लेखक: Admin
उपशीर्षक: इंसान के पास भले ही पूरा दिमाग न हो तब भी वह दूसरों के चेहरे और शब्द पहचान सकता है। अध्ययन के परिणामों ने साबित किया कि विकसित मस्तिष्क का एक हिस्सा, चाहे वह बाएं हो या दाएं हो, चेहरे और शब्दों की पहचान के लिए खुद को ढाल लेता है।
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आप यह बात जानते होंगे कि किसी चोट या बीमारी की वजह से कुछ मामलों में पीड़ित व्यक्ति के दिमाग का एक हिस्सा निकाल दिया जाता है। इसके कारण व्यक्ति की याददाश्त और पहचान शक्ति प्रभावित हो जाती है। कभी-कभी इंसान कोमा में भी चला जाता है और सालों ऐसी ही अवस्था में रहता है। कुछ मामलों में वह कुछ भी पहचान नहीं पाता, ना ही समझ पाता है।
लेकिन, हाल में आई एक शोध इन मामलों से कुछ अलग बात बता रही है। इस शोध के मुताबिक, अगर किसी कारणवश इंसान के दिमाग के किसी एक हिस्से को निकाल भी दिया जाए तो भी वह लोगों के चेहरे और शब्दों को पहचान सकता है। वैज्ञानिकों ने यह दावा अपनी शोध में इस बात को साबित करने के बाद किया है।
दिमाग की प्लास्टिसिटी के बारे में देती नई जानकारी:
इस शोध के बाद दिमाग की प्लास्टिसिटी के बारे में भी नई जानकारी सामने आई है जो दिमाग की सर्जरी के मामलों में भी मददगार साबित हो सकती है। शोधकर्ताओं का कहना है कि शोध बताती है कि कैसे सर्जरी के बाद, दिमाग का एक हिस्सा अतिरिक्त कार्यों को करने के लिए खुद को अनुकूल बना सकता है। मालूम हो कि इंसान के दिमाग का बायां और दायां हिस्सा चेहरों और शब्दों की पहचान करता है। कभी-कभी चोट या बीमारी के कुछ मामलों में दिमाग को पहुंचे नुकसान के कारण दिमाग की सर्जरी की नौबत आ जाती है। कुछ मामलों में दिमाग के एक हिस्से को निकालना भी पड़ जाता है।
दिमाग का हिस्सा हटाए गए लोग पहचान पाए चेहरे:
अपने इस अध्ययन के दौरान शोधकर्ताओं ने 40 वयस्क स्वयंसेवकों की मदद ली। इन सभी के दिमाग का आधा हिस्सा बचपन में हेमिस्फेरेक्टोमी (दिमाग की सर्जरी) के बाद हटा दिया गया था। आमतौर पर दिमाग के एक तरफ होने वाले दौरे से पीड़ित रोगियों पर उस दशा में जबकि रोगियों ने कई अलग-अलग दवा उपचारों के लिए अच्छी तरह से प्रतिक्रिया नहीं दी है, हेमिस्फेरेक्टोमी की जाती है। मस्तिष्क के एक हिस्से में मिर्गी और दौरे के तीव्र मामलों को दूर करने के लिए यह सर्जरी आखिरी विकल्प होती है। यह ज्यादातर बच्चों पर ही की जाती है।
दिमाग का हिस्सा हटाने वाले लोगों पर की शोध:
शोधकर्ताओं ने यह पता लगाने के लिए कि क्या दिमाग का एक हिस्सा चेहरे और शब्दों की पहचान करने में सक्षम है, इन लोगों को चार-अक्षर वाला शब्द और एक चेहरा दिखाया गया वो भी महज सेकंड के तीन-चौथाई हिस्से के लिए। इस प्रक्रिया से पहले प्रतिभागियों को महज 150 मिलीसेकंड के लिए कोई दूसरा शब्द या चेहरा भी दिखाया गया था। इसके बाद इन सभी से पूछा गया कि उन्हें दिखाए गए शब्द और चेहरे एक जैसे हैं या अलग हैं। हालांकि रोगियों ने सामान्य लोगों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन नहीं किया, लेकिन फिर भी उनके चेहरे और शब्द पहचान की औसत सटीकता दर 80 प्रतिशत से अधिक थी। इसके बाद शोधकर्ताओं ने पाया कि मरीज के दिमाग के जिस हिस्से को हटाया गया था, ये सटीकता उस हिस्से पर निर्भर नहीं करती थी।
चेहरे की पहचान के लिए खुद को ढाल लेता है दिमाग:
इसके बाद शोधकर्ताओं ने एक दूसरा प्रयोग भी इन प्रतिभागियों पर किया। इस दौरान सभी प्रतिभागियों को उन शब्दों और चेहरों को पहचानने के लिए कहा गया जो स्क्रीन के किनारे पर दिखाई देते हैं, बीच में नहीं। दृश्य के बाएं हिस्से में दिखाई देने वाली चीजें आमतौर पर मस्तिष्क के दाहिने हिस्से द्वारा नियंत्रित होती हैं और दायीं तरफ की चीजें दिमाग के बाएं हिस्से द्वारा नियंत्रित की जाती हैं। बता दें कि इस बार भी सामान्य लोगों ने ज्यादा अच्छा प्रदर्शन किया। लेकिन हैरानी की बात यह रही कि दिमाग के सिर्फ एक हिस्से वाले लोगों के प्रदर्शन में ज्यादा अंतर नहीं आया। कुल मिलाकर, अध्ययन के परिणामों ने साबित किया कि विकसित मस्तिष्क का एक हिस्सा, चाहे वह बाएं हो या दाएं हो, चेहरे और शब्दों की पहचान के लिए खुद को ढाल लेता है। हालांकि, शोधकर्ताओं ने यह साफ किया कि ऐसी प्लास्टिसिटी उम्र पर भी निर्भर करती है।
(The report is sponsored by SBI cards. Courtesy: MHFI)