शीर्षक: मैं झाड़-फूंक में ही रहती यदि डॉक्टरी इलाज से सुधार नहीं होता
उप-शीर्षक: पहले तो मुझे लगा की महिमा झूठ बोल रही है मगर जब यह सिलसिला लगभग 6 महीने तक चलता रहा तो फिर मैंने अपने पंडित जी से मशवरा किया। उनका कहना था कि मेरी बेटी पर किसी बुरे साए का असर है। उन्होंने कहा कि इस इलाके में ऐसा पहले भी हुआ है और उन्होंने कई लड़कियों का सफलतापूर्वक ऐसे साये से पीछे छुड़ाया है।
लेखक: एस आनंद
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मुझे अफसोस है कि मैंने लगभग साल भर का समय बर्बाद कर दिया झाड़-फूंक और जादू-टोना में। अगर मुझे पहले थोड़ी भी जानकारी होती कि यह समस्या मानसिक रोग है और इसका इलाज डॉक्टर कर सकते हैं तो मैं कभी भी झाड़-फूंक के फेरे में नहीं पड़ती और मेरी बेटी बहुत पहले ही ठीक हो गई होती,” अर्चना ने अपने अश्रुधारा में अपनी दिल का गुबार निकालते हुए कहा।
मनोविज्ञान में स्नातक प्रतिष्ठा प्राप्त महिमा ने साल 2018 में मास्टर्स की पढ़ाई के लिए मगध विश्वविद्यालय में नामांकन कराया, उसी वक्त से उसके व्यवहार में थोड़ा परिवर्तन दिखने लगा। मगर इस बारे में किसी ने भी लगभग एक-दो महीने तक विशेष ध्यान नहीं दिया सिवाय इस बात को समझाने में कि वह अपने व्यवहार को ठीक करे। “और 6 महीने के भीतर स्थिति धीरे-धीरे इतनी बदतर हो गई की पढ़ाई भी छूट गयी और महिमा के मन पर कई तरह के डर ने कब्जा कर लिया। उसे यह लगने लगा कि घर के लोग उससे प्यार नहीं करते और उसपर ध्यान भी नहीं देते। महिमा अक्सर गुस्से में रहती और धीरे-धीरे हर काम से उसका मन उचट सा गया। जो बच्ची दूसरों से हमेशा अच्छा व्यवहार करती थी और खुश रहती थी इस तरह का दुर्व्यवहार करने लगेगी सोच कर ही हम लोग मरे जा रहे थे। मगर यह बात किस से बताई जा सकती थी? संबंधी और समाज के लोग क्या सोचेंगे यही सोच कर हम लोग इस बात को छुपाए रखे। और इसलिए हम लोग पंडित जी और ओझा जी की बात मानते रहे,” अर्चना ने भरे गले से कहा।
2019 के जून महीने में रांची के केंद्रीय मानसिक संस्थान में दिखाने के बाद से महिमा अब पहले से काफी स्वस्थ है, अर्चना अपने दिल के टुकड़े को बेहतर देखते हुए और उसके भविष्य के बारे में सोचते हुए बोली।
महिमा याद करके बताती हैं कि सितंबर 2018 में पहली बार उन्हें ऐसा लगा कि किसी लड़के ने उनका नाम लेकर उन्हें पुकारा जब वह कॉलेज में प्रथम तल पर सीढ़ियों से जा रही थी। “लेकिन जब मैं पीछे मुड़कर देखी तो मुझे कोई नहीं दिखा। ना जाने कैसे मेरे दिमाग में आया उस लड़के का नाम अमित है। और मैं ऐसा कई बार महसूस की, हर बार सीढ़ियों पर ही। मैं सोच में पड़ गई क्योंकि मेरे कक्षा में इस नाम का कोई लड़का नहीं था। मुझे लगा कोई बाहर का आदमी मुझे तंग करने के लिए बार-बार मुझे आवाज दे रहा है और छुप जा रहा है। कुछ दिनों तक तो यह शरारत मैं चुपचाप झेलती रही, मगर जब लगा कि वह व्यक्ति मुझे हानि पहुंचा सकता है तो फिर मैंने अपनी माँ को सारी बातें बतायी। मगर उन्होंने उल्टा ही मुझे डांट दिया, फिर मैं यह बात किसी को नहीं बता पाई। और इस तरह मुझे आवाज देने और तंग करने का सिलसिला चलता रहा। मुझे आज भी आश्चर्य होता है जब डॉक्टर मुझे बताते हैं कि वह सब मेरे दिमाग का ही उपज था,” महिमा हँसते हुए अपनी आपबीती बताती हैं।
“पहले तो मुझे लगा की महिमा झूठ बोल रही है मगर जब यह सिलसिला लगभग 6 महीने तक चलता रहा तो फिर मैंने अपने पंडित जी से मशवरा किया। उनका कहना था कि मेरी बेटी पर किसी बुरे साए का असर है। उन्होंने कहा कि इस इलाके में ऐसा पहले भी हुआ है और उन्होंने कई लड़कियों का सफलतापूर्वक ऐसे साये से पीछे छुड़ाया है। फिर उन्होंने कुछ पूजा पाठ किया मगर जब 1 महीने में स्थिति में सुधार नहीं हुआ तब उन्होंने मुझे उनके एक जानकार ओझा से मिलने के लिए कहा। ओझा ने अपनी तंत्र-मंत्र से महिमा को पूर्णतया ठीक करने का आश्वासन दिया। कुछ समय तो ऐसा लगा कि सब ठीक हो जाएगा क्योंकि कुछ वक्त के लिए महिमा की स्थिति में थोड़ा सुधार होने लगा। मगर फिर से उसकी स्थिति बिगड़ती गई। मैंने उस ओछा के चक्कर में काफी पैसे और समय भी बर्बाद किया,” महिमा की माँ ने अफसोस करते हुए कहा।
“वैसे तो मैं खुद मनोविज्ञान की छात्रा रही हूं और ऐसे रोगों के बारे में पढ़ाई भी की है मगर मुझे कभी ऐसा नहीं लगा कि मेरी स्थिति पूर्णतया मनोरोग है। वैसे तो शुरुआत में मैंने मां से कहा भी कि कहीं या कोई रोग तो नहीं है लेकिन मैंने मनोचिकित्सक से परामर्श लेने के लिए माँ को कभी नहीं कहा क्योंकि मुझे भी ऐसा लगता था कि मैं दिमाग से बिल्कुल स्वस्थ हूं,” महिमा ने हंसते हुए कहा।
“सबसे मुश्किल का समय तो वह था जब मेरे एक सम्बंधी का बेटा, जो एमबीबीएस की पढ़ाई पढ़ रहा है, मुझे किसी मनोचिकित्सक से परामर्श लेने की सलाह दी। मगर उसके बात को मानना बहुत मुश्किल था क्योंकि ओझा जी ने अपने तंत्र-मंत्र की शुरुआत में ही यह कह दिया था कि अगर उनके प्रयास में कोई बाधा डाला तो महिमा की तबीयत और खराब हो जाएगी। मगर उनके 3 महीने के प्रयास के बाद जब कोई सुधार नजर नहीं आया तो हमने उन्हें बिना बताए डॉक्टर से दिखाने का तय किया। दवा लेने के लगभग 1 महीने बाद महिमा की मानसिक सेहत में आश्चर्यजनक सुधार नजर आया और तब हम लोगों की आंखें खुल गई। मार्च 2020 तक डॉक्टर का इलाज लगातार चलता रहा और इस 1 साल में महिमा लगभग सामान्य सी हो गई,” महिमा के माँ ने कहा।
मगर अप्रैल से जून 2020 तक और फिर इस साल उसी 3 महीने में डॉक्टर से संपर्क नहीं हो पाया और महिमा की तबीयत थोड़ी खराब हो गयी, अर्चना ने आगे कहा। “मगर डॉक्टर साहब के निर्देश के अनुसार हमने दवा कभी बंद होने नहीं दिया और इसका असर यह है कि महिमा फिर से अपनी दिनचर्या में वापस आ गई है और घर के काम में सहायता के अलावा अपनी पढ़ाई भी शुरू कर दी है। डॉक्टर का कहना है की दवा कुछ और महीने या साल चल सकती है। मैं तो डॉक्टर की सलाह को भगवान का आशीर्वाद समझकर मानूंगी।” अर्चना बोली।
चहकते हुए महिमा अपनी माँ की बात को आगे बढ़ाते हुए बोली, “मुझे तो अब अपनी छूटी हुई मास्टर्स की भी पढाई पूरी करनी है और बहुत कुछ करना है।”