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अंतरिक्ष यात्रा में बदल जाता है दिमाग का आकार

लेखक: Admin

उपशीर्षक: अध्ययन में खुलासा हुआ कि सात माह बाद भी दिमाग में आया बदलाव दिख रहा था। यह बदलाव सकारात्मक होता है जो दिमाग की ताकत के बारे में बताता है।

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एक साधारण इंसान का दिमाग उम्र के साथ-साथ बदलता रहता है, लेकिन अंतरिक्ष यात्रा इस मामले में जरा हट कर है। यूरोप और रूस की अंतरिक्ष एजेंसियों द्वारा की गई एक संयुक्त शोध में खुलासा हुआ है कि अंतरिक्ष यात्रा अंतरिक्ष यात्रियों के दिमाग का ढांचा और आकार बदल देती है। यह बदलाव यात्रा से लौटने के कई महीनों तक दिखता रहता है। यह बदलाव सकारात्मक होता है।

दिमाग की शक्ति की ताकत

शोधकर्ताओं का कहना है कि वास्तव में यह बदलाव अपने आप में बहुत खास है क्योंकि इससे पता चलता है कि दिमाग की शक्ति आखिर कितनी जबरदस्त है और व्यक्ति को किसी भी परिस्थिति के अनुकूल किस प्रकार बदलने की क्षमता रखती है। अंतरिक्ष यात्रा के दौरान इंसान के दिमाग में पाया जाने वाले तरल पदार्थ परिवर्तित हो जाता है और साथ ही अंतरिक्ष यात्री के दिमाग के आकार में बदलाव हो जाता है।

दिमाग में हुए बदलावों को देखा

रिपोर्ट फंट्रियर्स इन न्यूरल सर्किट्स में प्रकाशित इस शोध के अनुसार, अंतरिक्ष यात्रियों के कई व्हाइट मैटर ट्रैक्ट (सेंसर मोटर ट्रैक्ट आदि) में हल्के ढांचागत बदलाव पाए गए। व्हाइट मैटर दिमाग का संपर्क चैनल है और ग्रे मैटर प्राप्त सूचना को प्रसंस्कृत करता है। अमेरिका की ड्रेक्सल यूनिवर्सिटी के आंद्रेई डोरोशिन ने बताया शोध के दौरान हमें दिमाग के कई मोटर एरिया में बदलाव दिखे। मोटर एरिया वो मस्तिष्क केंद्र है, जहां चलने-फिरने आदि के लिए आदेश दिया जाता है।

अनुकूलता के लिए दिमाग में होता बदलाव

शोधकर्ताओं के मुताबिक अंतरिक्ष यात्रा के लिए खुद को अनुकूल बनाने के लिए यह बदलाव आता है जो कि न्यूरोप्लास्टिसिटी स्तर पर होता है।  न्यूरोप्लास्टिसिटी दिमाग की वो क्षमता है, जिससे न्यूरॉन को परिस्थिति में आए परिवर्तन के अनुकूल बदलाव लाने की अनुमति मिलती है। अंतरिक्ष यात्रियों का दिमाग एक अलग तरह से हो जाता है क्योंकि बिना  गुरुत्वाकर्षण के अंतरिक्ष यात्रियों को चाल-ढाल में भारी बदलाव लाना पड़ता है।

ऐसे की शोध

शोधकर्ताओं ने ब्रेन इमेजिंग तकनीक फाइबर ट्रैक्टोग्राफी का प्रयोग कर 172 दिन के अंतरिक्ष अभियान पर गए 12 अंतरिक्ष यात्रियों के अंतरिक्ष यात्रा से पहले और लौटने के फौरन बाद के डिफ्यूजन एमआरआई स्कैन का अध्ययन किया। अंतरिक्ष यात्रा से लौटने के करीब 7 महीने बाद फॉलोअप स्कैन का भी अध्ययन किया गया। अध्ययन में खुलासा हुआ कि सात माह बाद भी दिमाग में आया बदलाव दिख रहा था। निष्कर्ष में पाया गया कि जो भी बदलाव हुए हैं वो दिमाग के स्तर पर सकारात्मक रूप से किए गए थे क्योंकि इन बदलावों के कारण ही अंतरिक्ष जैसी जगह पर इंसान को रहने की अनुकूलता मिलती है। इससे पता चलता है कि कैसे दिमाग ने समय अनुसार आदेश देकर इस प्रकार के परिवर्तन किए जो इंसान की मदद कर सके उन परिस्थितियों में  टिकने के लिए जो उसके लिए बहुत मुश्किल होती हैं।

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