्वेक्षण ने बता दिया है कि जो कंपनी या संगठन सॉफ्ट स्किल्स को जितनी तवज्जो देगा कर्मचारी उतने ही खुश रहेंगे।
(The report is sponsored by SBI cards. Courtesy: MHFI)