लेखक: Admin
उपशीर्षक: डॉक्टर भगवान का रूप माने जाते हैं लेकिन जब उनको भी मानसिक विकार घेर लें तब क्या? जी हां, देश भर में 80 फीसदी से अधिक चिकित्सक अवसाद की चपेट में हैं। ऐसे में अब समय आ चुका है कि उनकी भी समस्या को समझा जाए।
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भोपाल एम्स में हाल ही में एमबीबीएस की छात्रा द्वारा कथित तौर पर आत्महत्या की घटना ने एक बार फिर चिकित्सकों और मेडिकल छात्रों की मनोदशा के बारे में सोचने पर मजबूर कर दिया है। हालांकि आत्महत्या के कारणों की पड़ताल फिलहाल की जा रही है, लेकिन आंकड़े गवाही देते हैं कि देशभर के चिकित्सकों और मेडिकल छात्रों की मानसिक दशा बहुत खराब हालत में हैं।
आईएमए (इंडियन मेडिकल एसोसिएशन) की एक रिपोर्ट के अनुसार, देश में तकरीबन 80 फीसदी चिकित्सक अवसाद में हैं या किसी न किसी प्रकार की मानसिक समस्या से जूझ रहे हैं।
नींद भी नसीब नहीं:
मानसिक समस्या का मुख्य कारण अत्याधिक काम का दबाव होना बताया जा रहा है। रिपोर्ट के अनुसार करीब 56 प्रतिशत चिकित्सकों को 6 से 7 घंटे की नींद भी नसीब नहीं होती। इसका बुरा असर चिकित्सकों के अलावा मेडिकल छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य पर भी पड़ रहा है।
पिछले दस सालों में 358 चिकित्सकों ने की आत्महत्या:
नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन के हाल ही में आए एक अध्ययन के अनुसार 2010 से 2019 यानी की पिछले दस सालों में 358 चिकित्सकों ने आत्महत्या की है। इनमें से 125 मेडिकल छात्र, 105 रेसिडेंट डॉक्टर्स और 128 डॉक्टर्स शामिल हैं। आत्महत्या करने वालों में ज्यादातर की आयु 30 साल से भी कम थी।
2019 के बाद के आंकड़े जुटाए जा रहे हैं। माना जा रहा है कि चिकित्सकों में आत्महत्या की प्रवृत्ति लगातार बढ़ रही है। बताया जा रहा है कि कोरोना के बाद, काम का दबाव चिकित्सकों पर बहुत ज्यादा बढ़ा है और आत्महत्या की दर भी।
एक अजीब सा डर बना रहता है:
इस बारे में एम्स, दिल्ली, की एक मेडिकल छात्रा ने बताया, “पता नहीं क्यों पर अब एक अजीब सा डर दिल में बना रहता है। पढ़ाई का दबाव तो है ही लेकिन अब तो इस पेशे के भविष्य को लेकर भी चिंता लगी रहती है। काम का अत्यधिक दबाव खुल के जीवन जीने नहीं दे रहा।”
जीबी पंत अस्पताल, दिल्ली, के एक रेजीडेंट डॉक्टर ने बताया कि हालात यह हो गए हैं कि मरीज की न सुनो तो दिक्कत, सीनियर की न सुनो तो परेशानी। स्टाफ हर जगह ही कम है ऐसे में अत्यधिक काम का दबाव अब मन पर हावी रहता है।
क्या किया जाए:
इस बारे में मनोचिकित्सक डॉ दिनेश पारेख कहते हैं कोरोना के बात अवसाद ने कोढ़ में खाज का काम किया है। अब तो हर क्षेत्र में ही मनोवैज्ञानिक और परामर्शदाता की आवश्यकता जरूरी हो गई है। मेडिकल फैकल्टी और छात्रों के लिए भी परामर्शदाता का होना अब जरूरी है ताकि वे अपनी परेशानियों के बारे में बता सकें और उसका समाधान भी उनको मिल सके।
(The report is sponsored by SBI cards. Courtesy: MHFI)